Monday, January 6, 2020

ग़ज़ल (तुम्हें जब भी हमारी छेड़खानी)

बह्र:- 1222 1222 1222 1222

तुम्हें जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।

तुम्हारी मेज़बानी की चलेगी जब कभी चर्चा,
हमें महफ़िल के गीतों की रवानी याद आएगी।

मची है धूम होली की ज़रा खिड़की से झाँको तो,
इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।

कभी आभासी जग मोबायलों का छोड़ के देखो,
तो यारों में ही सिमटी जिंदगानी याद आएगी।

जमीं रंगी फ़िज़ा रंगी बिना तेरे नहीं कुछ ये,
झलक तेरी मिले तो हर पुरानी याद आएगी।

कन्हैया की करेंगे याद जब भी बाल लीलाएँ,
लिए हाथों में लकुटी नंदरानी याद आएगी।

'नमन' होली की पी के भंग खुल्ला छोड़ दे खुद को,
तुझे बीते दिनों की हर कहानी याद आएगी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-02-18

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