बहर:- 2122 - 2122 - 212
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ,
रो रही है आज मानवता यहाँ।
देश सारा खो गया है भीड़ में,
रो रहे सारे ही मानव पीड़ में।
द्रौपदी सी लाज रखलो तुम जहाँ,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
स्वार्थ में अंधे यहाँ के लोग हैं,
भोग वश कैसे लगे ये रोग हैं।
राजनेता भी बने भक्षक यहाँ,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
नारियों की अस्मिता अब दाव पे,
कौन मलहम अब लगाये घाव पे।
दीन दुखियों का सहारा ना रहा,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
लूट शोषण का यहाँ पे जोर है,
आह अबलों की उठे चहुँ ओर है।
मच गया आतंक का ताण्डव यहाँ,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
बढ़ गया है इस धरा पे पाप अब,
ले रहे अवतार मोहन फिर से कब।
अब न जाता ओर हमसे कुछ सहा,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
रोक लो इस पाप की अब धार को,
बन खिवैया थाम लो पतवार को।
आँसुओं की बाढ़ में सब कुछ बहा,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
(इस बहर का प्रमुख गीत- दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गये।)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-07-16
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ,
रो रही है आज मानवता यहाँ।
देश सारा खो गया है भीड़ में,
रो रहे सारे ही मानव पीड़ में।
द्रौपदी सी लाज रखलो तुम जहाँ,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
स्वार्थ में अंधे यहाँ के लोग हैं,
भोग वश कैसे लगे ये रोग हैं।
राजनेता भी बने भक्षक यहाँ,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
नारियों की अस्मिता अब दाव पे,
कौन मलहम अब लगाये घाव पे।
दीन दुखियों का सहारा ना रहा,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
लूट शोषण का यहाँ पे जोर है,
आह अबलों की उठे चहुँ ओर है।
मच गया आतंक का ताण्डव यहाँ,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
बढ़ गया है इस धरा पे पाप अब,
ले रहे अवतार मोहन फिर से कब।
अब न जाता ओर हमसे कुछ सहा,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
रोक लो इस पाप की अब धार को,
बन खिवैया थाम लो पतवार को।
आँसुओं की बाढ़ में सब कुछ बहा,
छुप गये हो श्याम सुंदर तुम कहाँ।
(इस बहर का प्रमुख गीत- दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गये।)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-07-16
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