Saturday, June 15, 2019

मकरन्द छंद "कन्हैया वंदना"

किशन कन्हैया, ब्रज रखवैया,
        भव-भय दुख हर, घट घट वासी।
ब्रज वनचारी, गउ हितकारी,
        अजर अमर अज, सत अविनासी।।
अतिसय मैला, अघ जब फैला,
         धरत कमलमुख, तब अवतारा।
यदुकुल माँही, तव परछाँही,
          पड़त जनम तुम, धरतत कारा।।

पय दधि पाना, मृदु मुसकाना,
         लख कर यशुमति, हरषित भारी।
कछु बिखराना, कछु लिपटाना,
         तब यह लगतत, द्युति अति प्यारी।।
मधुरिम शोभा, तन मन लोभा,
          निश दिन निरखत, ब्रज नर नारी।
सुख अति पाके, गुण सब गाके,
           बरणत यह छवि, जग मँह न्यारी।।

असुर सँहारे, बक अघ तारे,
            दनुज रहित महि, नटवर  कीन्ही।
सुर मुनि सारे, कर जयकारे,
            कहत विनय कर, सुध प्रभु लीन्ही।।
अनल दुखारी, वन जब जारी,
             प्रसरित कर मुख, तुम सब पी ली।
कर मुरली है, मन हर ली है,
              लखत सकल यह, छवि चटकीली।।

सुरपति क्रोधा, धर गिरि रोधा,
             विकट विपद हर, ब्रज भय टारा।
कर वध कंसा, गहत प्रशंसा,
             सकल जगत दुख, प्रभु तुम हारा।।
हरि गिरिधारी, शरण तिहारी,
             तुम बिन नहिं अब, यह मन मोहे।
छवि अति प्यारी, जन मन हारी,
             हृदय 'नमन' कवि, यह नित सोहे।।
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लक्षण छंद:-

"नयनयनाना, ननगग" पाना,
यति षट षट अठ, अरु षट वर्णा।
मधु 'मकरन्दा', ललित सुछंदा,
रचत सकल कवि, यह मृदु कर्णा।।

"नयनयनाना, ननगग" =  नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु

(111  122,  111  122,  111  111 11,1 111  22)
26 वर्ण,4 चरण,यति 6,6,8,6,वर्णों पर
दो-दो या चारों चरण समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
02-10-2018

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