बह्र:- 22 22 22 22 22 22 222
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं,
आतिशबाज़ी धूम धड़ाके हर नुक्कड़ पर होते हैं।
पकवानों की खुशबू छायी, आरतियों के स्वर गूँजे,
त्योहारों के ये ही क्षण खुशियों के अवसर होते हैं।
अनदेखी परिणामों की कर जंगल नष्ट करें मानव,
इससे नदियों का जल सूखे बेघर वनचर होते हैं।
क्या कहिये ऐसों को जो रहतें तो शीशों के पीछे,
औरों की ख़ातिर उनके हाथों में पत्थर होते हैं।
कायर तो छुप वार करें या दूम दबा कर वे भागें,
रण में डट रिपु जो ललकारें वे ताकतवर होते हैं।
दुबके रहते घर के अंदर भारी सांसों को ले हम,
आपे से सरकार हमारे जब भी बाहर होते हैं।
कमज़ोरों पर ज़ोर दिखायें गेह उजाड़ें दीनों के,
बर्बर जो होते हैं वे अंदर से जर्जर होते हैं।
पर हित में विष पी कर के देवों के देव बनें शंकर,
त्यज कर स्वार्थ करें जो सेवा पूजित वे नर होते हैं।
दीन दुखी के दर्द 'नमन' जो कहते अपनी ग़ज़लों में,
वैसे ही कुछ खास सुख़नवर सच्चे शायर होते हैं।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-10-20
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