बह्र:- 212 212 212 212
याद आती हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होती तन्हाइयाँ।
आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।
डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।
गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रहीं कुछ हों मज़बूरियाँ।
मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
शब सी काली ये आतीं न दुश्वारियाँ।
हुस्नवालों से दामन बचाना ए दिल,
मात दानिश को दें उनकी नादानियाँ।
आग मज़हब की जो भी लगाते 'नमन',
इसमें अपनी ही वे सेंकते रोटियाँ।
दानिश=अक्ल, बुद्धि
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
3-4-18
याद आती हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होती तन्हाइयाँ।
आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।
डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।
गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रहीं कुछ हों मज़बूरियाँ।
मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
शब सी काली ये आतीं न दुश्वारियाँ।
हुस्नवालों से दामन बचाना ए दिल,
मात दानिश को दें उनकी नादानियाँ।
आग मज़हब की जो भी लगाते 'नमन',
इसमें अपनी ही वे सेंकते रोटियाँ।
दानिश=अक्ल, बुद्धि
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
3-4-18
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