बह्र:- 122 21
करे क्या हूर
मिला लंगूर।
नहीं अब आस
जमाना क्रूर।
नहीं तहज़ीब,
जरा भी लूर।
दिखा मत आँख
यहाँ सब शूर।
दबे जो घाव
बने नासूर।
बड़े निरुपाय
व्यथा भरपूर।
'नमन' की नज़्म
बड़ी मगरूर।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-09-19
करे क्या हूर
मिला लंगूर।
नहीं अब आस
जमाना क्रूर।
नहीं तहज़ीब,
जरा भी लूर।
दिखा मत आँख
यहाँ सब शूर।
दबे जो घाव
बने नासूर।
बड़े निरुपाय
व्यथा भरपूर।
'नमन' की नज़्म
बड़ी मगरूर।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-09-19
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