हिन्दी काव्य की एक विधा जिसमें चार चार पद के 'मुक्ता' एक माला की तरह गूँथे जाते हैं। मैंने इसका नाम मौक्तिका दिया है क्योंकि इस में 'मुक्ता' शेर की तरह पिरोये जाते हैं। मौक्तिका में मुक्ताओं की संख्या कितनी होगी इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं है फिर भी 4 तो होने ही चाहिए। मौक्तिका के सारे मुक्ता एक दूसरे से सम्बंधित हो कर मौक्तिका को एक पूर्ण कविता का रूप प्रदान करते हैं।
मौक्तिका का मुक्ता 4 पद या पंक्तियों की एक रचना है।
मुक्ता के दो भाग है जिन्हें मैंने अलग अलग नाम दिया है---
(1) तुकांतिका- मुक्ता के प्रथम दो पद जो समतुकांत होने आवश्यक हैं।
(2) मुक्तिका- मुक्ता के अंतिम दो पद जिनकी संरचना ठीक ग़ज़ल के शेर जैसी होती है। मुक्तिका के दोनों पद समतुकांत नहीं होने चाहिए।तुकांतिका और मुक्तिका का प्रथम पद 'पूर्व पद' और दूसरा पद 'पूरक पद' कहलाता है। मुक्तिका के पूरक पद का अंत किसी खास शब्द या शब्दों से होता है जो पूरी मौक्तिका की हर मुक्तिका में एक ही रहता है। इसे पदांत के नाम से जाना जाता है। यही उर्दू में रदीफ़ कहलाता है। इसके अलावा हर पदांत के ठीक पहले आया हुआ शब्द हर मुक्तिका में हमेशा समतुकांत रहता है जिसे समांत कहा जाता है। उर्दू में यही काफ़िया कहलाता है। हर मुक्तिका में समांत का होना आवश्यक है जबकि पदांत का लोप भी किया जा सकता है। मौक्तिका की प्रत्येक मुक्तिका में एक ही समांत का होना ही मौक्तिका की विशेषता है।
मौक्तिका का पहला मुक्ता प्रमुख होता है और इसे मुखड़ा के नाम से जाना जाता है। मुखड़ा में तुकांतिका नहीं होती केवल दो मुक्तिका होती हैं। मुखड़ा से ही मौक्तिका की हर मुक्तिका के पदांत और समांत का निर्धारण होता है। मुखड़ा के बाद के हर मुक्ता में तुकांतिका और मुक्तिका दोनों होती है।
मौक्तिका के अंतिम मुक्ता को मनका के नाम से जाना जाता है जिसमें मौक्तिका का उपसंहार होता है इस में कवि अपना नाम या उपनाम भी पिरो सकता है।
मौक्तिका सदैव छंद या बहर आधारित होनी चाहिए। हिंदी की कोई भी मात्रिक या वार्णिक छंद ली जा सकती है। गजलों की मान्य बहरों के अतिरिक्त लघु दीर्घ के निश्चित क्रम के कुछ भी लयात्मक वर्णवृत्त लिए जा सकते हैं। गजलों में जिस प्रकार की मात्रा गिराने की छूट रहती है मौक्तिका में भी वह रहती है। इससे रचनाकार को मौक्तिका में मन चाहे भाव समेटने में आसानी हो जाती है। मौक्तिका में एक साथ आये हुए दो लघु चाहे वे एक ही शब्द में हो या अलग अलग शब्द में हो, छंद के विधान के अनुसार दो लघु भी गिने जा सकते हैं अथवा एक दीर्घ भी। केवल 2 के आवर्तन से बनी मात्रिक बहरों जैसे 2*4, 2*15 आदि में दो लघु एक साथ न भी हो तो एक दीर्घ गिने जा सकते हैं पर ये सब छूट लेते समय यह सदैव ध्यान रहे कि लय और प्रवाह भंग न हो।
हिंदी में एक छंद में चार चरण या पद रहते हैं। दोहे में भी चार पद होते हैं किंतु 2 पंक्तियों में लिखने की परंपरा है। मौक्तिका के मुक्ता में भी हिंदी की इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए मैंने चार पद रखे हैं। हिंदी में एक रचना के हर छंद में स्वतंत्र विचार दोहों और सौरठों में ही रखे जाते हैं जबकि अन्य छन्दों में पूरी रचना एक ही भाव पर केंद्रित एक कविता का रूप रखती है। एक मौक्तिका भी अपने आप में एक ही विषय वस्तु पर केंद्रित एक पूर्ण कविता होती है न कि छुटपुट मुक्ताओं का संग्रह मात्र।
मौक्तिका में लय, छंद, वर्ण विन्यास और क्रम के साथ साथ गजल वाली तुकांतता की एक रूपता भी है और साथ ही एक पूर्ण कविता का गुण भी। इन्हीं सब तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए मैंने इस विधान पर प्रयोग करते हुए कुछ रचनाएँ लिखी और इस आलेख में इसके विधान की रूप रेखा प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।
कुण्डला मौक्तिका:- मौक्तिका का एक भेद। इसकी संरचना कुंडलियाँ छंद के आधार पर की गई है। इसमें मुक्तिका का पूर्व पद दोहा की एक पंक्ति होती है तथा पूरक पद रोला छंद की एक पंक्ति होती है। दोहा के सम पद की रोला के विषम पद से तुक भी मिलाई जा सकती है। कुंडलियाँ छंद की तरह दोहा की पंक्ति जिस शब्द या शब्द समूह से प्रारंभ होती है रोला की पंक्ति का समापन भी उसी शब्द या शब्द समूह से होना आवश्यक है। यह शब्द या शब्द समूह पूरी रचना में पदांत का काम करता है। इस पदांत के अतिरिक्त समांत का होना भी आवश्यक है। तुकांतिका में मुक्तामणि या रोला छंद की दो पंक्तियाँ रखी जा सकती है। मेरी 'बेटी' शीर्षक की कुण्डला मौक्तिका का मुखड़ा एवं एक मुक्ता देखें-
बेटी शोभा गेह की, मात पिता की शान,
घर की है ये आन, जोड़ती दो घर बेटी।।
संतानों को लाड दे, देत सजन को प्यार,
रस की करे फुहार, नेह दे जी भर बेटी।।
रिश्ते नाते जोड़ती, मधुर सभी से बोले,
रखती घर की एकता, घर के भेद न खोले।
ममता की मूरत बड़ी, करुणा की है धार,
घर का सामे भार, काँध पर लेकर बेटी।।
दोहा 'बेटी' शब्द से प्रारंभ हो रहा है और यह रचना में पदांत का काम कर रहा है। हर मुक्तिका में पदांत के ठीक पहले समांत घर, भर, कर हैं। दोहे की पंक्ति के अंत में आये शब्द शान, प्यार, धार आदि से रोला की प्रथम यति में तुक मिलाई गयी है। तुकांतिका मुक्तामणि छंद की दो पंक्तियाँ है। यह छंद दोहे की पंक्ति का अंत जो सदैव लघु रहता है, उसको दीर्घ करने से बन जाता है। अतः बहुत उपयुक्त है। मुक्तामणि की जगह रोला की भी दो पंक्तियाँ रखी जा सकती हैं।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-06-16
मौक्तिका का मुक्ता 4 पद या पंक्तियों की एक रचना है।
मुक्ता के दो भाग है जिन्हें मैंने अलग अलग नाम दिया है---
(1) तुकांतिका- मुक्ता के प्रथम दो पद जो समतुकांत होने आवश्यक हैं।
(2) मुक्तिका- मुक्ता के अंतिम दो पद जिनकी संरचना ठीक ग़ज़ल के शेर जैसी होती है। मुक्तिका के दोनों पद समतुकांत नहीं होने चाहिए।तुकांतिका और मुक्तिका का प्रथम पद 'पूर्व पद' और दूसरा पद 'पूरक पद' कहलाता है। मुक्तिका के पूरक पद का अंत किसी खास शब्द या शब्दों से होता है जो पूरी मौक्तिका की हर मुक्तिका में एक ही रहता है। इसे पदांत के नाम से जाना जाता है। यही उर्दू में रदीफ़ कहलाता है। इसके अलावा हर पदांत के ठीक पहले आया हुआ शब्द हर मुक्तिका में हमेशा समतुकांत रहता है जिसे समांत कहा जाता है। उर्दू में यही काफ़िया कहलाता है। हर मुक्तिका में समांत का होना आवश्यक है जबकि पदांत का लोप भी किया जा सकता है। मौक्तिका की प्रत्येक मुक्तिका में एक ही समांत का होना ही मौक्तिका की विशेषता है।
मौक्तिका का पहला मुक्ता प्रमुख होता है और इसे मुखड़ा के नाम से जाना जाता है। मुखड़ा में तुकांतिका नहीं होती केवल दो मुक्तिका होती हैं। मुखड़ा से ही मौक्तिका की हर मुक्तिका के पदांत और समांत का निर्धारण होता है। मुखड़ा के बाद के हर मुक्ता में तुकांतिका और मुक्तिका दोनों होती है।
मौक्तिका के अंतिम मुक्ता को मनका के नाम से जाना जाता है जिसमें मौक्तिका का उपसंहार होता है इस में कवि अपना नाम या उपनाम भी पिरो सकता है।
मौक्तिका सदैव छंद या बहर आधारित होनी चाहिए। हिंदी की कोई भी मात्रिक या वार्णिक छंद ली जा सकती है। गजलों की मान्य बहरों के अतिरिक्त लघु दीर्घ के निश्चित क्रम के कुछ भी लयात्मक वर्णवृत्त लिए जा सकते हैं। गजलों में जिस प्रकार की मात्रा गिराने की छूट रहती है मौक्तिका में भी वह रहती है। इससे रचनाकार को मौक्तिका में मन चाहे भाव समेटने में आसानी हो जाती है। मौक्तिका में एक साथ आये हुए दो लघु चाहे वे एक ही शब्द में हो या अलग अलग शब्द में हो, छंद के विधान के अनुसार दो लघु भी गिने जा सकते हैं अथवा एक दीर्घ भी। केवल 2 के आवर्तन से बनी मात्रिक बहरों जैसे 2*4, 2*15 आदि में दो लघु एक साथ न भी हो तो एक दीर्घ गिने जा सकते हैं पर ये सब छूट लेते समय यह सदैव ध्यान रहे कि लय और प्रवाह भंग न हो।
हिंदी में एक छंद में चार चरण या पद रहते हैं। दोहे में भी चार पद होते हैं किंतु 2 पंक्तियों में लिखने की परंपरा है। मौक्तिका के मुक्ता में भी हिंदी की इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए मैंने चार पद रखे हैं। हिंदी में एक रचना के हर छंद में स्वतंत्र विचार दोहों और सौरठों में ही रखे जाते हैं जबकि अन्य छन्दों में पूरी रचना एक ही भाव पर केंद्रित एक कविता का रूप रखती है। एक मौक्तिका भी अपने आप में एक ही विषय वस्तु पर केंद्रित एक पूर्ण कविता होती है न कि छुटपुट मुक्ताओं का संग्रह मात्र।
मौक्तिका में लय, छंद, वर्ण विन्यास और क्रम के साथ साथ गजल वाली तुकांतता की एक रूपता भी है और साथ ही एक पूर्ण कविता का गुण भी। इन्हीं सब तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए मैंने इस विधान पर प्रयोग करते हुए कुछ रचनाएँ लिखी और इस आलेख में इसके विधान की रूप रेखा प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।
कुण्डला मौक्तिका:- मौक्तिका का एक भेद। इसकी संरचना कुंडलियाँ छंद के आधार पर की गई है। इसमें मुक्तिका का पूर्व पद दोहा की एक पंक्ति होती है तथा पूरक पद रोला छंद की एक पंक्ति होती है। दोहा के सम पद की रोला के विषम पद से तुक भी मिलाई जा सकती है। कुंडलियाँ छंद की तरह दोहा की पंक्ति जिस शब्द या शब्द समूह से प्रारंभ होती है रोला की पंक्ति का समापन भी उसी शब्द या शब्द समूह से होना आवश्यक है। यह शब्द या शब्द समूह पूरी रचना में पदांत का काम करता है। इस पदांत के अतिरिक्त समांत का होना भी आवश्यक है। तुकांतिका में मुक्तामणि या रोला छंद की दो पंक्तियाँ रखी जा सकती है। मेरी 'बेटी' शीर्षक की कुण्डला मौक्तिका का मुखड़ा एवं एक मुक्ता देखें-
बेटी शोभा गेह की, मात पिता की शान,
घर की है ये आन, जोड़ती दो घर बेटी।।
संतानों को लाड दे, देत सजन को प्यार,
रस की करे फुहार, नेह दे जी भर बेटी।।
रिश्ते नाते जोड़ती, मधुर सभी से बोले,
रखती घर की एकता, घर के भेद न खोले।
ममता की मूरत बड़ी, करुणा की है धार,
घर का सामे भार, काँध पर लेकर बेटी।।
दोहा 'बेटी' शब्द से प्रारंभ हो रहा है और यह रचना में पदांत का काम कर रहा है। हर मुक्तिका में पदांत के ठीक पहले समांत घर, भर, कर हैं। दोहे की पंक्ति के अंत में आये शब्द शान, प्यार, धार आदि से रोला की प्रथम यति में तुक मिलाई गयी है। तुकांतिका मुक्तामणि छंद की दो पंक्तियाँ है। यह छंद दोहे की पंक्ति का अंत जो सदैव लघु रहता है, उसको दीर्घ करने से बन जाता है। अतः बहुत उपयुक्त है। मुक्तामणि की जगह रोला की भी दो पंक्तियाँ रखी जा सकती हैं।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-06-16
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