(धुन- हम तो ठहरे परदेशी)
(212 1222)×2
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।
एक बार डूबें तो, डूबते ही जाते हैं।।
जो न इसमें डूबे हैं, पूछते हैं वो हम से;
आँख का नशा क्या है, हम उन्हें बताते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
झील सी ये गहरी हैं, मय से ये लबालब भी;
भूल जाते दुनिया को, गहरे जितने आते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
हद शराब की होती, देर कुछ नशा टिकता;
पर जो डूबते इसमें, थाह तक न पाते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
सुर ओ ताल जीवन की, सब इन्हीं में बसती है;
गहरे डूब इनमें ही, लय सभी मिलाते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
एक बार डूबें तो, डूबते ही जाते हैं।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-10-18
(212 1222)×2
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।
एक बार डूबें तो, डूबते ही जाते हैं।।
जो न इसमें डूबे हैं, पूछते हैं वो हम से;
आँख का नशा क्या है, हम उन्हें बताते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
झील सी ये गहरी हैं, मय से ये लबालब भी;
भूल जाते दुनिया को, गहरे जितने आते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
हद शराब की होती, देर कुछ नशा टिकता;
पर जो डूबते इसमें, थाह तक न पाते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
सुर ओ ताल जीवन की, सब इन्हीं में बसती है;
गहरे डूब इनमें ही, लय सभी मिलाते हैं।
आँख के नशे में जब, वो हमें डुबाते हैं।।
एक बार डूबें तो, डूबते ही जाते हैं।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-10-18
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