Monday, October 14, 2019

मुक्तक (मुहब्बत)

अगर तुम मिल गई होती मुहब्बत और हो जाती,
खुशी के गीत गाते दिल की फ़ितरत और हो जाती,
लिखा जब ठोकरें खाना गिला करने से अब क्या हो,
मिले होते अगर दिल तो हक़ीक़त और हो जाती।

अगर ये दिल नहीं होता मुहब्बत फिर कहाँ होती,
मुहब्बत गर न होती तो इबादत फिर कहाँ होती,
इबादत के उसूलों पे टिके जग के सभी मजहब,
अगर मजहब न होता तो इनायत फिर कहाँ होती।

(1222*4)
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हर गीत मुहब्बत का चाहत से सँवारा है,
दी दिल ने सदा जब भी तुझको ही पुकारा है,
यादों में तेरी जानम दिन रो के गुजारें हैं,
तू फिर भी रहे रूठी कब दिल को गवारा है।

(221  1222)*2
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इश्क़ के चक्कर में ये कैसी ज़हालत हो गयी,
देखते ही देखते रुस्वा मुहब्बत हो गयी,
सोच ये आगे बढ़े थे, दिल पे उनका है करम,
पर किया ज़ाहिर तो बोले ये हिमाक़त हो गयी।

(2122*3 +  212)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-08-17

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