Monday, January 6, 2020

नेताओं पर मुसलसल ग़ज़ल

2*7 (नेताओं पर मुसलसल ग़ज़ल)

माल पराया खाएँ हम,
नेता तब कहलाएँ हम।

जनता की दुखती रग से,
अपनी जीत पकाएँ हम।

देश भले लुटता जाए,
अपनी फ़िक्र जताएँ हम।

अपनी तो तिकड़म सारी,
कैसे कुर्सी पाएँ हम।

बात किसी की हम न सुनें,
बस खुद की ही गाएँ हम।

झूठे सपनों को दिखला,
जनता खूब लुभाएँ हम।

'नमन' किसे परवाह यहाँ,
भाएँ या ना भाएँ हम।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-5-19

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