(मापनी:- 212 212 212)
राम सुमिरन बिना गत नहीं,
और चंचल ये मन रत नहीं।
व्यर्थ सब कुछ है संसार में,
नाम-जप की अगर लत नहीं।
हैं दिखावे ही जप-तप सभी,
भाव यदि हैं समुन्नत नहीं।
प्राप्त नर-तन का होना वृथा,
भक्ति प्रभु की जो अक्षत नहीं।
लाभ उसकी न चर्चा से कुछ,
बात जो शास्त्र-सम्मत नहीं।
नर वे पशुवत हैं, पर-पीड़ लख
भाव जिनके हों आहत नहीं।
नैन प्यासे 'नमन' मन विकल,
प्रभु-शरण बिन कहीं पत नहीं।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-04-18
No comments:
Post a Comment