Sunday, October 6, 2019

ग़ज़ल "ईद मुबारक़"

बह्र:- 221 1221 1221 122

रमजान गया आई नज़र ईद मुबारक,
खुशियों का ये दे सबको असर ईद मुबारक।

घुल आज फ़ज़ा में हैं गये रंग नये से,
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक।

पाँवों से ले सर तक है धवल आज नज़ारा,
दे कर के दुआ कहता है हर ईद मुबारक।

सब भेद भुला ईद गले लग के मनायें,
ये पर्व रहे जग में अमर ईद मुबारक।

ये ईद है त्योहार मिलापों का अनोखा,
दूँ सब को 'नमन' आज मैं कर ईद मुबारक।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-06-17

1 comment:

  1. बासुदेव जी ने ईद की पारंपरिक ग़ज़ल बहुत सलीक़े के साथ कही है।

    पाँवों से से ले सर तक है धवल आज नज़ारा में मानों ईदगाह का दृश्य ही सामने आ गया है जहाँ श्वेत परिधान पहने रोज़ेदार रमज़ान के समापन पर नमाज़ अदा कर रहे हैं। कितनी शांति होती है इस दृश्य में। श्वेत रंग वैसे भी शांति का प्रतीक है उसमें एक प्रकार की शीतलता होती है।

    सब भेद भुला कर ईद मनाने की बात और ईद के त्यौहार को अमर करने की बात बहुत अच्छे ढंग से कही गई है।

    मकते का शेर भी अच्छा बना है सच में ये त्यौहार मिलने मिलाने का ही तो त्यौहार है। इसमें बस एक ही काम करना चाहिए कि खूब मिलना मिलाना चाहिए। सबसे हँस कर मिलना ही तो ईद है।

    बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात वाह वाह वाह।

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