बह्र:- 2122 2122 2122 212
जब से देखा उन को मैं तो क़ैस जैसा बन गया,
अच्छा खासा जो था पहले क्या से अब क्या बन गया।
हाल कुछ ऐसा हुआ उनकी अदाएँ देख कर,
बन फ़साना सब की आँखों का मैं काँटा बन गया।
पेश क्या महफ़िल में कर दी इक लिखी ताज़ा ग़ज़ल,
घूरती सब की निगाहों का निशाना बन गया।
कामयाबी की बुलंदी पे गया गर चढ़ कोई,
हो सियासत में वो शामिल इक लुटेरा बन गया।
आये वो अच्छे दिनों का झुनझुना दे चल दिये,
देश के बहरों के कानों का वो बाजा बन गया।
लोगों की जो डाह में था इश्क़ का मेरा जुनूँ,
अब वो उन के जी को बहलाने का ज़रिया बन गया।
जो 'नमन' सब को समझता था महज कठपुतलियाँ,
आज वो जनता के हाथों खुद खिलौना बन गया।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2018
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