इस ब्लॉग को “नयेकवि” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य नये कवियों की रचनाओं को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके। यह “नयेकवि” ब्लॉग उन सभी हिन्दी भाषा के नवोदित कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नये ब्लॉग “नयेकवि” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
Saturday, October 10, 2020
मानव छंद "नारी की व्यथा"
Monday, October 5, 2020
ग़ज़ल (परंपराएं निभा रहे हैं)
ग़ज़ल (रोग या कोई बला है)
Saturday, October 3, 2020
हरिणी छंद "राधेकृष्णा नाम-रस"
इन रस भरे, नामों का तो, महत्त्व अपार है।।
चिर युगल ये, जोड़ी न्यारी, त्रिलोक लुभावनी।
जहँ जहँ रहे, राधा प्यारी, वहीं घनश्याम हैं।
परम द्युति के, श्रेयस्कारी, सभी परिणाम हैं।।
बहुत महिमा, नामों की है, इसे सब जान लें।
सब हृदय से, संतों का ये, कहा सच मान लें।।
अति व्यथित हो, झेलूँ पीड़ा, गिरा भव-कूप में।
मन विकल है, डूबूँ कैसे, रमा हरि रूप में।।
भुवन भर में, गाथा गाऊँ, सदा प्रभु नाम की।
मन-नयन से, लीला झाँकी, लखूँ ब्रज-धाम की।।
मन महँ रहे, श्यामा माधो, यही अरदास है।
जिस निलय में, दोनों सोहे, वहीं पर रास है।।
युगल छवि की, आभा में ही, लगा मन ये रहे।
'नमन' कवि की, ये आकांक्षा, इसी रस में बहे।।
=============
लक्षण छंद: (हरिणी छंद)
मधुर 'हरिणी', राचें बैठा, "नसामरसालगे"।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।
"नसामरसालगे" = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
चार चरण, दो दो समतुकांत।
****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-10-20
Friday, September 25, 2020
विविध मुक्तक -3
पुछल्लेदार मुक्तक "खुदगर्ज़ी नेता"
Sunday, September 20, 2020
गुर्वा (पीड़ा)
अत्याचार देख भागें,
शांति शांति चिल्लाते,
छद्म छोड़ अब तो जागें।
***
पीड़ा सारी कहता,
नीर नयन से बहता,
अंधी दुनिया हँसती।
***
बाढ कहीं तो सूखा है,
सिसक रहे वन उजड़े,
मनुज लोभ का भूखा है,
***
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-04-20
Wednesday, September 16, 2020
ग्रंथि छंद (गीतिका, देश का ऊँचा सदा, परचम रखें)
देश का ऊँचा सदा, परचम रखें,
विश्व भर में देश-छवि, रवि सम रखें।
मातृ-भू सर्वोच्च है, ये भाव रख,
देश-हित में प्राण दें, दमखम रखें।
विश्व-गुरु भारत रहा, बन कर कभी,
देश फिर जग-गुरु बने, उप-क्रम रखें।
देश का गौरव सदा, अक्षुण्ण रख,
भारती के मान को, चम-चम रखें।
आँख हम पर उठ सके, रिपु की नहीं,
आत्मगौरव और बल, विक्रम रखें।
सर उठा कर हम जियें, हो कर निडर,
मूल से रिपु-नाश का, उद्यम रखें।
रोटियाँ सब को मिलेंं, छत भी मिले,
दीन जन की पीड़ लख, दृग नम रखें।
हम गरीबी को हटा, संपन्न हों,
भाव ये सारे 'नमन', उत्तम रखें।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-08-20
Wednesday, September 9, 2020
दोहे (श्राद्ध-पक्ष)
दोहा छंद
वंदन पितरों का करें, उनका धर हम ध्यान।।
रीत सनातन श्राद्ध है, इस पर हो अभिमान।
श्रद्धा पूरित भाव रख, मानें सभी विधान।।
द्विज भोजन बलिवैश्व से, करें पितर संतुष्ट।
उनके आशीर्वाद से, होते हैं हम पुष्ट।।
पितर लोक में जो बसे, कर असीम उपकार।
बन कृतज्ञ उनका सदा, प्रकट करें आभार।।
मिलता हमें सदा रहे, पितरों का वरदान।
भरें रहे भंडार सब, हों हम आयुष्मान।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-09-20
मधुमती छंद
शुक पिक चहके।।
जन-मन सरसे।
मधु रस बरसे।।
ब्रज-रज उजली।
कलि कलि मचली।।
गलि गलि सुर है।
गिरधर उर है।।
नयन सजल हैं।
वयन विकल हैं।।
हृदय उमड़ता।
मति मँह जड़ता।।
अति अघकर मैं।
तव पग पर मैं।।
प्रभु पसरत हूँ।
'नमन' करत हूँ।
===========
लक्षण छंद:-
"ननग" गणन की।
मधुर 'मधुमती'।।
"ननग" :- 111 111 2 (नगण नगण गुरु)
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
*************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-08-20
Saturday, September 5, 2020
ग़ज़ल (जगमगाते दियों से मही खिल उठी)
ग़ज़ल (नहीं जो चाहते रिश्ते)
ग़ज़ल (इरादे इधर हैं उबलते हुए)
इरादे इधर हैं उबलते हुए,
उधर सारे दुश्मन दहलते हुए।
नये जोश में हम उछलते हुए,
चलेंगे ज़माना बदलते हुए।
हुआ पांच सदियों का वनवास ख़त्म,
विरोधी दिखे हाथ मलते हुए।
अगर देख सकते जरा देख लो,
हमारे भी अरमाँ मचलते हुए।
रहे जो सिखाते सदाकत हमें,
मिले वो जबाँ से फिसलते हुए।
न इतना झुको देख पाओ नहीं,
रकीबों के पर सब निकलते हुए।
बढेंगे 'नमन' सुन लें गद्दार सब,
तुम्हें पाँव से हम कुचलते हुए।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-08-20
Saturday, August 22, 2020
गुर्वा (भक्ति)
वंदन वीणा वादिनी,
मात ज्ञान की दायिनी,
काव्य बोध का मैं कांक्षी।
***
राम नाम:-
राम नाम है सार प्राणी,
बैल बना तू अंधा,
जग है चलती घाणी।
***
सरयू के तट पर बसी,
धूम अयोध्या में मची,
ज्योत राम मंदिर की जगी।
***
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-08-20