बह्र:- 221 2121 1221 212
आँखों के तीर दिल में चुभा कर चले गये,
घायल को छोड़ मुँह को छुपा कर चले गये।
चुग्गा वे शोखियों का चुगा कर चले गये,
सय्याद बनके पंछी फँसा कर चले गये।
आना भी और जाना भी उनका था हादसा,
अनजान से ही मन में समा कर चले गये।
सहरा में है सराब सा उनका ये इश्क़ कुछ,
पूरे न हो वो ख्वाब दिखा कर चले गये।
ताउम्र क़ैद चाहता था अब्रे जुल्फ़ में,
दिखला घटा, वो प्यास बढ़ा कर चले गये।
अनजानों से न आँख लड़ाना ए दिल कभी,
ये सीख कीमती वे सिखा कर चले गये।
अब तो 'नमन' है चश्मे वफ़ा का ही मुंतज़िर,
ख्वाहिश हुजूर क्यों ये जगा कर चले गये।
सहरा=रेगिस्तान
सराब=मृगतृष्णा
अब्रे ज़ुल्फ़=जुल्फ का बादल
चश्मे वफ़ा=वफ़ा भरी नज़र
मुंतज़िर=प्रतीक्षारत
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-06-17
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