Tuesday, December 24, 2019

रुबाई (4-6)

रुबाई -4

हाथी को दिखा आँख रहा चूहा है,
औकात नहीं कुछ भी मगर फूला है,
कश्मीर न खैरात में बँटता है ए सुन,
लगता है तु पैदा ही हुआ भूखा है।

रुबाई -5

झकझोर हमें सकते न ये झंझावात,
जितनी भी मिले ज़ख्मों की चाहे सौगात,
जीते हैं सदा फ़क्र से रख अपनी अना,
जो हिन्द में है वैसी कहाँ ओर ये बात।

रुबाई -6

शबनम सा जबीं पर है पसीना छलका,
क्या हुस्न का ये आब जो यूँ है झलका,
या टूट गया सब्र घटा से छाये,
लहराती हुई जुल्फों के इन बादल का।
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रुबाई विधान:- 221  1221  122  22/112
1,2,4 चरण तुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-09-19

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