Saturday, May 22, 2021

पंचिक - (विविध-1)

(पंचिक)

राजनीति में गये हैं घुस सब उचक्के चोर,
श्राद्धों वाले कौव्वों जैसे उतपाती घनघोर।
पड़ जाये जहाँ पाँव,
मचा देते काँव काँव,
चाट गये देश सारा निकमे मुफतखोर।
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नेता बने जब से ही गाँव के ये लप्पूजी,
राजनीति में भी वे चलाने लगे चप्पूजी।
बेसुरी अलापै राग,
सुन सभी जावै भाग।
लगे हैं ये कहलाने तब से ही भप्पूजी।।
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पट्टी बाँधी राज माता भीष्म हुआ दरकिनार,
द्रौपदी की देखो फिर लज्जा हुई तार तार।
न्याय की वेदियों पर,
चलते बुलडोजर,
शेरों के घरों में जब जन्म लेते हैं सियार।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-09-2020

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