दोहा छंद
शीश नवा वन्दन करूँ, हृदय बसो रघुनाथ।
तुलसी के प्रभु रामजी, धनुष बाण ले हाथ।।
राही अब तो चेत जा, भज ले मन से राम।
कष्ट मिटे सब राह के, बनते बिगड़े काम।।
महिमा है प्रभु राम की, चारों ओर अनंत।
गावै वेद पुराण सब, ऋषि मुनि साधू संत।।
रघुकुल भूषण राम का, ऐसा प्रखर प्रताप।
नाम जाप से ही कटे, भव के सारे पाप।।
दीन पतित जन का सदा, राम करे उद्धार।
प्रभु से बढ़ कर कौन जो, भव से करता पार।।
सीता माता लाज रख, नित करता मैं ध्यान।
देकर के आशीष तुम, मात बढ़ाओ मान।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-01-19
तुलसी के प्रभु रामजी, धनुष बाण ले हाथ।।
राही अब तो चेत जा, भज ले मन से राम।
कष्ट मिटे सब राह के, बनते बिगड़े काम।।
महिमा है प्रभु राम की, चारों ओर अनंत।
गावै वेद पुराण सब, ऋषि मुनि साधू संत।।
रघुकुल भूषण राम का, ऐसा प्रखर प्रताप।
नाम जाप से ही कटे, भव के सारे पाप।।
दीन पतित जन का सदा, राम करे उद्धार।
प्रभु से बढ़ कर कौन जो, भव से करता पार।।
सीता माता लाज रख, नित करता मैं ध्यान।
देकर के आशीष तुम, मात बढ़ाओ मान।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-01-19
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