ग़ज़ल (चढ़ी है एक धुन मन में)
नारी शक्ति को समर्पित मुसलसल ग़ज़ल।
1222 1222 1222 1222
चढ़ी है एक धुन मन में पढ़ेंगी जो भी हो जाए,
बड़ी अब इस जहाँ में हम बनेंगी जो भी हो जाए।
कोई कमजोर मत समझो नहीं हम कम किसी से हैं,
सफलता की बुलन्दी पे चढ़ेंगी जो भी हो जाए।
बहुत गहरी है खाई नर व नारी में सदा से ही,
बराबर उसको करने में लगेंगी जो भी हो जाए।
हिक़ारत से नहीं देखे हमें दुनिया समझ ले अब,
नहीं हक़ जो मिला लेके रहेंगी जो भी हो जाए।
जमीं हो आसमां चाहे समंदर हो या पर्वत हो,
मिला कदमों को मर्दों से चलेंगी जो भी हो जाए।
भरेंगी फौज को हम भी चलेंगी संग सैना के,
वतन के वास्ते हम भी लड़ेंगी जो भी हो जाए।
हिमालय से इरादे हैं अडिग विश्वास वालीं हम,
'नमन' हम पूर्ण मन्सूबे करेंगी जो भी हो जाए।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन,
तिनसुकिया
17-10-2016
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