Thursday, July 11, 2019

मरहठा छंद "कृष्ण लीलामृत"

धरती जब व्याकुल, हरि भी आकुल, हो कर लें अवतार।
कर कृपा भक्त पर, दुख जग के हर, दूर करेंं भू भार।।
द्वापर युग में जब, घोर असुर सब, देन लगे संताप।
हरि भक्त सेवकी, मात देवकी, सुत बन प्रगटे आप।।

यमुना जल तारन, कालिय कारन, जो विष से भरपूर।
कालिय शत फन पर, नाचे जम कर, किया नाग-मद चूर।।
दावानल भारी, गौ मझधारी, फँस कर व्याकुल घोर।
कर पान हुताशन, विपदा नाशन, कीन्हा माखनचोर।।

विधि माया कीन्हे, सब हर लीन्हे, गौ अरु ग्वालन-बाल।
बन गौ अरु बालक, खुद जग-पालक, मेटा ब्रज-जंजाल।।
ब्रह्मा इत देखे, उत भी पेखे, दोनों एक समान।
तुम प्रभु अवतारी, भव भय हारी, ब्रह्म गये सब जान।।

ब्रज विपदा हारण, सुरपति कारण, आये जब यदुराज।
गोवर्धन धारा, सुरपति हारा, ब्रज का साधा काज।
मथुरा जब आये, कुब्जा भाये, मुष्टिक चाणुर मार।
नृप कंस दुष्ट अति, मामा दुर्मति, वध कर, दी भू तार।।

शिशुपाल हने जब, अग्र-पूज्य तब, राजसूय था यज्ञ।
भक्तन के तारक, दुष्ट विदारक, राजनीति मर्मज्ञ।।
पाण्डव के रक्षक, कौरव भक्षक, छिड़ा युद्ध जब घोर।
बन पार्थ शोक हर, गीता दे कर, लाये तुम नव भोर।।

ब्रज के तुम नायक, अति सुख दायक, सबका देकर साथ।
जब भीड़ पड़ी है, विपद हरी है, आगे आ तुम नाथ।।
हे कृष्ण मुरारी! जनता सारी, विपदा में है आज।
कर जोड़ सुमरते, विनती करते, रखियो हमरी लाज।
*************
मरहठा छंद विधान:-

यह प्रति चरण कुल 29 मात्रा का छंद है। इसमें यति विभाजन 10, 8,11 मात्रा का है।
मात्रा बाँट:-
प्रथम यति 2+8 =10 मात्रा
द्वितीय यति 8,
तृतीय यति 8+3 (ताल यानि 21) = 11 मात्रा
अठकल की जगह दो चौकल लिये जा सकते हैं। अठकल चौकल के सब नियम लगेंगे।
4 चरण सम तुकांत या दो दो चरण समतुकांत। अंत्यानुप्रास हो तो और अच्छा।
===========

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-10-2016

बरवै छंद "शिव स्तुति"

सदा सजे शीतल शशि, इनके माथ।
सुरसरिता सर सोहे, ऐसो नाथ।।

सुचिता से सेवत सब, है संसार।
हे शिव शंकर संकट, सब संहार।

आक धतूरा चढ़ते, घुटती भंग।
भूत गणों को हरदम, रखते संग।।

गले रखे लिपटा के, सदा भुजंग।
डमरू धारी बाबा, रहे मलंग।।

औघड़ दानी तुम हो, हर लो कष्ट।
दुख जीवन के सारे, कर दो नष्ट।।

करूँ समर्पित तुमको, सारे भाव।
दूर करो हे भोले, भव का दाव।।
==============
बरवै छंद विधान:-

यह बरवै दोहा भी कहलाता है। बरवै अर्ध-सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती हैं। विषम चरण के अंत में गुरु या दो लघु होने चाहिए। सम चरणों के अन्त में ताल यानि 2 1 होना आवश्यक है। मात्रा बाँट विषम चरण का 8+4 और सम चरण का 4+3 है। अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं। अठकल और चौकल के सभी नियम लगेंगे।
********************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-08-2016

Saturday, July 6, 2019

212*4 बह्र के गीत

1) छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
    ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
2) कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियों
3) बेखुदी में सनम उठ गए जो कदम
4) जिस गली में तेरा घर न हो बालमा
5) मेरे महबूब में क्या नहीं क्या नहीं   
6) दिल ने मज़बूर इतना ज़ियादा किया
7) ऐ वतन ऐ वतन तेरे सर की कसम
8) खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी
9) हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

गज़ल (याद आती हैं जब)

बह्र:- 212  212  212  212

याद आती हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होती तन्हाइयाँ।

आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।

डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।

गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रहीं कुछ हों मज़बूरियाँ।

मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
शब सी काली ये आतीं न दुश्वारियाँ।

हुस्नवालों से दामन बचाना ए दिल,
मात दानिश को दें उनकी नादानियाँ।

आग मज़हब की जो भी लगाते 'नमन',
इसमें अपनी ही वे सेंकते रोटियाँ।

दानिश=अक्ल, बुद्धि

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
3-4-18

ग़ज़ल (गीत खुशियों के गाते)

बह्र:- 212*3 + 2

गीत खुशियों के गाते चलेंगे,
जख्म दिल के मिटाते चलेंगे।

रंग अपना जमाते चलेंगे,
रोतों को हम हँसाते चलेंगे।

जो मुहब्बत से महरूम तन्हा,
दिल में उनको बसाते चलेंगे।

झेले जेर-ओ-जबर अब तलक सब,
जग में सर अब उठाते चलेंगे।

सुनले अहल-ए-जहाँ कम नहीं हम,
सबसे आगे ही आते चलेंगे।

काम ऐसे करेंगे सभी मिल,
सबको दुनिया में भाते चलेंगे।

दोस्ती को 'नमन' करते हरदम,
नफ़रतों को भुलाते चलेंगे।

जेर-ओ-जबर=जबरदस्ती नीचे लाना, अस्त व्यस्तता
अहल-ए-जहाँ=दुनियाँ वालों

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-17

गीतिका (राम सुमिरन बिना गत नहीं)

(मापनी:- 212  212  212)

राम सुमिरन बिना गत नहीं,
और चंचल ये मन रत नहीं।

व्यर्थ सब कुछ है संसार में,
नाम-जप की अगर लत नहीं।

हैं दिखावे ही जप-तप सभी,
भाव यदि हैं समुन्नत नहीं।

प्राप्त नर-तन का होना वृथा,
भक्ति प्रभु की जो अक्षत नहीं।

लाभ उसकी न चर्चा से कुछ,
बात जो शास्त्र-सम्मत नहीं।

नर वे पशुवत हैं, पर-पीड़ लख
भाव जिनके हों आहत नहीं।

नैन प्यासे 'नमन' मन विकल,
प्रभु-शरण बिन कहीं पत नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-04-18

ग़ज़ल (दरिया है बहुत गहरा)

बह्र:- (221  1222)*2

दरिया है बहुत गहरा, कश्ती भी पुरानी है,
हिम्मत की मगर दिल में, कम भी न रवानी है।

ज़ज़्बा हो जो बढ़ने का, कुछ भी न लगे मुश्किल,
कुछ करने की जीवन में, ये ही तो निशानी है।

दिल उनसे मिला जब से, बदली है फ़ज़ा तब से,
मदहोश नज़ारे हैं, हर शय ही सुहानी है।

बचपन के सुहाने दिन, रह रह के वे याद-आएं,
आँखों में हैं मंज़र सब, हर बात ज़ुबानी है।

औक़ात नहीं कुछ भी, पर आँख दिखाए वो
टकरायेगा हम से तो, मुँह की उसे खानी है।

सिरमौर बने जग का, भारत ये वतन प्यारा,
ये आस हमें पूरी, अब कर के दिखानी है।

जिस ओर 'नमन' देखे, मुफ़लिस ही भरें आहें,
अब सब को गरीबी ये, जड़ से ही मिटानी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-06-19

Saturday, June 22, 2019

हाइकु (राजनीति)

सत्ता का यज्ञ
यजमान हैं विज्ञ
पुरोधा अज्ञ।
**

सत्ता-मिलिंद
पी स्वार्थी मकरंद
हुआ स्वच्छंद।
**

नेता हैं चोर
जनता करे शोर
तंत्र का जोर।
**

जनता ताके
बैठी बगलें झाँके
कुर्सी दे फाके
**

लोक सेवक
जनता का शोषक
स्वयं पोषक।
**

अंगुल पांच
सियासत का हाथ
सब समान।
**

गायों की रोटी
बन्दरों हाथ पड़ी
कुत्तों में बँटी।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-19

सेदोका (किसान)

जापानी विधा (5-7-7-5-7-7)

किसान भाई
मौसम हरजाई
सरकार पराई।
अन्न उगाया
फसल की जगह
हाय रे! मौत उगी।
****

मिट्टी से लड़े
कृषक के फावड़े
तब फ़सल झड़े,
पर हाय रे
तभी मौसम अड़ा
भारी संकट पड़ा।
****

उगानेवाले
ग़म खा के जी रहे
खुद को मिटा रहे।
बेचनेवाले
बादाम पिस्ता खाते
हर  खुशी  मनाते।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
3-09-16

सायली (चमकी बुखार)

चमकी
ऐसी भड़की
काल बन धमकी
मासूमों की
सिसकी।
*****

बिहार
बच्चे बीमार
सोयी पड़ी सरकार
करे हुँकार
बुखार।
*****

मुजफ्फरपुर
बुखार  निष्ठुर
आया बन महिषासुर
केवल चिंतातुर!
सत्तापुर।
*****

महाकाल
बुखार विकराल
बच्चों  पर  भूचाल
सरकारी अस्पताल
बदहाल।

*****
1-2-3-2-1 शब्द
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-06-19

माहिया (कुड़िये)

कुड़िये कर कुड़माई,
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।

धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले।।

गोरी चल लुधियाना,
मौज मनाएँगे,
होटल में खा खाना।

नखरे भारी मेरे,
रे बिक जाएँगे,
कपड़े लत्ते तेरे।।

ले जाऊँ अमृतसर,
सैर कराऊँगा,
बग्गी में बैठा कर।

तुम तो छेड़ो कुड़ियाँ,
पंछी बिणजारा,
चलता बन अब मुँडियाँ।।

नखरे हँस सह लूँगा,
हाथ पकड़ देखो,
मैं आँख बिछा दूँगा।

दिलवाले तो लगते,
चल हट लाज नहीं,
पहले घर में कहते।।

**************
प्रथम और तृतीय पंक्ति तुकांत (222222)
द्वितीय पंक्ति अतुकांत (22222)
**************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-12-16

रुद्र पिरामिड

आरोही अवरोही पिरामिड
(1-11 और 11-1)

हे
शिव
शंकर
जग के हो
तु रखवाले।
डमरू पे नाचे
हो कर मतवाले।
सर्प गले में लिपटे
प्यारा चन्दा जटा छिपाले।
भूत गणों के नाथ अनोखे
विष पी देवों की विपदा टाले।

तन  पर   बाघम्बर   भभूत
भोले की प्राणी महिमा गाले।
दूध  बेल पत्रों को  चढ़ा
पूजो आक  धतूरा ले।
ऐसे दानी बाबा को
पूजा से रिझाले।
'नमन' करो
चरणों में
माथे को
नवा
ले।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-4-18

ताँका (ईश्वर)

जापानी विधा (5-7-5-7-7)

जिसने दिये
कर दो समर्पण
उसे ही पाप,
बन जाओ उज्ज्वल
हो कर के निष्पाप।
**

पाप रहित
नर बन जाता है
ईश स्वरूप,
वह सब प्राणी में
देखे अपना रूप।
**

ईश्वर बैठा
अपने ही अंदर
पर मानव,
ढूंढे उसे बाहर
लाखों प्रयत्न कर।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-06-19

चोका विधान

(चोका कविता)

चोका उच्च स्वर से गायी जाने वाली मूलतः जापानी विधा की लंबी कविता है। हाइकु, ताँका, सेदोका की तरह इस विधा का भी हिन्दी में प्रचलन बढ़ा है। हिन्दी में प्रचलित अन्य जापानी विधा की कविताओं की तरह चोका भी प्रति पंक्ति निश्चित वर्ण संख्या पर आधारित कविता है।

चोका में पहली पंक्ति में पाँच वर्ण रहते हैं। वर्ण में लघु या दीर्घ कोई भी मात्रा हो सकती है। संयुक्त अक्षर युक्त वर्ण एक ही वर्ण में गिना जाता है। जैसे - 'स्वास्थ्य' में वर्ण की संख्या दो है। दूसरी पंक्ति में सात वर्ण होते हैं। इसके बाद 5-7 वर्ण प्रति पंक्ति का यही क्रम आगे बढता जाता है। विषम संख्या की पंक्ति जैसे 1,3,5,7 में पाँच वर्ण रहते हैं और सम संख्या की पंक्ति जैसे 2,4,6,8 में सात वर्ण रहते हैं। एक पूर्ण चोका में सदैव विषम संख्या की पंक्तियां ही होती हैं जो 9,11,13, 21,37 कुछ भी हो सकती हैं। यह सदैव ध्यान में रहे कि अंत की पंक्ति में 7 वर्ण रहे। यही चोका की एक मात्र विषम संख्या क्रमांक पंक्ति होती है जिसमें 7 वर्ण रहते हैं, जो चोका कविता की पटाक्षेप पंक्ति होती है। इस प्रकार किसी भी चोका कविता की संरचना 5-7-5-7-5-7......7 वर्ण की ही रहती है।

हाइकु, ताँका, सेदोका की तरह ही चोका में भी पंक्तियों की स्वतंत्रता निभाना अत्यंत आवश्यक है। हर पंक्ति अपने आप में स्वतंत्र हो परंतु कविता को एक ही भाव में समेटे अग्रसर भी करती रहे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-04-18

क्षणिका (आधुनिकता)

(1)

आधुनिकता का
है बोलबाला
सब कुछ होता जा रहा
छोटा और छोटा
केश और वेशभूषा
घर का अँगना
और मन का कोना।
**
क्षणिका (नई पीढ़ी)
(2)

निर्विकार शांत मुद्रा में
चक्की चला आटा पीसती
मेरी दादी जी का
तेल-चित्र
जो दादा जी ने
शायद अपनी जवानी में
बड़े शौक से
बनवाया था----
वो आज भी
घर की धरोहरों मेंं
संजोया पड़ा है
नवीन पीढ़ी को
म्यूजियम में
खींचता हुआ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-05-17

Sunday, June 16, 2019

कामदा छंद "भारत पाक क्रिकेट मैच"

(2019 वर्ल्ड कप में भारत पाक के मैच पर)

हार पाक की हो मनाइये।
जीत के सभी गीत गाइये।।
खेल आप ऐसा दिखाइये।
धूल पाक को तो चटाइये।।

मार मार छक्के दिखाइये।
पाक के युँ छक्के छुड़ाइये।।
काव्य प्रेमियों को रिझाइये।
मंच को खुशी में डुबाइये।।

इंगलैंड से जीत आइये।
देश में महा मान पाइये।।
शान भारती की बढ़ाइये।
ये क्रिकेट ट्रॉफी दिलाइये।।
*****

कामदा छंद / पंक्तिका छंद विधान -

कामदा छंद जो कि पंक्तिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, १० वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद है।

"रायजाग" ये वर्ण राखते।
छंद 'कामदा' धीर चाखते।।

"रायजाग" = रगण यगण जगण गुरु।

(212  122  121  2) = 10 वर्ण प्रति चरण, 4 चरण, दो दो सम तुकान्त।

*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-06-19

Saturday, June 15, 2019

मनविश्राम छंद "माखन लीला"

माखन श्याम चुरा नित ही, कछु खावत कछु लिपटावै।
ग्वाल सखा सह धूम करे, यमुना तट गउन चरावै।।
फोड़त माखन की मटकी, सब गोरस नित बिखराये।
गोपिन भी लख हर्षित हैं, पर रोष बयन दिखलाये।।

मात यशोमत नित्य मथे, दधि की जब लबलब झारी।
मोहन आय तभी धमकै, अरु बाँह भरत महतारी।।
मात बिलोवत जाय रहे, तब कान्ह करत बरजोरी।
नन्द-तिया पुलकै मुलकै, सुत की लख नित नव त्योरी।।

माधव संग सखा सब ले, जब ग्वालिन गृह मँह धाये।
ऊधम खूब मचाय वहाँ, सब गोपिन हृदय लुभाये।।
पीठ चढ़े इक दूजन की, तब छींकन पर चढ़ जावै।
माखन लूटत भाजन से, दिखलाकर चख चख खावै।।

मोहन की छवि ये उर में, मन उज्ज्वल पर तन कारा।
रोज मचा हुड़दंग यही, हरता बृज-जन-मन सारा।।
गोपिन को ललचा कर के, मनमोहक छवि दिखलावै।
कृष्ण बसो उर में तुम आ, गुण 'बासु' नमन करि गावै।।
=====================
लक्षण छंद:-

"भाभभुभाभनुया" यति दें, दश रुद्र वरण अभिरामा।
छंद रचें कवि वृन्द सभी, मनभावन 'मनविशरामा'।।

"भाभभुभाभनुया" = भगण की 5 आवृत्ति फिर नगण यगण।

211  211  211  2,11  211  111  122
कुल 21 वर्ण, यति 10,11, चार चरण 2-2 समतुकांत
*****************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-01-2017

मकरन्द छंद "कन्हैया वंदना"

किशन कन्हैया, ब्रज रखवैया,
        भव-भय दुख हर, घट घट वासी।
ब्रज वनचारी, गउ हितकारी,
        अजर अमर अज, सत अविनासी।।
अतिसय मैला, अघ जब फैला,
         धरत कमलमुख, तब अवतारा।
यदुकुल माँही, तव परछाँही,
          पड़त जनम तुम, धरतत कारा।।

पय दधि पाना, मृदु मुसकाना,
         लख कर यशुमति, हरषित भारी।
कछु बिखराना, कछु लिपटाना,
         तब यह लगतत, द्युति अति प्यारी।।
मधुरिम शोभा, तन मन लोभा,
          निश दिन निरखत, ब्रज नर नारी।
सुख अति पाके, गुण सब गाके,
           बरणत यह छवि, जग मँह न्यारी।।

असुर सँहारे, बक अघ तारे,
            दनुज रहित महि, नटवर  कीन्ही।
सुर मुनि सारे, कर जयकारे,
            कहत विनय कर, सुध प्रभु लीन्ही।।
अनल दुखारी, वन जब जारी,
             प्रसरित कर मुख, तुम सब पी ली।
कर मुरली है, मन हर ली है,
              लखत सकल यह, छवि चटकीली।।

सुरपति क्रोधा, धर गिरि रोधा,
             विकट विपद हर, ब्रज भय टारा।
कर वध कंसा, गहत प्रशंसा,
             सकल जगत दुख, प्रभु तुम हारा।।
हरि गिरिधारी, शरण तिहारी,
             तुम बिन नहिं अब, यह मन मोहे।
छवि अति प्यारी, जन मन हारी,
             हृदय 'नमन' कवि, यह नित सोहे।।
===============
लक्षण छंद:-

"नयनयनाना, ननगग" पाना,
यति षट षट अठ, अरु षट वर्णा।
मधु 'मकरन्दा', ललित सुछंदा,
रचत सकल कवि, यह मृदु कर्णा।।

"नयनयनाना, ननगग" =  नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु

(111  122,  111  122,  111  111 11,1 111  22)
26 वर्ण,4 चरण,यति 6,6,8,6,वर्णों पर
दो-दो या चारों चरण समतुकांत
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
02-10-2018

भृंग छंद "विरह विकल कामिनी"

सँभल सँभल चरण धरत, चलत जिमि मराल।
बरनउँ किस विध मधुरिम, रसमय मृदु चाल।।
दमकत यह तन-द्युति लख, थिर दृग रह जात।
तड़क तड़ित सम चमकत, बिच मधु बरसात।।

शशि-मुख छवि अति अनुपम, निरख बढ़त प्यास।
यह लख सुरगण-मन मँह, जगत मिलन आस।।
विरह विकल अति अब यह, कनक वरण नार।
दिन निशि कटत न समत न, तरुण-वयस भार।।

अँखियन थकि निरखत मग, इत उत हर ओर।
हलचल विकट हृदय मँह, उठत अब हिलोर।
पुनि पुनि यह कथन कहत, सुध बिसरत मोर।
लगत न जिय पिय बिन अब, बढ़त अगन जोर।।

मन हर कर छिपत रहत, कित वह मन-चोर।
दरसन बिन तड़पत दृग, कछु न चलत जोर।।
विरह डसन हृदय चुभत, मिलत न कछु मन्त्र।
जलत सकल तन रह रह, कछुक करहु तन्त्र।।
===================
लक्षण छंद:-

"ननुननुननु गल" पर यति, दश द्वय अरु अष्ट।
रचत मधुर यह रसमय, सब कवि जन 'भृंग'।।

"ननुननुननु गल" = नगण की 6 आवृत्ति फिर गुरु लघु।

111 111  111  111 // 111  111  21
20 वर्ण,यति 12,8 वर्ण,4 चरण 2-2 तुकांत
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-10-17

Wednesday, June 12, 2019

जनक छंद (2019 चुनाव)

करके सफल चुनाव को,
माँग रही बदलाव को,
आज व्यवस्था देश की।
***

बहुमत बड़ा प्रचंड है,
सत्ता लगे अखंड है,
अब जवाबदेही बढ़ी।
****

रूढ़िवादिता तोड़ के,
स्वार्थ लिप्तता छोड़ के,
काम करे सरकार यह।
***

राजनीति की स्वच्छता,
सभी क्षेत्र में दक्षता,
निश्चित अब तो दिख रही।
***

आसमान को छू रहा,
रग रग से यह चू रहा,
लोगों का उत्साह अब।
***

आशा का संचार है,
भ्रष्टों का प्रतिकार है,
बी जे पी के राज में।
***

युग आया विश्वास का,
सर्वांगीण विकास का,
मोदी के नेतृत्व में।
***


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-05-19