Tuesday, May 5, 2020

ग़ज़ल (दिल में कैसी ये)

बह्र:- 2122  1212  22

दिल में कैसी ये बे-क़रारी है,
शायद_उन की ही इंतिज़ारी है।

इश्क़ में जो मज़ा वो और कहाँ,
इस नशे की अजब खुमारी है।

आज भर पेट, कल तो फिर फाका,
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।

दौर आतंक, लूट का ऐसा,
साँस लेना भी इसमें भारी है।

जिससे मतलब उसी से बस नाता,
आज की ये ही होशियारी है।

अब तो रहबर ही बन गये रहजन,
डर हुकूमत का सब पे तारी है।

उस नई सुब्ह की है आस 'नमन',
जिसमें दुनिया ही ये हमारी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-07-19

ग़ज़ल (उनके फिर से बहाने, तमाशे शुरू)

बह्र:- 212*4

उनके फिर से बहाने, तमाशे शुरू,
झूठे नखरे औ' आँसू बहाने शुरू।

हो गये खेल उल्फ़त के सारे शुरू,
चैन जाने लगा दर्द आने शुरू।

जब सुहानी महब्बत आ घर में बसी,
हो गये दिखने दिन में ही तारे शुरू।

जिनके चहरे में आता नज़र था क़मर,
अब तो उनकी कमर से हो ताने शुरू।

क्या चुनाव_आ गए, रहनुमा दिख रहे,
हर जगह उनके मज़मे औ' वादे शुरू।

इंतिहा क्या तरक्की की समझें इसे,
ख़त्म रिश्ते हुए औ' दिखावे शुरू।

फँस के धाराओं में बंद जो थे 'नमन',
डल की धाराओं में वे शिकारे शुरू।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-09-19

ग़ज़ल (न पैमाना वो जो फिर से भरा)

ग़ज़ल (न पैमाना वो जो फिर से)

बह्र:- 1222*4

न पैमाना वो जो फिर से भरा होने से पहले था,
नशा भी वो न जो वापस चढ़ा होने से पहले था।

बड़ा ही ख़ुशफ़हम शादीशुदा होने से पहले था,
बहुत आज़ाद मैं ये हादिसा होने से पहले था।

बसा देता है दुनिया इश्क़ दिल में ये गुमाँ सबके,
मुझे भी इश्क़ करने की सज़ा होने से पहले था।

भुलाने ग़म तो कर ली मय परस्ती पर पड़ी उल्टी,
बहुत खुश मैं नशे में ग़मज़दा होने से पहले था।

तसव्वुर से तेरे आज़ाद हो कर भी परिंदा यह,
अभी भी क़ैद जितना वो रिहा होने से पहले था।

मेरी तुझसे महब्बत का बताऊँ और क्या तुझ को,
तेरा उतना ही मैं जितना तेरा होने से पहले था।

जुदा इस बात में मैं भी नहीं औरों से हूँ यारो,
हर_इक समझे कि वो अच्छा, बुरा होने से पहले था।

नहीं जिसने कभी सीखा, हुआ जाता ख़फ़ा कैसे,
बताये क्या कि कैसा वो ख़फ़ा होने से पहले था।

'नमन' जब से फ़क़ीरी में रमे बाक़ी कहाँ वो मन,
जहाँ के जो रिवाजों से जुदा होने से पहले था।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-09-19

Sunday, April 26, 2020

हाइकु (आभासी जग)

आभासी जग
खा मनन, चिंतन
करे मगन।
**

शाख बिछुड़ा
फूल न जान पाया
गड़ा या जला।
**

गलियाँ ढूंढ़े
बच्चों के गिल्ली डंडे-
बस्ते में ठंडे।
**

प्रीत का गर्व
कुछेक खास पर्व
समेटे सर्व।
**

कब की भोर
रे राही सुन शोर
निद्रा तो छोड़।
**

ओखली, घड़े
विकास तले गड़े
गाँव सिकुड़े।
**

आज ये देश
प्रतिभा क्यों समेट?
भागे विदेश।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-01-2019

आसरो थारो बालाजी (जकड़ी विधा का गीत)

आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।

जद रावण सीता माता नै, लंका में हर ल्यायो,
सौ जोजन का सागर लाँघ्या, माँ को पतो लगायो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।

शक्ति बाण जब लग्यो लखन के, रामादल घबराया,
संजीवन बूंटी नै ल्या कर, थे ही प्राण बचाया।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।

जद जद भीर पड़ै भक्तन में, थे ही आय उबारो,
थारै चरणां में जो आवै, वाराँ सब दुख टारो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-5-19

तर्ज- तावड़ा मन्दो पड़ ज्या रै

Wednesday, April 22, 2020

मनहरण घनाक्षरी "गुजरात चुनाव"

गुजरात के चुनाव, लगें हैं सभी के दाव,
उल्टी गंगा कैसी कैसी, नेता ये बहा रहे।

मन्दिरों में भाग भाग, बोले भाग जाग जाग,
भोले बाबा पर डोरे, डाल ये रिझा रहे।

करते दिखावा भारी, लाज शर्म छोड़ सारी,
आसथा का ढोल देखो, कैसा वे बजा रहे।

देश छोड़ा वेश छोड़ा, धर्म और कर्म छोड़ा,
मन्दिरों में जाय अब, जात छोड़ आ रहे।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-12-17

Saturday, April 18, 2020

32 मात्रिक छंद "अनाथ"

कौन लाल ये छिपा हुआ है, जीर्ण शीर्ण वस्त्रों में लिपटा।
दीन दशा मुख से बिखेरता, भीषण दुख-ज्वाला से चिपटा।।
किस गुदड़ी का लाल निराला, किन आँखों का है ये मोती।
घोर उपेक्षा जग की लख कर, इसकी आँखें निशदिन रोती।।

यह अनाथ बालक चिथड़ों में, आनन लुप्त रखा पीड़ा में।
बिता रहा ये जीवन अपना, दारुण कष्टों की क्रीड़ा में।।
गेह द्वार से है ये वंचित, मात पिता का भी नहिं साया।
सभ्य समझते जो अपने को, पड़ने दे नहिं इस पर छाया।।

स्वार्थ भरे जग में इसका बस, भिक्षा का ही एक सहारा।
इसने उजियारे कब देखे, छाया जीवन में अँधियारा।।
इसकी केवल एक धरोहर, कर में टूटी हुई कटोरी।
हाय दैव पर भाग्य लिखा क्या, वह भी तो है बिल्कुल कोरी।।

लघु ललाम लोचन चंचल अति, आस समेट रखे जग भर की।
शुष्क ओष्ठ इसके कहते हैं, दर्द भरी पीड़ा अंतर की।।
घर इसका पदमार्ग नगर के, जीवन यापन उन पे करता।
भिक्षाटन घर घर में करके, सदा पेट अपना ये भरता।।

परम दीन बन करे याचना, महा दीनता मुख से टपके।
रूखा सूखा जो मिल जाता, धन्यवाद कह उसको लपके।।
रोम रोम से करुणा छिटके, ये अनाथ कृशकाय बड़ा है।
सकल जगत की पीड़ा सह कर, पर इसका मन बहुत कड़ा है।।

है भगवान सहारा इसका, टिका हुआ है उसके बल पर।
स्वार्थ लिप्त संसार-भावना, जीता यह नित उसको सह कर।।
आश्रय हीन जगत में जो हैं, उनका बस होता है ईश्वर।
'नमन' सदा मैं उसको करता, जो पाले यह सकल चराचर।।

32 मात्रिक छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-05-2016

Tuesday, April 7, 2020

ग़ज़ल (तेज़ कलमों की धार कौन करे)

बह्र:- 2122  1212   22

तेज़ कलमों की धार कौन करे,
दिल पे नग़मों से वार कौन करे।

जिनसे उम्मीद थी वो मोड़ें मुँह,
अब गरीबी से पार कौन करे।

जो मसीहा थे, वे ही अब डाकू,
उनके बिन लूटमार कौन करे।

आसमाँ ने समेटे सब रहबर,
अब हमें होशियार कौन करे।

पूछतीं कलियाँ भँवरे से तुझ को,
दिल का उम्मीदवार कौन करे।

आज खुदगर्ज़ी के जमाने में,
जाँ वतन पे निसार कौन करे।

आग नफ़रत की जो लगाते हैं,
उनको अब शर्मसार कौन करे।

*दाग़* पहले से ही भरें जिस में,
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे।

आज ग़ज़लें 'नमन' हैं ऐसी जिन्हें,
शायरी में शुमार कौन करे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-08-19

ग़ज़ल (चोट दिल पर है लगी जो मैं)

बह्र: 2122 1122 1122  22

चोट दिल पर है लगी जो मैं दिखा भी न सकूँ,
बात अपनों की ही है जिसको बता भी न सकूँ।

अम्न की चाह यहाँ जंग पे वो आमादा,
ऐसे जाहिल से मैं नफ़रत को छिपा भी न सकूँ।

इश्क़ पर पहरे जमाने के लगे हैं कैसे,
एक नजराना मैं उनके लिए ला भी न सकूँ ।

सादगी मेरी बनी सब की नज़र का काँटा,
मुझको इतने हैं मिले जख़्म गिना भी न सकूँ।

हाय मज़बूरी ये कैसी है अना की मन में,
दोस्त जो रूठ गये उनको मना भी न सकूँ।

ऐसी दौलत से भला क्या मैं करूँगा हासिल,
जब वतन को हो जरूरत तो लुटा भी न सकूँ।

शाइरी ज़िंदगी अब तो है 'नमन' की यारो,
शौक़ ये ऐसा चढ़ा जिसको मिटा भी न सकूँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-09-17

ग़ज़ल (दीन की ख़िदमत से बढ़कर)

बह्र:- 2122  2122  2122  212

दीन की ख़िदमत से बढ़कर शादमानी फिर कहाँ,
कर सको उतनी ये कर लो जिंदगानी फिर कहाँ।

पास आ बैठो सनम कुछ मैं कहूँ कुछ तुम कहो,
शाम ऐसी फिर कहाँ उसकी रवानी फिर कहाँ।

नौनिहालों इन बुजुर्गों से ज़रा कुछ सीख लो,
इस जहाँ में तज्रबों की वो निशानी फिर कहाँ।

कद्र बूढ़ों की करें माँ बाप को सम्मान दें,
कब उन्हें ले जाएँ दौर-ए-आसमानी फिर कहाँ।

नौजवानों इस वतन के वास्ते कुछ कर भी लो,
सर धुनोगे बाद में ये नौजवानी फिर कहाँ।

गाँवों की उजड़ी दशा पर गर किया कुछ भी न अब,
उन भरे चौपालों की बातें पुरानी फिर कहाँ।

लिखता आया है 'नमन' खून-ए जिगर से नज़्म सब,
ठहरिये सुन लें ज़रा ये नज़्म-ख्वानी फिर कहाँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-08-17

ग़ज़ल (छाया देते पीपल हो क्या)

बह्र:- 22  22  22  22

छाया देते पीपल हो क्या,
या दहशत के जंगल हो क्या।

जीवन का कोलाहल हो क्या,
थमे न जो वो दृग-जल हो क्या।

बजती जो पैसों की खातिर,
वैसी बेबस पायल हो क्या।

दुराग्रहों में अंधे हो कर,
सच्चाई से ओझल हो क्या।

दिखते तो हो, पर भीतर से,
मखमल जैसे कोमल हो क्या।

वक़्त चुनावों का जब आये,
हाल जो पूछे वो दल हो क्या।

गर हो माँ के आँचल से तो,
उसके जैसे शीतल हो क्या।

भूल गये बजरंग जिसे थे,
देश के बल तुम! वो बल हो क्या।

जाम-ओ-मीना हुस्न के जलवे,
'नमन' इन्हीं में पागल हो क्या।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-10-19

Wednesday, March 25, 2020

नव संवत्सर स्वागत गीत

बहर 1222 1222 1222 1222

नया आया है संवत्सर, करें स्वागत सभी मिल के;
नये सपने नये अवसर, नया ये वर्ष लाया है।
करें सम्मान इसका हम, नई आशा बसा मन में;
नई उम्मीद ले कर के, नया ये साल आया है।

लगी संवत् सत्ततर की, चलाया उसको नृप विक्रम;
सुहाना शुक्ल पखवाड़ा, महीना चैत्र तिथि एकम;
बधाई कर नमस्ते हम, सभी को आज जी भर दें;
नये इस वर्ष में सब में, नया इक जोश छाया है।

दिलों में मैल है बाकी, पुराने साल का कुछ गर;
मिटाएँ उसको पहले हम, नये रिश्तों से सब जुड़ कर।
सुहाने रंग घोले हैं, छटा मधुमास की सब में;
नये उल्लास में खो कर, सभी की मग्न काया है।

गरीबी ओ अमीरी के, मिटाएँ भेद भावों को;
अशिक्षित ना रहे कोई, करें खुशहाल गाँवों को।
'नमन' सब को गले से हम, लगाएँ आज आगे बढ़;
नया यह वर्ष अपना है, सभी का मन लुभाया है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-03-2020

Thursday, March 12, 2020

मुक्तक (हास्य,व्यंग)

दोस्तो दिल का सदर घर का सदर होने को है,
बा-बहर जो थी ग़ज़ल वह बे-बहर होने को है,
हम मुहब्बत के असर में खूब पागल थे रहे,
जिंदगी की असलियत का अब असर होने को है।

(2122×3  212)
*********

उल्टे सीधे शब्द जोड़ कर, कुछ का कुछ लिख लेता हूँ,
अंधों में काना राजा हूँ, मन मर्जी का नेता हूँ,
व्हाट्सेप के ग्रूपों में ही, अक्सर रहता हूँ छाया,
और वाहवाही में उलझा, खपा दिवस मैं देता हूँ।

(ताटंक छंद)
*********

जहाँ देखूँ नमी है,
कहीं काई जमी है,
बना घर की ये हालत,
तु रम्मी में रमी है।

(1222 122)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-19

मुक्तक (कलम, कविता-1)

शक्ति कलम की मत कम आँको, तख्त पलट ये देती है,
क्रांति-ज्वाल इसकी समाज को, अपने में भर लेती है,
मात्र खिलौना कलम न समझें, स्याही को छिटकाने का,
लिखी इबारत इसकी मन में, नाव भाव की खेती है।

(ताटंक छंद)
*********

कलम सुनाओ लिख कर ऐसा, और और सब लोग कहें,
बार बार पढ़ कर के जिसको, भाव गंग में सभी बहें,
बड़ी कीमती स्याही इसकी, बरतें इसे सलीका रख,
इसके आगे नतमस्तक हो, सब करते ही वाह रहें।

(लावणी छंद)
*********

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
18-10-17

मुक्तक (पर्व विशेष-1)

(करवाचौथ)

त्योहार करवाचौथ का नारी का है प्यारा बड़ा,
इक चाँद दूजे चाँद को है देखने छत पे खड़ा,
लम्बी उमर इक चाँद माँगे वास्ते उस चाँद के,
जो चाँद उसकी जिंदगी के आसमाँ में है जड़ा।

(2212*4)
*********
(होली)

हर तरु में छाया बसन्त ज्यों, जीवन में नित रहे बहार,
होली के रंगों की जैसे,  वैभव की बरसे बौछार,
ऊँच नीच के भेद भुला कर, सबको गले लगाएँ आप,
हर सुख देवे सदा आपको, होली का पावन त्योहार।

(आल्हा छंद आधारित)
****

लगा है जब से ये फागुन चली धमार की बात,
दिलों में छाई है होली ओ रंग-धार की बात।
जिधर भी देखिए छाई छटा बसन्त की अब,
हर_इक नज़ारा फ़ज़ा का करे बहार की बात।

(1212 1122 1212 22)
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2019

मुक्तक (आतंक)

आओ करें प्रण और अब आतंक को सहना नहीं,
अब मौन ज्यादा और हम को धार के रहना नहीं,
आतंक में डर डर के जीना भी भला क्या ज़िंदगी,
इसको मिटाने जड़ से अब करना है कुछ, कहना नहीं।

(2212×4)
*********

किस अभागी शाख का लो एक पत्ता झर गया फिर,
आसमां से एक तारा टूट कर के है गिरा फिर,
सरहदों के सैनिकों के खून की कीमत भला क्या,
वेदी पर आतंक की ये वीर का मस्तक चढ़ा फिर।

(2122*4)
***********

निशा आतंक की छायी गगन पर देश के भारी।
मरे शिव भक्त क्यों हैं बंद तेरे नेत्र त्रिपुरारी।
जो दहशतगर्द पनपे हैं किया दूभर यहाँ जीना।
मचा तांडव करो उनका धरा से नाश भंडारी।।

(1222×4)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-08-18

Tuesday, March 10, 2020

नणँदल नखराँली ‌(होली धमार गीत)

नणँदल नखराँली, नणदोई म्हारो बोळो छेड़ै है,
बस में राखो री।।टेर।।

सोलह सिंगाराँ रो रसियो, यो मारूड़ो थारो है,
बणी ठणी रह घणी धणी नै, रोज रिझाओ री,
नणँदल नखराँली।।

काजू दाखाँ अखरोटां रो, नणदोई शौकीन घणो,
भर भर मुट्ठा मुंडा में दे, खूब खिलाओ री,
नणँदल नखराँली।।

नारैलाँ री चटणी रो, नणदोई भोत चटोरो है,
डोसा इडली सागै चटणी, खूब चटाओ री,
नणँदल नखराँली।।

मालपुआ रस भीज्या भीज्या, चोखा इणनै लागै है,
चूल्हे चढ़ी कड़ाही राखो, रोज उतारो री,
नणँदल नखराँली।।

नाच गीत ओ ठुमका ठरका, इणनै बोळा भावै है,
डाल घूँघटो घर में घूमर, घाल नचाओ री,
नणँदल नखराँली।।

कोमल हाथाँ री मालिस रो, थारो मारू रसियो है,
गर्म तेल रा रोज मल्हारा, कसकर देओ री,
नणँदल नखराँली।।

फागण में नणदोई न्यारो, पाछै पाछै भाजै है,
खुल्लो मत छोड़ो इब इणनै, बाँध्यो राखो री,
नणँदल नखराँली।।

कह्यो सुण्यो सब माफ़ करीज्यो, म्हारो नणदोई बाँको,
'बासुदेव' होली पर इणरी, ये मनुहाराँ री,
नणँदल नखराँली।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
9-3-18

Monday, March 9, 2020

निधि छंद "फागुन मास"

फागुन का मास।
रसिकों की आस।।
बासंती वास।
लगती है खास।।

होली का रंग।
बाजै मृदु चंग।।
घुटती है भंग।
यारों का संग।।

त्यज मन का मैल।
टोली के गैल।।
होली लो खेल।
ये सुख की बेल।।

पावन त्योहार।
रंगों की धार।।
सुख की बौछार।
दे खुशी अपार।।
=============
निधि छंद विधान:-

यह नौ मात्रिक चार चरणों का छंद है। इसका चरणान्त ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है। बची हुई 6 मात्राएँ छक्कल होती हैं।  तुकांतता दो दो चरण या चारों चरणों में समान रखी जाती है।
*****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-03-19

दोहे "होली"

दोहा छंद

होली के सब पे चढ़े, मधुर सुहाने रंग।
पिचकारी चलती कहीं, बाजे कहीं मृदंग।।

दहके झूम पलाश सब, रतनारे हो आज।
मानो खेलन रंग को, आया है ऋतुराज।।

होली के रस की बही, सरस धरा पे धार।
ऊँच नीच सब भूल कर, करें परस्पर प्यार।।

फागुन की सब पे चढ़ी, मस्ती अपरम्पार।
बाल वृद्ध सब झूम के, रस की छोड़े धार।।

नर नारी सब खेलते, होली मिल कर संग।
भेद भाव कुछ नहिं रहे, मधुर फाग का रंग।।

फागुन में मन झूम के, गाये राग मल्हार।
मधुर चंग की थाप है, मीठी बहे बयार।।

घुटे भंग जब तक नहीं, रहे अधूरा फाग,
बजे चंग यदि संग में, खुल जाएँ तब भाग।।

होली की शुभकामना, रहें सभी मन जोड़।
नशा यहाँ ऐसा चढ़े, कोउ न जाये छोड़।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-03-2017

Saturday, March 7, 2020

शुभमाल छंद "दीन पुकार"

सभी हम दीन।
निहायत हीन।।
हुए असहाय।
नहीं कुछ भाय।।

गरीब अमीर।
नदी द्वय तीर।।
न आपस प्रीत।
यही जग रीत।।

नहीं सरकार।
रही भरतार।।
अतीव हताश।
दिखे न प्रकाश।।

झुकाय निगाह।
भरें बस आह।।
सहें सब मौन।
सुने वह कौन।।

सभी दिलदार।
हरें कुछ भार।।
कृपा कर आज।
दिला कछु काज।।

मिला कर हाथ।
चलें सब साथ।।
सही यह मन्त्र।
तभी गणतन्त्र।।
==========
लक्षण छंद:-

"जजा" गण डाल।
रचें 'शुभमाल'।।

"जजा" =  जगण  जगण
( 121    121 ) ,
दो - दो चरण तुकान्त , 6 वर्ण प्रति चरण
*****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-01-19