Monday, September 9, 2019

लावणी छन्द "गृह-प्रवेश"

सपनों का संसार हमारा, नव-गृह यह मंगलमय हो।
कीर्ति पताका इसकी फहरे, सुख वैभव सब अक्षय हो।।
यह विश्राम-स्थली सब की बन, शोक हृदय के हर लेवे।
इसमें वास करे उसको ये, जीवन का हर सुख देवे।।

तरुवर सी दे शीतल छाया, नींव रहे दृढ़ इस घर की।
कृपा दृष्टि बरसे इस पर नित, सवित, मरुतगण, दिनकर की।।
विघ्न हरे गणपति इस घर के, रिद्धि सिद्धि का वास रहे।
शुभ ऐश्वर्य लाभ की धारा, घर में आठों याम बहे।।

कुटिल दृष्टि इस नेह-गेह पर, नहीं किसी की कभी पड़े।
रिक्त कभी हो जरा न पाये, पय, दधि, घृत के भरे घड़े।।
परिजन रक्षित सदा यहाँ हो, अमिय-धार इसमें बरसे।
हो सत्कार अतिथि का इसमें, याचक नहीं यहाँ तरसे।।

दूर्वा, श्री फल, कुंकुम, अक्षत, दैविक भौतिक विपद हरे।
वरुण देव का पूर्ण कलश ये, घर के सब भंडार भरे।।
इस शुभ घर से जीवन-पथ में, आगे बढ़ते जायें हम।
सकल भाव ये उर में धर के, मंगल गृह में आयें हम।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-04-19

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