मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
जिन कलियों को नित चूमे,
जिन पर तुम गुंजार करे,
क्यों मग्न हुआ इतना झूमे,
निश्चित उनका मकरंद झरे,
लो ठीक से तोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
क्षणिक मधु के पीछे भागे,
नश्वर सुख में है तु रमा,
कैसे तेरे भाग हैं जागे,
जो इनमें तु रहा समा,
मन की गाँठें खोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
नव रस के जहाँ पुष्प खिले,
शांत, करुण तो और श्रृंगार,
वात्सल्य कभी तो भक्ति मिले,
तो वीर, हास्य की है फुहार,
जीवन में इनको घोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
छंदों के रंग बिरंगे हैं दल,
रस अनेक भाव के यहाँ भरे,
जीवन यहाँ का निश्छल,
अलंकार सब सन्ताप हरे,
ना इनका कोई मोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-08-2016
पगले डोल।
जिन कलियों को नित चूमे,
जिन पर तुम गुंजार करे,
क्यों मग्न हुआ इतना झूमे,
निश्चित उनका मकरंद झरे,
लो ठीक से तोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
क्षणिक मधु के पीछे भागे,
नश्वर सुख में है तु रमा,
कैसे तेरे भाग हैं जागे,
जो इनमें तु रहा समा,
मन की गाँठें खोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
नव रस के जहाँ पुष्प खिले,
शांत, करुण तो और श्रृंगार,
वात्सल्य कभी तो भक्ति मिले,
तो वीर, हास्य की है फुहार,
जीवन में इनको घोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
छंदों के रंग बिरंगे हैं दल,
रस अनेक भाव के यहाँ भरे,
जीवन यहाँ का निश्छल,
अलंकार सब सन्ताप हरे,
ना इनका कोई मोल।
मन-भ्रमर काव्य-उपवन में
पगले डोल।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-08-2016
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