Thursday, October 10, 2019

सार छंद 'महर्षि वाल्मीकि'

सार छंद / ललितपद छंद

दस्यु राज रत्नाकर जग में, वालमीकि कहलाए।
उल्टा नाम राम का इनको, नारद जी जपवाए।।
मरा मरा से राम राम की, सुंदर धुन जब आयी।
वालमीकि जी ने ब्रह्मा सी, प्रभुताई तब पायी।।

घोर तपस्या में ये भूले, तन की सुध ही सारी।
दीमक इनके तन से चिपटे, त्वचा पूर्ण खा डारी।।
प्रणय समाहित क्रोंच युगल को, तीर व्याध जब मारा।
प्रथम अनुष्टुप छंद इन्होंने, करुणा में रच डारा।।

विधि तब प्रगटे, बोले इनसे, शारद मुख से फूटी।
राम-चरित की मधुर पिलाओ, अब तुम जग को बूटी।।
रामायण से महाकाव्य की, इनने सरित बहायी।
करे निमज्जन उसमें ये जग, होते राम सहायी।।

शरद पूर्णिमा के दिन इनकी, मने जयंती प्यारी।
कीर्ति पताका जग में फहरे, शरद चन्द्र सी न्यारी।।
शत शत 'नमन' आदि कवि को है, चरणों में है वन्दन।
धूम धाम से इस अवसर पर, सभी करें अभिनन्दन।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
05-10-17

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