सार छंद / ललितपद छंद
छन्न पकैया छन्न पकैया, वैरागी ये कैसे।
काम क्रोध मद लोभ बसा है, कपट 'पाक' में जैसे।
नाम बड़े हैं दर्शन छोटे, झूठा इनका चोंगा।
छापा तिलक जनेऊ रखते, पण्डित पूरे पोंगा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, झूठी सच्ची करते।
कागज की संस्थाओं से वे, झोली अपनी भरते।
लोग गाँठ के पूरे ढूंढे, और अकल के अंधे।
बिना उस्तरा के ही मूंडे, चंदे के सब धंधे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गये साधु बन ढोंगी।
रमणी जहाँ दिखी सुंदर सी, फेंके फंदे भोगी।
आसमान में पहले टाँगे, लल्लो चप्पो करते।
रोज शान में पढ़ें कसीदे, दूम चाटते फिरते।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, फिर वे देते दीक्षा।
हर सेवा अपनी करवाये, कहते इसको भिक्षा।
मुँह में राम बगल में छूरी, दाढ़ी में है तिनका।
सर पे जटा गले में कण्ठी, कर में माला मिनका।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, छिपे भेड़िये अंदर।
खाल भेड़ की औढ़ रखें ये, झपटे जैसे बन्दर।
गिरगिट से ये रंग बदलते, अजगर से ये घाती।
श्वान-पूंछ से हैं ये टेढ़े, गीदड़ सी है छाती।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बोले वचन सुहावा।
धुला चरण चरणामृत देते, आशीर्वाद दिखावा।
शिष्य बना के फेंके पासे, गुरु बन देते मंतर।
ऐसे गुरु से बच के रहना, झूठे जिनके तंतर।।
काम क्रोध मद लोभ बसा है, कपट 'पाक' में जैसे।
नाम बड़े हैं दर्शन छोटे, झूठा इनका चोंगा।
छापा तिलक जनेऊ रखते, पण्डित पूरे पोंगा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, झूठी सच्ची करते।
कागज की संस्थाओं से वे, झोली अपनी भरते।
लोग गाँठ के पूरे ढूंढे, और अकल के अंधे।
बिना उस्तरा के ही मूंडे, चंदे के सब धंधे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गये साधु बन ढोंगी।
रमणी जहाँ दिखी सुंदर सी, फेंके फंदे भोगी।
आसमान में पहले टाँगे, लल्लो चप्पो करते।
रोज शान में पढ़ें कसीदे, दूम चाटते फिरते।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, फिर वे देते दीक्षा।
हर सेवा अपनी करवाये, कहते इसको भिक्षा।
मुँह में राम बगल में छूरी, दाढ़ी में है तिनका।
सर पे जटा गले में कण्ठी, कर में माला मिनका।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, छिपे भेड़िये अंदर।
खाल भेड़ की औढ़ रखें ये, झपटे जैसे बन्दर।
गिरगिट से ये रंग बदलते, अजगर से ये घाती।
श्वान-पूंछ से हैं ये टेढ़े, गीदड़ सी है छाती।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बोले वचन सुहावा।
धुला चरण चरणामृत देते, आशीर्वाद दिखावा।
शिष्य बना के फेंके पासे, गुरु बन देते मंतर।
ऐसे गुरु से बच के रहना, झूठे जिनके तंतर।।
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