Saturday, May 11, 2019

नवगीत (कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध)

सुन ओ भारतवासी अबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

आये दिन करता हड़ताल,
ट्रेनें फूँके हो विकराल,
धरने दे कर रोके चाल,
सड़कों पर लाता भूचाल,
करे देश को तू बदहाल,
और बजाता झूठे गाल,
क्या ये ही तेरा अंतर्बोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

व्यर्थ व्यवस्था के क्या तंत्र,
पड़े रहे क्या बंद संयंत्र,
मौन रहें क्या जीवन-मंत्र,
रुदन मचाये या जन-तंत्र,
मूंद रखो औरों पर नेत्र,
विकसित रख अपना हर क्षेत्र,
क्या बस तेरा यही प्रबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

बच्चे ढूंढ़ें चाहे जीविका,
झोंपड़ झेलें या विभीषिका,
नारी होती रहे घर्षिता,
सिसके नैतिकता, मानवता,
ओछी कर तू चाटुकारिता,
लज्जाते हो पत्रकारिता,
भूल गया क्या सब अवरोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

हक़ की क्या है यही लड़ाई,
लोकतंत्र की या तरुणाई,
अबतक की क्या यही कमाई,
या अधिकारों की अधिकाई
तू उदण्ड बन कर दंगाई,
संस्कार की करे विदाई,
अबतक का क्या ये ही शोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-01-2019

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