Monday, October 14, 2019

मुक्तक (आँसू)

मानस सागर की लहरों के हैं उफान मेरे आँसू,
वर्षों से जो दबी हृदय में वो पीड़ा कहते आँसू,
करो उपेक्षा मत इनकी तुम सुनलो ओ दुनियाँ वालों,
शब्दों से जो व्यक्त न हो उसको कह जाते ये आँसू।

(2×15)
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देख कर के आपकी ये जिद भरी नादानियाँ,
हो गईं लाचार सारी ही मेरी दानाइयाँ,
झेल जिनको कब से मैं बस खूँ के आँसू पी रहा,
लोग सरहाते बता कर आपकी ये खूबियाँ।

(2122*3 + 212)
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हम न वो राह से जो भटक जाएंगे,
इसकी दुश्वारियाँ देख थक जाएंगे,
हम तो खारों में भी हँसते गुल की तरह,
ये वो आँसू नहीं जो छलक जाएंगे

(212*3)
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बासुदेव अग्रवाल ,'नमन'
तिनसुकिया
24-08-17

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