जापानी विधा (5-7-5-7-7)
जिसने दिये
कर दो समर्पण
उसे ही पाप,
बन जाओ उज्ज्वल
हो कर के निष्पाप।
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जिसने दिये
कर दो समर्पण
उसे ही पाप,
बन जाओ उज्ज्वल
हो कर के निष्पाप।
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पाप रहित
नर बन जाता है
ईश स्वरूप,
वह सब प्राणी में
देखे अपना रूप।
**ईश्वर बैठा
अपने ही अंदर
पर मानव,
ढूंढे उसे बाहर
लाखों प्रयत्न कर।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-06-19
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