जब तुम प्रियतम में खोती।
हलचल तब मन में होती।।
तुम अतिसय दुख की मारी।
विरह अगन सहती सारी।।
बरसत अँसुवन की धारा।
तन दहकत बन अंगारा।।
मरम रहित जग से हारी ।
गुजर करत सह लाचारी।।
निश-दिन तब कितने प्यारे।
जब पिय प्रणय-सुधा डारे।।
तन मन हरषित था भारी।
सरस प्रकृति नित थी न्यारी।।
मधुरिम स्मृति गठरी ढ़ोती।
स्मर स्मर कर उनको रोती।।
लहु कटु अनुभव का पीती।
बस दुख सह कर ही जीती।।
============
लक्षण छंद:-
"ननुसगग" वरण की छंदा।
'रथपद' रचत सभी बंदा।।
"ननुसगग" = नगण नगण सगण गुरु गुरु
( 111 111 112 2 2 )
11वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत
***************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-01-19
हलचल तब मन में होती।।
तुम अतिसय दुख की मारी।
विरह अगन सहती सारी।।
बरसत अँसुवन की धारा।
तन दहकत बन अंगारा।।
मरम रहित जग से हारी ।
गुजर करत सह लाचारी।।
निश-दिन तब कितने प्यारे।
जब पिय प्रणय-सुधा डारे।।
तन मन हरषित था भारी।
सरस प्रकृति नित थी न्यारी।।
मधुरिम स्मृति गठरी ढ़ोती।
स्मर स्मर कर उनको रोती।।
लहु कटु अनुभव का पीती।
बस दुख सह कर ही जीती।।
============
लक्षण छंद:-
"ननुसगग" वरण की छंदा।
'रथपद' रचत सभी बंदा।।
"ननुसगग" = नगण नगण सगण गुरु गुरु
( 111 111 112 2 2 )
11वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत
***************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-01-19
No comments:
Post a Comment