Saturday, October 5, 2019

ग़ज़ल (कुछ अजीब धाराएं)

बह्र:- (212 1222)*2

कुछ अजीब धाराएं, थी घिरीं सवालों में,
अब फँसीं नहीं वे हैं, उन सियासी चालों में।

होता है कोई ऐसा, शख़्स पैदा सालों में,
छा जो जाये दुनिया के, सारे न्यूज वालों में।

बदगुमानी अब तक जो, करते देश से आये,
राज़ उनके अब सारे, आ गये रिसालों में।

खुद की हाँकनी छोड़ें, अब तो आप नेताजी,
सुनिये दर्द पिंहाँ जो, मुफ़लिसों के नालों में।

खिलखिलाना यूँ छोड़ो, ये डुबो न दें हम को।
पड़ते गहरे जो गड्ढे, इन तुम्हारे गालों में।

बेजुबाँ तेरी मय में, बात वो कहाँ साकी,
बात जो दहकते से, लब के उन पियालों में।

ज़ाफ़रान की खुशबू, छा 'नमन' गयी फिर से,
छँट गये अँधेरे सब, सांस लें उजालों में।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-08-19

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