Monday, September 9, 2019

श्रृंगार छंद "तड़प"

सजन मत प्यास अधूरी छोड़।
नहीं कोमल मन मेरा तोड़।।
बहुत ही तड़पी करके याद।
सुनो अब तो तुम अंतर्नाद।।

सदा तारे गिन काटी रात।
बादलों से करती थी बात।।
रही मैं रोज चाँद को ताक।
कलेजा होता रहता खाक।।

मिलन रुत आई बरसों बाद।
हृदय में छाया अति आह्लाद।।
बजा इस वीणा का हर तार।
बहा दो आज नेह की धार।।

गले से लगने की है चाह।
निकलती साँसों से अब आह।।
सभी अंगों में एक उमंग।
हुई जैसे उन्मुक्त मतंग।।

देख लो होंठ रहें है काँप।
मिलन की आतुरता को भाँप।।
बाँह में भर कर तन यह आज।
छेड़ दो रग रग के सब साज।।

समर्पण ही है मेरा प्यार।
सजन अब कर इसको स्वीकार।।
मिटा दो जन्मों की सब प्यास।
पूर्ण कर दो सब मेरी आस।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-08-2016

श्रृंगार छंद "विधान"

श्रृंगार छंद बहुत ही मधुर लय का 16 मात्रा का चार चरण का छंद है। तुक दो दो चरण में है। इसकी मात्रा बाँट 3 - 2 - 8 - 3 (ताल) है। प्रारंभ के त्रिकल के तीनों रूप मान्य है जबकि अंत का त्रिकल केवल दीर्घ और लघु (21) होना चाहिए। द्विकल 1 1 या 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना और अठकल का अंत द्विकल से होना अनुमान्य हैं।

श्रृंगार छंद का 32 मात्रा का द्विगुणित रूप महा श्रृंगार छंद कहलाता है। यह चार चरणों का छंद है जिसमें तुकांतता 32 मात्रा के दो दो चरणों में निभायी जाती है। यति 16 - 16 मात्रा पर पड़ती है।

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया

लावणी छन्द "विधान"

लावणी छन्द सम पद मात्रिक छंद है। इस छन्द में चार चरण होते हैं, जिनमें प्रति चरण 30 मात्राएँ होती हैं।

प्रत्येक चरण दो विभाग में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 निर्धारित होती है। अर्थात् विषम पद 16 मात्राओं का और सम पद 14 मात्राओं का होता है। दो-दो चरणों की तुकान्तता का नियम है। चरणान्त सदैव गुरु या 2 लघु से होना चाहिये।

16 मात्रिक वाले पद का विधान और मात्रा बाँट ठीक चौपाई छंद वाला है। 14 मात्रिक पद की बाँट 12+2 है। 12 मात्रिक 3 चौकल या एक अठकल और एक चौकल हो सकते हैं। चौकल और अठकल के सभी नियम लागू होंगे।

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया

लावणी छन्द "गृह-प्रवेश"

सपनों का संसार हमारा, नव-गृह यह मंगलमय हो।
कीर्ति पताका इसकी फहरे, सुख वैभव सब अक्षय हो।।
यह विश्राम-स्थली सब की बन, शोक हृदय के हर लेवे।
इसमें वास करे उसको ये, जीवन का हर सुख देवे।।

तरुवर सी दे शीतल छाया, नींव रहे दृढ़ इस घर की।
कृपा दृष्टि बरसे इस पर नित, सवित, मरुतगण, दिनकर की।।
विघ्न हरे गणपति इस घर के, रिद्धि सिद्धि का वास रहे।
शुभ ऐश्वर्य लाभ की धारा, घर में आठों याम बहे।।

कुटिल दृष्टि इस नेह-गेह पर, नहीं किसी की कभी पड़े।
रिक्त कभी हो जरा न पाये, पय, दधि, घृत के भरे घड़े।।
परिजन रक्षित सदा यहाँ हो, अमिय-धार इसमें बरसे।
हो सत्कार अतिथि का इसमें, याचक नहीं यहाँ तरसे।।

दूर्वा, श्री फल, कुंकुम, अक्षत, दैविक भौतिक विपद हरे।
वरुण देव का पूर्ण कलश ये, घर के सब भंडार भरे।।
इस शुभ घर से जीवन-पथ में, आगे बढ़ते जायें हम।
सकल भाव ये उर में धर के, मंगल गृह में आयें हम।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-04-19

Friday, September 6, 2019

ग़ज़ल (जो मुसीबत में किसी के काम आता है)

बह्र:- 2122*3  2

जो मुसीबत में किसी के काम आता है,
सबसे पहले उसका दिल में नाम आता है।

टूट गर हर आस जाए याद हरदम रख,
अंत में तो काम केवल राम आता है।

मात के दरबार में नर सोच के ये जा,
माँ-कृपा जिस पे हो माँ के धाम आता है।

दुख का आना सुख का जाना ठीक वैसे ही,
ज्यों अँधेरा दिन ढ़ले हर शाम आता है।

जो ख़ुदा पे रख भरौसा ज़िंदगी जीता,
उसको ही अल्लाह का इलहाम आता है।

राह सच्चाई की चुन ली अब किसे परवाह,
सर पे किसका कौनसा इल्ज़ाम आता है।

गर समझते हो 'नमन' ये काम है अच्छा,
क्यों हो फिर ये फ़िक्र क्या परिणाम आता है

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2018

(धुन- बस यही अपराध मैं हर बार)

ग़ज़ल (देश के गद्दार जो पहचान)

बह्र:- 2122*3

देश के गद्दार जो पहचान लो सब,
उनके मंसूबों की फ़ितरत जान लो सब।

जब भी छेड़े देश का इतिहास कोई,
चुप न बैठो बात का संज्ञान लो सब।

नाग कोई देश में गर फन उठाए,
उस को ठोकर से कुचल दें ठान लो सब।

देश से बढ़कर नहीं कोई जहाँ में, 
दिल की गहराई से इसको मान लो सब।

सिंह सी हुंकार भर जागो जवानों,
देख कर दुश्मन को सीना तान लो सब।

दुश्मनों को देश के करने उजागर,
देश का प्रत्येक कोना छान लो सब।

देश को हम नित 'नमन' कर मान देवें,
भारती माँ से यही वरदान लो सब।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-01-2017

ग़ज़ल (आज कहने जा रहा कुछ अनकही)

बह्र:- 2122  2122  212

आज कहने जा रहा कुछ अनकही,
बात अक्सर मन में जो आती रही।

आज की सच्चाई मित्रों है यही,
सबके मन भावे कहो हरदम वही।

खोखली अब हो रही रिश्तों की जड़,
मान्यताएँ जा रहीं हैं सब ढ़ही।

खो रहे माता पिता सम्मान अब,
भावनाएँ आधुनिकता में बही।

आज बे सिर पैर की सब हाँकते,
हो गया क्या अब दिमागों का दही।

हर तरफ आतंकियों का जोर है,
निरपराधों के लहू से तर मही।

बात कड़वी पर खरी कहता 'नमन',
तय जमाना ही करे क्या है सही।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
12-11-2018

ग़ज़ल (बोलना बात का भी मना है)

बह्र:- 2122   122   122

बोलना बात का भी मना है,
साँस को छोड़ना भी मना है।

दहशतों में सभी जी रहे हैं,
दर्द का अब गिला भी मना है।

ख्वाब देखे कभी जो सभी ने,
आज तो सोचना भी मना है।

जख्म गहरे सभी सड़ गये हैं,
खोलना घाव का भी मना है।

सब्र रोके नहीं रुक रहा अब,
बाँध को तोड़ना भी मना है।

हो गई ख़त्म सहने की ताक़त,
करना उफ़ का ज़रा भी मना है।

अब नहीं है 'नमन' का ठिकाना,
आशियाँ ढूंढना भी मना है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-11-16

ग़ज़ल (चहरे पे ये निखार)

ग़ज़ल (चहरे पे ये निखार)

बह्र:- 2122  1212  22/112

चहरे पे ये निखार किसका है?
आँखों में भी ख़ुमार किसका है?

जख्म दे छिप रहा जो, छोड़ उसे,
दिल के तीर_आर पार किसका है?

खायी चोटें ही दिल की सुन सुन के,
फिर बता एतबार किसका है?

सोचता हूँ मगर न लब खुलते,
मुझ पे इतना ये भार किसका है?

चूर सत्ता के मद में जो हैं सुनें,
बे-रहम वक़्त यार किसका है?

मैं जमाने से क्यों चुराऊँ नज़र,
मेरे सर पर उधार किसका है?

कोई बतला तो दे ख़ुदा के सिवा,
ये 'नमन' ख़ाकसार किसका है?

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-05-18

Friday, August 16, 2019

पुछल्लेदार मुक्तक "नेताओं का खेल"

नेताओं ने आज देश में कैसा खेल रचाया है।
इनकी मनमानी के आगे सर सबका चकराया है।
लूट लूट जनता को इनने भारी माल बनाया है।
स्विस बैंकों में खाते रखकर काला धन खिसकाया है।।

सत्ताधीशों ने देश को है बाँटा,
करारा मारा चाँटा,
यही तो चुभे काँटा,
सुनोरे मेरे सब भाइयों,
बासुदेव कवि दर्द ये सुनाता।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-04-18

मुक्तक (साहित्य, भाषा)

भरा साहित्य सृजकों से हमारा ये सुखद परिवार,
बड़े गुरुजन का आशीर्वाद अरु गुणग्राहियों का प्यार,
यहाँ सम्यक समीक्षाओं से रचनाएँ परिष्कृत हों,
कहाँ संभव कि ऐसे में किसी की कुंद पड़ जा धार।

1222*4
*********

यहाँ काव्य की रोज बरसात होगी।
कहीं भी न ऐसी करामात होगी।
नहाओ सभी दोस्तो खुल के इसमें।
बड़ी इससे क्या और सौगात होगी।।

122×4
*********
हिन्दी

संस्कृत भाषा की ये पुत्री, सर्व रत्न की खान है,
आज अभागी सन्तानों से, वही रही खो शान है,
थाल पराये में मुँह मारो, पर ये हरदम याद हो,
हिन्दी ही भारत को जग में, सच्ची दे पहचान है।

(16+13 मात्रा)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-10-16

मौक्तिका (जो सत्यता ना पहचानी)

2*9 (मात्रिक बहर)
(पदांत 'ना पहचानी', समांत 'आ' स्वर)

दूजों के गुण भारत तुम गाते,
अपनों की प्रतिभा ना पहचानी।
तुम मुख अन्यों का रहे ताकते,
पर स्वावलम्बिता ना पहचानी।।

सोने की चिड़िया देश हमारा,
था जग-गुरु का पद सबसे न्यारा।
किस हीन भावना में घिर कर अब,
वो स्वर्णिम गरिमा ना पहचानी।।

जिनको तूने उपदेश दिया था,
असभ्य से जिनको सभ्य किया था।
पर आज उन्हीं से भीख माँग के,
वह खोई लज्जा ना पहचानी।।

सम्मान के' जो सच्चे अधिकारी,
है जिनकी प्रतिभा जग में न्यारी।
उन अपनों की अनदेखी कर के,
उनकी अभिलाषा ना पहचानी।।

मूल्यांकन जो प्रतिभा का करते,
बुद्धि-हीन या पैसों पे मरते।
परदेशी वे अपनों पे थोप के',
देश की अस्मिता ना पहचानी।।

गुणी सुधी जन अब देश छोड़ कर,
विदेश जा रहे मुख को मोड़ कर।
लोहा उनने सब से मनवाया,
पर यहाँ रिक्तता ना पहचानी।।

सम्बल विदेश का अब तो छोड़ो,
अपनों से यूँ ना मुख को मोड़ो।
हे भारत 'नमन' करो उसको तुम,
अब तक जो सत्यता ना पहचानी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-2016

कहमुकरी (विविध)

मीठा बोले भाव उभारे
तोड़े वादों में नभ तारे
सदा दिलासा झूठी देता
ए सखि साजन? नहिं सखि नेता!

सपने में नित इसको लपकूँ
मिल जाये तो इससे चिपकूँ
मेरे ये उर वसी उर्वसी
ए सखा सजनि? ना रे कुर्सी!

जिसके डर से तन मन काँपे
घात लगा कर वो सखि चाँपे
पूरा वह निष्ठुर उन्मादी
क्या साजन? न आतंकवादी!

गिरगिट जैसा रंग बदलता
रार करण वो सदा मचलता
उसकी समझुँ न कारिस्तानी
क्या साजन? नहिं पाकिस्तानी!

भेद न जो काहू से खोलूँ
इससे सब कुछ खुल के बोलूँ
उर में छवि जिसकी नित रखली
ए सखि साजन? नहिं तुम पगली!

बारिस में हो कर मतवाला,
नाचे जैसे पी कर हाला,
गीत सुनाये वह चितचोर,
क्या सखि साजन, ना सखि मोर।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-17

"कह मुकरी विधान"

कह मुकरी काव्य की एक पुरानी मगर बहुत खूबसूरत विधा है। यह चार पंक्तियों की संरचना है। यह विधा दो सखियों के परस्पर वार्तालाप पर आधारित है। जिसकी प्रथम 3 पंक्तियों में एक सखी अपनी दूसरी अंतरंग सखी से अपने साजन (पति अथवा प्रेमी) के बारे में अपने मन की कोई बात कहती है। परन्तु यह बात कुछ इस प्रकार कही जाती है कि अन्य किसी बिम्ब पर भी सटीक बैठ सकती है। जब दूसरी सखी उससे यह पूछती है कि क्या वह अपने साजन के बारे में बतला रही है, तब पहली सखी लजा कर चौथी पंक्ति में अपनी बात से मुकरते हुए कहती है कि नहीं वह तो किसी दूसरी वस्तु के बारे में कह रही थी ! यही "कह मुकरी" के सृजन का आधार है।

इस विधा में योगदान देने में अमीर खुसरो एवम् भारतेंदु हरिश्चन्द्र जैसे साहित्यकारों के नाम प्रमुख हैं ।

यह ठीक 16 मात्रिक चौपाई वाले विधान की रचना है। 16 मात्राओं की लय, तुकांतता और संरचना बिल्कुल चौपाई जैसी होती है। पहली एवम् दूसरी पंक्ति में सखी अपने साजन के लक्षणों से मिलती जुलती बात कहती है। तीसरी पंक्ति में स्थिति लगभग साफ़ पर फिर भी सन्देह जैसे कि कोई पहेली हो। चतुर्थ पंक्ति में पहला भाग 8 मात्रिक जिसमें सखी अपना सन्देह पूछती है यानि कि प्रश्नवाचक होता है और दुसरे भाग में (यह भी 8 मात्रिक) में स्थिति को स्पष्ट करते हुए पहली सखी द्वारा उत्तर दिया जाता है ।

हर पंक्ति 16 मात्रा, अंत में 1111 या 211 या 112 या 22 होना चाहिए। इसमें कहीं कहीं 15 या 17 मात्रा का प्रयोग भी देखने में आता है। न की जगह ना शब्द इस्तेमाल किया जाता है या नहिं भी लिख सकते हैं। सखी को सखि लिखा जाता है।

कुछ उदाहरण

1
बिन आये सबहीं सुख भूले।
आये ते अँग-अँग सब फूले।।
सीरी भई लगावत छाती।
ऐ सखि साजन ? ना सखि पाती।।
........अमीर खुसरो......

2
रात समय वह मेरे आवे।
भोर भये वह घर उठि जावे।।
यह अचरज है सबसे न्यारा।
ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा।।
........अमीर खुसरो......

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

Tuesday, August 13, 2019

दोहा (प्रभु ही रखते ध्यान)

दोहा छंद

जीव जंतु जंगम जगत, सबको समझ समान।
योग क्षेम करके वहन, प्रभु ही रखते ध्यान।।

राम, कृष्ण, वामन कभी, कूर्म, मत्स्य अभिधान।
पाप बढ़े अवतार ले, प्रभु ही रखते ध्यान।।

ब्रह्म-रूप उद्गम करे, रुद्र-रूप अवसान।
विष्णु-रूप में सृष्टि का, प्रभु ही रखते ध्यान।।

अर्जुन के बन सारथी, गीता कीन्हि बखान।
भक्त दुखों में जब घिरे, प्रभु ही रखते ध्यान।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-06-19

कश्मीरी पत्थरबाजों पर दोहे

दोहा छंद

धरती का जो स्वर्ग था, बना नर्क वह आज।
गलियों में कश्मीर की, अब दहशत का राज।।

भटक गये सब नव युवक, फैलाते आतंक।
सड़कों पर तांडव करें, होकर के निःशंक।।

उग्रवाद की शह मिली, भटक गये कुछ छात्र।
ज्ञानार्जन की उम्र में, बने घृणा के पात्र।।

पत्थरबाजी खुल करें, अल्प नहीं डर व्याप्त।
सेना का भी भय नहीं, संरक्षण है प्राप्त।।

स्वारथ की लपटों घिरा, शासन दिखता पस्त।
छिन्न व्यवस्थाएँ सभी, जनता भय से त्रस्त।।

खुल के पत्थर बाज़ ये, बरसाते पाषाण।
देखें सब असहाय हो, कहीं नहीं है त्राण।।

हाथ सैनिकों के बँधे, करे न शस्त्र प्रयोग।
पत्थर बाज़ी झेलते, व्यर्थ अन्य उद्योग।।

सत्ता का आधार है, तुष्टिकरण का मंत्र।
बेबस जनता आज है, 'नमन' तुझे जनतंत्र।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-01-2019

रति छंद "प्यासा मन-भ्रमर"

मन मोहा, तन कुसुम सम तेरा।
हर लीन्हा, यह भ्रमर मन मेरा।।
अब तो ये, रह रह छटपटाये।
कब तृष्णा, परिमल चख बुझाये।।

मृदु हाँसी, जिमि कलियन खिली है।
घुँघराली, लट-छवि झिलमिली है।।
मधु श्वासें, मलय-महक लिये है।
कटि बांकी, अनल-दहक लिये है।।

मतवाली, शशि वदन यह गोरी।
मृगनैनी, चपल चकित चकोरी।।
चलती तो, लख हरिण शरमाये।
यह न्यारी, छवि न वरणत जाये।।

लगते हैं, अधर पुहुप लुभाये।
तब क्यों ना, सब मिल मन जलाये।।
मन भौंरा, निरखत डगर तेरी।
मिल ने को, बिलखत कर न देरी।।
===============
लक्षण छंद:-

'रति' छंदा', रख गण "सभनसागे"।
यति चारा, अरु नव वरण साजे।।

"सभनसागे" = सगण भगण नगण सगण गुरु

( 112  2,11  111  112  2)
13वर्ण, यति 4-9 वर्णों पर,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत
*****************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-01-19

यशोदा छंद "प्यारी माँ"

यशोदा छंद / कण्ठी छंद

तु मात प्यारी।
महा दुलारी।।
ममत्व पाऊँ।
तुझे रिझाऊँ।।

गले लगाऊँ।
सदा मनाऊँ।।
करूँ तुझे माँ।
प्रणाम मैं माँ।।

तु ही सवेरा।
हरे अँधेरा।।
बिना तिहारे।
कहाँ सहारे।।

दुलार देती।
बला तु लेती।।
सनेह दाता।
नमामि माता।।
===========
यशोदा छंद / कण्ठी छंद विधान -

रखो "जगोगा" ।
रचो 'यशोदा'।।

"जगोगा" = जगण, गुरु गुरु  
(121 22) = 5 वर्ण की वर्णिक छंद, 4  चरण,
2-2 चरण समतुकांत।

"कण्ठी छंद" के नाम से भी यह छंद जानी जाती है, जिसका सूत्र -

कण्ठी छंद विधान -

"जगाग" वर्णी।
सु-छंद 'कण्ठी'।।
"जगाग" = जगण गुरु गुरु (121 2 2) = 5 वर्ण की वर्णिक छंद।
**************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-06-17

Friday, August 9, 2019

हाइकु (राजनेता)

पिता कोमल
संपूर्ण-स्वामी सुत
रोज दंगल।
**

बुआ की छाया
भतीजा भरमाया
अजब माया।
**

अहं सम्राज्य
हिंसा में घिरा राज्य
ममता लुप्त।
**

राहु-लगन
पीढ़ियों का सम्राज्य
हुआ समाप्त।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-06-19

आरोही अवरोही पिरामिड (तेरी याद)

(1-7 और 7-1)

पी
कर
ये आँसू
जी  रहे  हैं
किसी तरह।
आँसू बह  रहे
आँखों से रह रह।

नहीं टिक रहा है
अब कहीं भी जी।
याद में तेरी
हर रोज
जी रहे
खून
पी।
******

जी
रहे
जिंदगी
अब हम
आसरे तेरे।
उजालों में छाए
घनघोर  अंधेरे।

गुजरते  हैं   दिन
अब आँसू पी पी।
तेरी याद में
है कितना
तड़पा
मेरा
जी।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-11-16