Wednesday, January 24, 2024

"सुचि जन्म दिवस"

देता है जन्म दिवस पर तुझको तेरा भाई,
आशीर्वाद  संग 'सुचि' तुझे अनेक बधाई,
छब्बीस नवंबर की यह पावन बेला,
हिन्दी के उपवन में तुम यूँ ही रहो छाई।

बासुदेव अग्रवाल नमन



Monday, January 15, 2024

"भारत गौरव"

जय भारत जय पावनि गंगे,
जय गिरिराज हिमालय ;
आज विश्व के श्रवणों में,
गूँजे तेरी पावन लय ।
नमो नमो हे जगद्गुरु,
तेरी इस पुण्य धरा को ;
गुंजित करना ही सुझे,
तेरा यश इन अधरों को ।।1।।

उत्तर में नगराज हिमालय,
तेरा शीश सजाए;
दक्षिण में पावन रत्नाकर,
तेरे चरण धुलाए ।
खेतों की हरियाली तुझको,
हरित वस्त्र पहनाए ;
सरिता और शैल उस में,
मनभावन सुमन सजाए ।।2।।

गंगा यमुना और कावेरी,
की शोभा है निराली;
अपनी पावन जलधारा से,
खेतों में डाले हरियाली ।
तेरी प्यारी भूमि की,
शोभा है बड़ी निराली;
कहीं पहाड़ है कहीं नदी है,
कहीं बालू सोनाली ।।3।।

तुने अपनी ज्ञान रश्मि से,
जग में आलोक फैलाया;
अपनी धर्म भेरी के स्वर से,
तुने जग को गूँजाया ।
तेरे ऋषि मुनियों ने,
जग को उपदेश दिया था;
योग साधना से अपनी,
जग का कल्याण किया था ।।4।।

अनगिनत महाजन जन्मे,
तेरी पावन वसुधा पर;
शरणागतवत्सल वे थे,
अरु थे पर दुख कातर ।
दानशीलता से अपनी,
इनने तुमको चमकाया;
तेरे मस्तक को उनने,
अपनी कृतियों से सजाया ।।5।।

तेरी पुण्य धरा पर,
जन्मे राम कृष्ण अवतारी;
पा कर के उन रत्नों को,
थी धन्य हुई महतारी ।
अनगिनत दैत्य रिपु मारे,
धर्म के कारण जिनने;
ऋषि मुनियों के कष्टों को,
दूर किया था उनने ।।6।।

अशोक बुद्ध से जन्मे,
मानवता के सहायक;
जन जन के थे सहचर,
धर्म भेरी के निनादक ।
राणा शिवा से आए,
हिंदुत्व के वे पालक;
मर मिटे जन्म भूमि पे,
वे देश के सहायक ।।7।।

थे स्वतन्त्रता के चेरे,
भगत सुभाष ओ' गांधी;
अस्थिर न कर सकी थी,
उनको विदेशी आँधी ।
साहस के थे पुतले,
अरु धैर्य के थे सहचर;
सितारे बन के चमके,
वे स्वतन्त्रता के नभ पर ।।8।।

मातृ भूमि की रक्षा का,
है पावन कर्त्तव्य हमारा;
निर्धन दीन निसहाय,
जनों के बनें सहारा ।
नंगों को दें वस्त्र,
और भूखों को दें भोजन;
दुखियों के कष्टों का,
हम सब करें विमोचन।।9।।

ऊँच नीच की पूरी हम,
मन से त्यजें भावना;
रंग एक में रंग जाने की,
हम सब करें कामना ।
भारत के युवकों का,
हो यह पावन कर्म;
देश हमारा उच्च रहे,
उच्च रहे हमारा धर्म ।।10।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

(यह मेरी प्रथम कविता थी जो दशम कक्षा में 02-04-1970 को लिखी थी)

Monday, January 8, 2024

छंदा सागर "मुक्तावली और मौक्तिका"

                     पाठ - 24


छंदा सागर ग्रन्थ


"मुक्तावली और मौक्तिका"


इसके पिछले पाठ में अंत्यानुप्रास पर प्रकाश डाला गया था। अंत्यानुप्रास यानी तुक दो तरह से मिलायी जाती है। पदांत का मिलान करके या ध्रुवांत के साथ समांत का मिलान करके। पदांत और समांत के मिलाने के नियमों में अंतर है। पदांत में स्वर साम्य के साथ वर्ण साम्य आवश्यक है चाहे स्वर लघु हो या दीर्घ हो परन्तु समांत के मिलान में वर्ण साम्य आवश्यक नहीं यदि आंत्य वर्ण दीर्घ मात्रिक हो। हिन्दी की रचनाओं में ध्रुवांत आधारित तुक कम ही दृष्टिगोचर होती है। इस पाठ में हम ध्रुवांत समांत पर आधारित तुकांतता की दो विधाओं का अवलोकन करने जा रहे हैं।

हिन्दी में गजल शैली में काव्य सृजन के प्रति विशेषकर नवोदित साहित्यकार वर्ग काफी उत्साहित है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए इस शैली पर आधारित दो विधाओं को नवीन अवधारणा के साथ यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। 

प्रथम विधा में काव्य सृजन द्विपदी के आधार पर होता है। इसमें हर द्विपदी अपने आप में स्वतंत्र होती है पर प्रत्येक द्विपद एक ही तुकांतता में आबद्ध रहता है जिससे रचना में परस्पर कई असंबंधित द्विपदी रहते हुये भी एकरूपता परिलक्षित होती है। इस विधा को पूर्ण रूप से समझने के लिए कुछ पारिभाषिक शब्दावली का सम्यक ज्ञान आवश्यक है।

मुक्ता :- प्रत्येक स्वतंत्र द्विपदी का नाम ही 'मुक्ता' दिया गया है। प्रत्येक द्विपदी कथन में पूर्वापर संबंध से मुक्त होती है तथा साथ ही विशिष्ट कथ्य शैली में वक्र रूप से कथन के कारण हर द्विपदी एक मुक्ता यानी मोती की तरह है। इसी लिए यह नाम दिया गया है।

पूर्व पद :- एक मुक्ता में दो पद रहते हैं जिसमें प्रथम पद का नाम 'पूर्व पद' है।

उत्तर पद :- मुक्ता के दूसरे पद की संज्ञा उत्तर पद दी गयी है।

मुक्तावली :-  मुक्ता की लड़ी यानी 'मुक्तावली'। एक मुक्तावली में कम से कम चार मुक्ता होने चाहिए। मुक्तावली के मुक्ताओं में पूर्वापर संबंध होना आवश्यक नहीं। मुक्ता सदैव छंदा आधारित होना चाहिए।

आमुख :- मुक्तावली के प्रथम मुक्ता का नाम आमुख दिया गया है। आमुख के दोनों पद समतुकांत होने आवश्यक हैं। आमुख की तुकांतता से ही मुक्तावली के अन्य मुक्ताओं की तुकांतता का निर्धारण होता है। आमुख को छोड़ अन्य मुक्ताओं में केवल मुक्ता का उत्तरपद आमुख की तुकांतता के अनुसार समतुकांत रहना चाहिए। अन्य मुक्ताओं के पूर्व पद में इस तुकांतता का स्वर साम्य तक भी नहीं रह सकता।

आमुखी :- आमुख और आमुखी दोनों समरूप हैं। यदि किसी मुक्तावली में पांच से अधिक मुक्ता हैं तो रचनाकार यदि चाहे तो ठीक आमुख के पश्चात एक आमुखी भी रख सकता है। एक मुक्तावली में एक से अधिक आमुखी नहीं हो सकती।

समापक :- मुक्तावली का अंतिम मुक्ता ही समापक है। एक प्रकार से यह रचना के उपसंहार का मुक्ता होता है। समापक में रचनाकार अपना नाम या उपनाम पिरो सकता है।

मुक्तावली के मुक्ताओं में पूर्वापर संबंध आवश्यक नहीं पर ध्रुवांत के कारण भावों की दिशा निश्चित हो जाती है। मुक्ताओं की परस्पर समतुकांतता के कारण यह एक बंधी हुई सरस संरचना होती है। यदि कोई रचनाकार चाहे तो एक ही भाव पर संपूर्ण मुक्तावली की रचना भी कर सकता है। 

मुक्तावली की संपूर्ण रूपरेखा आमुख से ही बन जाती है। इस रूप रेखा का प्रमुख आधार समांत और ध्रुवांत का निर्धारण है। छंदा का मात्रिक या वर्णिक विन्यास तथा समांत और ध्रुवांत की जुगलबंदी ही मुक्तावली को काव्यात्मक स्वरूप देने के लिए यथेष्ट है अतः मुक्ता के पद की रचना समांत ध्रुवांत की गहराई में जाते हुए प्रभावी वाक्य के रूप में करें। पूर्व पद में कोई अवधारणा लें, कोई भूमिका बांधें या सामान्य सा ही विचार रखें परन्तु उत्तर पद में उसका पटाक्षेप वक्रोक्ति के साथ या प्रभावी उपसंहार के रूप में करें। इसी के कारण कोई द्विपदी मुक्ता बनती है और ऐसे मुक्ताओं की लड़ी मुक्तावली।

मुक्तावली में समांत के निर्धारण में यह सदैव स्मरण रहे कि आमुख का समांत आपने जिस सीमा तक मिला दिया उससे कम आप बाद के मुक्ताओं में नहीं मिला सकते। केवल दीर्घ स्वर का साम्य समांतों में तभी हो सकता है जब आमुख के दोनों समांत में वर्ण भिन्न भिन्न हों। आमुख में यदि 'भुलाना नहीं का समांत 'रोका नहीं'  है तो बाकी मुक्ताओं में आ स्वर का समांत यथेष्ट है। परन्तु 'भुलाना नहीं' का 'सताना नहीं' ले लिया तो और मुक्ताओं में अंत के ना के साथ साथ उपांत का आ स्वर भी मिलाना होगा। इसी प्रकार आमुख में यदि 'भुलाना नहीं' को 'सुलाना नहीं' से मिला दिया तो बाद में केवल रुलाना नहीं, बुलाना नहीं आदि से ही मिला सकते हैं।
***

हिन्दी में चतुष्पदी छंदों के अधिक प्रचलन को देखते हुये इस शैली की दूसरी विधा चतुष्पदी के आधार पर निर्मित की गयी है। पहले इसकी भी परिभाषिक शब्दावली समझें।

मौक्तिक :- मौक्तिक भी ठीक मुक्ता की तरह ही है। इसमें दो के स्थान पर चार पद होते हैं। मौक्तिक सदैव छंदा आधारित होना चाहिए।

पूर्वा : चार पदों के मौक्तिक के प्रथम दो पद की संज्ञा पूर्वा है। पूर्वा का प्रथम पद पूर्व पद तथा दूसरा पद उत्तर पद कहलाता है।

अंत्या :- मौक्तिक के अंतिम दो पद की संज्ञा अंत्या है। इसका भी प्रथम पद पूर्व पद तथा दूसरा पद उत्तर पद कहलाता है।

मौक्तिका :- मौक्तिक की लड़ी ही मौक्तिका है। एक मौक्तिका में कम से कम चार मौक्तिक होने चाहिए। मौक्तिका सामान्यतः एक ही विषय पर कविता की तरह होती है पर कोई रचनाकार चाहे तो मुक्तावली की तरह इसे स्वतंत्र मौक्तिक की लड़ी के रूप में भी रच सकता है। मौक्तिका का प्रथम मौक्तिक भी आमुख कहलाता है। इसमें आमुखी नहीं होती। इसका भी अंतिम मौक्तिक समापक कहलाता है।

मौक्तिका के आमुख की पूर्वा और अंत्या समतुकांत रहती हैं। आमुख की तुकांतता से ही इसमें भी अन्य मौक्तिक की तुकांतता निश्चित होती है। अन्य मौक्तिक की अंत्या का उत्तर पद आमुख के अनुसार समतुकांत रहता है। पूर्वा के दोनों पद भी आपस में समतुकांत रहते हैं पर यह तुकांतता आमुख की तुकांतता से सदैव भिन्न होती है।

एक मौक्तिका का अवलोकन करें -

मौक्तिका (शहीदों की शहादत)
2122*3 212 (छंदा - रीबर)
(ध्रुवांत 'मन में राखलो', समांत 'आज')

भेंट प्राणों की दी जिनने आन रखने देश की,
उन जवानों के हमैशा काज मन में राखलो।।
भूल मत जाना उन्हें तुम ऐ वतन के दोस्तों,
उन शहीदों की शहादत आज मन में राखलो।।

छोड़ के घरबार सारा सरहदों पे जो डटे,
बीहड़ों में जागकर के जूझ रातें दिन कटे।
बर्फ के अंबार में से जो बनायें रास्ते,
उन इरादों का ओ यारों राज मन में राखलो।।

मस्तियाँ कैंपों में करते नाचते, गाते जहाँ,
साथ मिलके बाँटते ये ग़म, खुशी, दुख सब यहाँ।
याद घर की ये भुलाते हँस कभी तो रो कभी,
झूमती उन मस्तियों का साज मन में राखलो।।

गीत इनकी वीरता के गा रही माँ भारती,
देश का हर नौजवाँ इनकी उतारे आरती।
गर्व इनपे तुम करो इनको 'नमन' कर सर झुका  ,
हिन्द की सैना का तुम सब नाज मन में राखलो।।
***

कुण्डला मौक्तिका:- इसकी संरचना कुंडलियाँ छंद के आधार पर की गई है। यह मौक्तिका का ही एक प्रकार है।  इसमें आमुख की पूर्वा का पूर्व पद दोहा की एक पंक्ति होता है तथा उत्तर पद रोला छंद की एक पंक्ति होता है। दोहा की पंक्ति के दूसरे चरण की तुक रोला के प्रथम चरण से मिलाने से रोचकता बढ़ जाती है। कुंडलियाँ छंद की तरह दोहा की पंक्ति जिस शब्द या शब्द समूह से प्रारंभ होती है रोला की पंक्ति का समापन भी उसी शब्द या शब्द समूह से होना आवश्यक है। यह शब्द या शब्द समूह पूरी रचना में ध्रुवांत का काम करता है। यही रूप अंत्या का रहेगा। पूर्वा से ध्रुवांत का निर्धारण हो गया अतः  अंत्या के प्रारंभ में या अन्य मौक्तिक के प्रारंभ में उसका आना आवश्यक नहीं।

अन्य मौक्तिक की पूर्वा में 13+12 मात्रा के मुक्तामणि छंद के दो पद आते हैं या रोला छंद के दो पद। मेरी 'बेटी' शीर्षक की कुण्डला मौक्तिका  देखें-

कुण्डला मौक्तिका (बेटी)
(ध्रुवांत 'बेटी', समांत 'अर')

बेटी शोभा गेह की, मात पिता की शान,
घर की है ये आन, जोड़ती दो घर बेटी।।
संतानों को लाड दे, देत सजन को प्यार,
रस की करे फुहार, नेह दे जी भर बेटी।।

रिश्ते नाते जोड़ती, मधुर सभी से बोले,
रखती घर की एकता, घर के भेद न खोले।
ममता की मूरत बड़ी, करुणा की है धार,
घर का सामे भार, काँध पर लेकर बेटी।।

परिचर्या की बात हो, नारी मारे बाजी,
सेवा करती धैर्य से, रोगी राखे राजी।
आलस सारा त्याग के, करती सारे काम,
रखती अपना नाम, सभी से ऊपर बेटी।।

चले नहीं नारी बिना, घर गृहस्थ की गाडी,
पूर्ण काज सम्भालती, नारी सब की लाडी।
हक देवें, सम्मान दें, उसकी लेवें राय,
दिल को लो समझाय, नहीं है नौकर बेटी।।

जिस हक की अधिकारिणी, कभी नहीं वह पाई,
नर नारी के भेद की, पाट सकी नहिं खाई।
पीछा नहीं छुड़ाइए, देकर चुल्हा मात्र,
सदा 'नमन' की पात्र, रही जग की हर बेटी।।

आमुख 'बेटी' शब्द से प्रारंभ हो रहा है और यह रचना में ध्रुवांत का काम कर रहा है। ध्रुवांत के ठीक पहले विभिन्न समांत घर, भर, कर आदि आ रहे हैं। दोहे की पंक्ति के अंत में आये शब्द शान, प्यार, धार आदि से रोला की प्रथम यति में तुक मिलाई गयी है। अन्य मौक्तिक की पूर्वा में मुक्तामणि छंद की दो पंक्तियाँ है। यह छंद दोहे की पंक्ति का अंत जो लघु होता है, उसको दीर्घ करने से बन जाता है। अतः बहुत उपयुक्त है। मुक्तामणि की जगह रोला की दो पंक्तियाँ भी रखी जा सकती हैं। 

                  ग्रन्थ समापन


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
02-05-20

Thursday, January 4, 2024

विजात छंद "उदंडी"

हृदय में एकता धारे।
सजग होके रहें सारे।।
रखें ये देश ऊँचा हम।
यहाँ जो व्याप्त हर लें तम।।

प्रखर विद्रोह के हैं स्वर।
लगें भीषण हमें ये ज्वर।।
विरोधी के सभी उत्तर।
मिले बरसा यहाँ पत्थर।।

प्रबल अलगाववादी हैं।
कलह के नित्य आदी हैं।।
इन्हें चिंता न भारत की।
करें बातें शरारत की।।

विषमतायें यहाँ भारी।
मगर हिम्मत न हम हारी।।
हतोत्साहित न हों थोड़ा।
हटायें राह के रोड़ा।।

मनोबल को रखें उन्नत।
सदा जिनसे हुयें आहत।।
करें उनका पराक्रम क्षय।
मिलेगी जीत बिन संशय।।

उदंडी दंड को पायें।
धरा का न्याय अपनायें।।
रहे मन में न अब दूरी ।
'नमन' यह चाह हो पूरी।।
***********

विजात छंद विधान -

विजात छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। यह एक मापनी आधारित छंद है। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 1222 1222 है। चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 करने की छूट है।
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
07-06-22

Friday, December 29, 2023

हाइकु (प्रकृति)

धूप बटोरे
रात के छिटकाये
दूब पे मोती।
**

सुबह हुई
ज्यों चाँद से बिछुड़ी
रजनी रोई।
**

ग्रीष्म फटका
पसीने का मटका
फिर छिटका।
**

गर्मी का जोर
आतंक जैसा घोर
कहाँ है ठोर?
**

सुबह लायी
झोली भर के मोती
धूप ले उड़ी।
**

कुसुम लदी
लता लज्जा में पगी
ज्यों नव व्याही।
**

सावन आया
हरित धरा कर
रंग जमाया।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-12-19

Thursday, December 21, 2023

विविध कुण्डलिया

1- नोट-बंदी

होगा अब इस देश में, नोट रहित व्यापार।
बैंकों में धन राखिए, नगदी है बेकार।
नगदी है बेकार, जेबकतरे सब रोए।
घर में जब नहिँ नोट, सेठ अब किस पर सोए।
नोट तिजौरी राख, बहुत सुख सब ने भोगा।
रखे 'नमन' कवि आस, कछु न काला अब होगा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
15-12-16

2- सच्चा सुख

रखना मन में शांति का, सर्वोत्तम व्यवहार।
पर कायरपन मौन है, लख कर अत्याचार।
लख कर अत्याचार, और भी दह कर निखरो।
बाधाएँ हों लाख, नहीं जीवन में बिखरो।
सच्चे सुख का स्वाद, अगर तुम चाहो चखना।
रख खुद पर विश्वास, धीर को धारे रखना।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-06-19

Monday, December 11, 2023

छंदा सागर "यति और अंत्यानुप्रास"

                    पाठ - 23


छंदा सागर ग्रन्थ


"यति और अंत्यानुप्रास"


इस पाठ में अंत्यानुप्रास तथा यति विषयक चर्चा की जायेगी। हिन्दी के छंदों में यति का अत्यंत महत्व है और इसी को दृष्टिगत रखते हुये जहाँ तक संभव हो सका है इस ग्रन्थ में स्थान स्थान पर यतियुक्त छंदाएँ दी गयी हैं। किसी भी पद का बीच का ठहराव यति कहलाता है। एक सह यति पद से वही बिना यति का पद संरचना और लय के आधार पर बिल्कुल अलग हो जाता है। वाचिक स्वरूप की अनेक छंदाओं में यह आप सबने देखा होगा।

साधरणतया एक पद में मध्य यति और स्वयं सिद्ध पदांत यति के रूप में ये दो ही यतियाँ रहती हैं। पर कुछ छंद विशेष में दो से अधिक यतियाँ भी पद में रहती हैं जिनकी कई छंदाऐँ मात्रिक छंदाओं के पाठ में 'बहु यति छंद' शीर्षक से दी गयी हैं। यदि कोई छंदा यति युक्त है तो वह या तो सम यति होगी या विषम यति। सम यति छंदा में मध्य यति और पदांत यति की मात्राएँ एक समान रहती हैं जबकि विषम यति में अलग अलग। जैसे दोहा विषम यति छंद है, जिसकी मध्य यति 13 मात्रा की है तथा पदांत यति 11 मात्रा की। दो से अधिक यति के छंद बहु यति छंद की श्रेणी में आते हैं। जैसे त्रिभंगी छंद की प्रथम यति 10 मात्रा की, द्वितीय यति 8 मात्रा की, तृतीय यति भी 8 मात्रा की तथा पदांत यति 6  मात्रा की रहती है।  
यति के अनुसार चार प्रकार की छंदाएँ हैं।
सम यति छंदा - दो समान यतियों की छंदा।
विषम यति छंदा - दो असमान यतियों की छंदा।
सम बहु यति छंदा - दो से अधिक समान यतियों की छंदा।
विषम बहु यति छंदा - दो से अधिक असमान यतियों की छंदा। जैसे त्रिभंगी।
यति कभी भी शब्द के मध्य में नहीं पड़नी चाहिए।

अंत्यानुप्रास:-

छंद के वर्णिक विन्यास या मात्रिक विन्यास से उस छंद विशेष के पदों के क्रमागत उच्चारण में समरूपता रहती है। वर्ण वृत्तों में तो पदों के उच्चारण में यह समरूपता अत्यधिक रहती है। इसके साथ साथ यदि पदांत सम स्वर या समवर्ण या दोनों ही रहे तो फिर माधुर्य में चार चांद लग जाते हैं। पदांत की यही समानता अंत्यानुप्रास या तुक मिलाना कहलाती है। हिन्दी भाषा के अधिकांश छंद मात्रिक विन्यास पर आधारित रहते हैं और लगभग सभी छंदो में अंत्यानुप्रास या तुक की अनिवार्यता रहती है। 

पाठकों के लाभ की आशा से इस ग्रन्थ में अंत्यानुप्रास के कुछ नियम निर्धारित किये गये हैं। इसके लिए इससे संबंधित कुछ पारिभाषिक शब्दों को समझना आवश्यक है।

पदांत:- किसी भी छंद के पद का अंत ही पदांत है। सम पदांतता के कुछ नियम हैं जो निम्न हैं।
1- पदों का अंतिम वर्ण मात्रा सहित एक समान रहना चाहिए। इसमें 'है' को 'हे' या 'हैं' से नहीं मिलाया जा सकता, इसी प्रकार 'लो' के स्थान पर 'लौ' भी स्वीकार्य नहीं।
2- नियम 1 के अनुसार मिले वर्ण के उपांत वर्ण में भी स्वर साम्य होना आवश्यक है। चले के साथ खिले, घुले की तुक या सोना के साथ बिछौना की तुक निम्न स्तर की है। चले के साथ तले, पले जैसे शब्द ही आने चाहिए। इस संदर्भ में 
नींद ले,
वे चले।
तुक ठीक है।

किसी भी छंद की तुक दो प्रकार से मिलाई जा सकती है। प्रथम तो पदांत का मिलान कर देना। दूसरे ध्रुवांत के साथ समांत का आना।

ध्रुवांत :- ध्रुव का अर्थ है जो अटल हो। किसी भी छंद का अंत कोई न कोई शब्द से तो होना ही है। अतः ध्रुवांत शब्द की परिभाषा है छंद के पद के अंत के अटल शब्द। उर्दू भाषा का रदीफ़ शब्द इसका समानार्थी है। यह अंत का ध्रुव शब्द एक वर्णी है, हैं, था, थी जैसी सहायक क्रिया या फिर ने, से, में जैसी विभक्ति भी हो सकता है। ध्रुवांत एक शब्द का भी हो सकता है या एक से अधिक शब्दों का भी।

समांत :- केवल ध्रुवांत के मिलने से छंद के पद सानुप्रासी नहीं हो सकते। इसके लिए ध्रुवांत से ठीक पहले ध्वन्यात्मक रूप से एक समान अंत वाले शब्द रहने चाहिए और ऐसे शब्द ही समांत कहलाते हैं। पदांत की तरह इसके भी नियम हैं।
1- समांतता के लिए एक शब्द के अंत में यदि (आ, ई, ऊ, ए, ओ, अं आदि) जैसी दीर्घ मात्रा है तो दूसरे शब्द के अंत में ठीक उसी मात्रा का रहना यथेष्ट है। नदी, ही, की, कोई आदि समांत हैं क्योंकी ई की समांतता है। आया, रोका, मेला समांत हैं।  पुराने, के, पीले समांत हैं।
2- यदि एक शब्द का अंत लघुमात्रिक (अ,इ ,उ,ऋ) है तो समांत मिलाने के लिए यह लघुमात्रिक वर्ण उसी मात्रा के साथ दूसरे शब्द में भी रहना चाहिए। इसके साथ ही इस के उपांत वर्ण का भी स्वरसाम्य रहना चाहिए। जैसे पतन के समांत मन, उपवन, संशोधन आदि हो सकते हैं परन्तु दिन, सगुन आदि नहीं हो सकते। पतन का 'न' लघुमात्रिक है इसलिये 'न' के साथ साथ इसके पूर्व के वर्ण का अकार होना भी आवश्यक है। छवि के समांत रवि, कवि आदि हो सकते हैं।

हिन्दी के अधिकांश छंद चतुष्पदी होते हैं और इनमें क्रमागत दो दो पद समतुकांत रहते हैं। सवैया, घनाक्षरी आदि कुछ ही छंद ऐसे हैं जिनमें चारों पद की समतुकांतता आवश्यक है। इसी प्रकार द्विपदी छंदों के दोनों पद समतुकांत रहते हैं जैसे दोहा, बरवे, उल्लाला आदि। द्वि पदी छंदों में सोरठा इसका अपवाद है जिसमें तुक मध्य यति की मिलायी जाती है। कुछ छंदों में कविगण उस छंद के पद की द्विगुणित रूप में रचना कर तुकांतता दूसरे और चौथे पद की रखते हैं। हिन्दी में मुक्तक भी बहुत प्रचलित हैं जिनके प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ पद समतुकांत रहते हैं। हिन्दी में कई बहु यति छंद भी हैं जिन में सम पदांतता रखते हुये प्रथम दो यतियाँ की तुक भी आपस में मिलायी जाती है जैसे चौपइया, त्रिभंगी आदि। यह आभ्यंतर तुक कहलाती है।

हिन्दी में गजल शैली में भी रचना करने का प्रचलन तेजी से बढा है जिसमें ध्रुवांत समांत आधारित तुकांतता रहती है। हिन्दी के छंदों में रचना की प्रत्येक द्विपदी की तुकांतता अपने आप में स्वतंत्र है परन्तु इस शैली में तुकांतता स्वतंत्र नहीं है। प्रथम द्विपदी के आधार पर जो तुकांतता बंध गयी रचना में अंत तक वही निभानी पड़ती है। इस शैली के दो रूप का कुछ नवीन संज्ञाओं और अवधारणा के साथ इसके अगले पाठ में विस्तृत विवरण दिया जायेगा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-05-20

Thursday, December 7, 2023

मनोरम छंद "वीर सैनिक"

पर्वतों का चीर अंचल।
मोड़ नदियों का धरातल।।
बर्फ के अंबार काटें।
जो असमतल भूमि पाटें।।

काट जंगल पथ बनातें।
पाँव फिर सैनिक बढातें।।
दुश्मनों के काल वे बन।
मोरचा ले कर डटें तन।।

ये अनेकों प्रांत के हैं।
वेश, मजहब, जात के हैं।।
देश के ये गीत गाते।
याद घर की सब भुलाते।।

जी हिलाती घाटियों में।
मार्च करते वर्दियों में।।
मस्तियों में नाचते हैं।
साथ मिल गम बाँटते हैं।।

गोलियों की बारिशों में।
तोप, बम्बों के सुरों में।।
हिन्द की सेना सजाते।
बैंड दुश्मन का बजाते।।

देश की पावन धरोहर।
है इन्हीं के स्कंध ऊपर।।
कृत्य इनके हैं अलौकिक।
ये 'नमन' के पात्र सैनिक।।
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मनोरम छंद विधान -

मनोरम छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- S122 21SS या S122 21S11 है। S का अर्थ गुरु वर्ण है। 2 को 11 करने की छूट है पर S को 11 नहीं कर सकते।

यह कुछ सीमा तक 2122*2 की मापनी पर आधारित छंद है। परंतु इस छंद के चरण के प्रारंभ में गुरु वर्ण आवश्यक है। चरणांत यगण (1SS) या भगण (S11) से आवश्यक है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
04-06-22

Friday, November 24, 2023

छंदा सागर "सवैया छंदाए"

                     पाठ - 22


छंदा सागर ग्रन्थ


"सवैया छंदाए"


हिंदी के रीतिकालीन, भक्तिकालीन युग से ही सवैया बहुत ही प्रचलित छंद रहा है। सवैया वर्णिक छंद है जिसमें वर्णों की संख्या सुनिश्चित रहती है। अतः दो लघु के स्थान पर गुरु वर्ण तथा गुरु वर्ण के स्थान पर दो लघु नहीं आ सकते।  प्राचीन कवियों की रचनाओं का अवलोकन करने से पता चलता है कि सवैया में सहायक क्रियाओं (है, था, थी आदि) तथा विभक्ति (का, में, से आदि) की मात्रा गिराना सामान्य बात थी। 

सवैया में यति का कोई रूढ़ नियम नहीं है। सवैया में 22 से 26 वर्ण तक होते हैं और एक सांस में इतने लंबे पद का उच्चारण संभव नहीं होता अतः 10 से 14 वर्ण के मध्य जहाँ भी शब्द समाप्त होता है स्वयंमेव यति हो जाती है। इसलिए यति-युक्त छंदाएँ न दे कर सीधी छंदाएँ दी गयी हैं। 24 वर्णी सवैयों में 12 वर्ण पर यति के साथ की छंदा भी दी गयी है तथा सीधी छंदा भी दी गयी है, यह रचनाकार पर निर्भर है कि किस छंदा में रचना कर रहा है। 

सवैया में एक ही गण की कई आवृत्ति रहती है तथा अंत में कुछ वर्ण या अन्य गुच्छक रहता है। सात की संख्या के लिए 'ड' वर्ण तथा आठ की संख्या के लिए 'ठ' वर्ण प्रयुक्त होता है जिसका परिचय संकेतक के पाठ में कराया गया था। ये वर्ण अ, आ, की मात्रा के साथ प्रयुक्त होते हैं। सवैयों की छंदाएँ ण व स्वरूप संकेतक के बिना ही दी जा रही हैं। अब यह रचनाकार पर निर्भर है कि वह विशुद्ध वर्णिक स्वरूप में रचना कर रहा है या मान्य मात्रा पतन के आधार पर।

'भगण' (211) आश्रित सवैये:- 

211*7 +2 = भाडग (मदिरा सवैया)
211*7 +22 = भडगी  (मत्तगयंद सवैया)
211*7 +21 = भडगू (चकोर सवैया)
211*7 212 = भाडर (अरसात सवैया)
211*8 = भाठा (किरीट सवैया)
211*4, 211*4 = भाचध (किरीट, 12 वर्ण पर यति)
211*4  21122*2 = भचभेदा (मोद सवैया) 
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'जगण' (121) आश्रित सवैये:- 

121*7 +12 = जडली   (सुमुखी सवैया)
121*7 122 = जाडय  (बाम सवैया)
121*8 = जाठा  (मुक्ताहरा सवैया)
121*4, 121*4 = जाचध (मुक्ताहरा सवैया यति-युक्त)
121*8 +1 = जाठल (लवंगलता सवैया)
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'सगण' (112) आश्रित सवैये:- 

112*8  = साठा  (दुर्मिला सवैया)
112*4, 112*4  = साचध  (दुर्मिला यति-युक्त)
112*8 +2 = साठग  (सुंदरी सवैया)
112*8 +1 = साठल  (अरविंद सवैया)
112*8 +11 = सठलू (सुखी सवैया)
112*8 +12 = सठली  (पितामह सवैया)
*****

'यगण' (122) आश्रित सवैये:- 

122*8 = याठा (भुजंग सवैया)
122*4, 122*4 = याचध (भुजंग सवैया यति-युक्त)
122*7 +12 = यडली  (वागीश्वरी सवैया)
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'रगण' (212) आश्रित सवैये:- 

212*8 = राठा   (गंगोदक सवैया)
212*4, 212*4 = राचध (गंगोदक सवैया यति-युक्त)
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'तगण' (221) आश्रित सवैये:- 

221*7 +2 = ताडग   (मंदारमाला सवैया)
221*7 +22 = तडगी  (सर्वगामी सवैया)
221*8 = ताठा  (आभार सवैया)
221*4, 221*4 = ताचध (आभार सवैया यति-युक्त)
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ऊपर मगण और नगण को छोड़ बाकी छह गण पर आश्रित सभी प्रचलित सवैयों की छंदाएँ दी गयी हैं। भगण की सात या आठ आवृत्ति के पश्चात वर्ण संयोजन से प्राप्त सवैयों की संभावित छंदाएँ देखें-
सात आवृत्ति के पश्चात छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त सवैये- भाडल, भाडग, भडगी, भडली, भडगू,भडलू।

आठ आवृत्ति के तथा छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त - भाठा, भाठल, भाठग, भठगी, भठली, भठगू,भठलू।

चार आवृत्ति तथा अंतिम दो आवृत्ति में युग्म वर्ण के संयोजन से प्राप्त चार सवैये - भचभेदा, भचभूदा, भचभींदा, भचभोदा।

इस प्रकार मगण नगण को छोड़ छहों गण के 17 - 17 सवैये बन सकते हैं।
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वर्ण-संयोजित सवैये:-

इसी पाठ के अंतर्गत विभिन्न गण आधारित वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ सम्मिलित की गयी हैं जिनमें एक ही गण की आवृत्ति के मध्य विभिन्न वर्ण का संयोजन है। इन सवैया छंदाओं में भी एक ही गण की 6 आवृत्ति है तथा 22 से 26 वर्ण हैं।  कुल वर्ण 6 हैं जिनसे द्वितीय पाठ में हमारा परिचय हो चुका है। इन छंदाओं में इन छहों वर्णों का संयोजन देखने को मिलेगा। ऊपर सवैयों में विभिन्न गणों की सात या आठ आवृत्ति के अंत में इन्हीं वर्ण का संयोजन है पर इन वर्ण संयोजित सवैयों में इन वर्णों का गणों के मध्य में भी संयोजन है और अंत में भी। 

मगण और नगण में केवल एक ही वर्ण दीर्घ या लघु रहता हैं। एक ही वर्ण की आवृत्ति से सवैये की विशेष लय नहीं आती है। सवैया चार पद की समतुकांत छंद है। यहाँ हम भगण को आधार बना कर छंदाएँ दे रहे हैं इसी आधार पर तगण, रगण, यगण, जगण और सगण में भी छंदाएँ बनेंगी।

211*3 +22 211*3 +22 = भबगीधू
(इस छंदा में तीन आवृत्ति के पश्चात इगागा वर्ण के संयोजन के दो खंड हैं। चारों युग्म वर्ण के दोनों स्थानों पर हेरफेर से इस छंदा के 4*4 कुल 16 रूप बनेंगे। 
भबगीधू, भबगीभबली, भबगीभबगू, भबगीभबलू
भबलीधू, भबलीभबगी, भबलीभबगू, भबलीभबलू
भबगूधू, भबगूभबगी, भबगूभबली, भबगूभबलू
भबलूधू, भबलूभबगी, भबलूभबली, भबलूभबगू

इन छंदाओं की मध्य यति की छंदाएँ-
भबगिध, भबगिणभबली, भबगिणभबगू, भबगिणभबलू आदि।
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(211*2 +22)*3 22 = भदगीथूगी
(इस छंदा में दो स्थान पर वर्ण संयोजन है और दोनों स्थान पर छहों वर्ण जुड़ सकते हैं। इस छंदा के कुल 36 रूप बनेंगे।
भादलथुल, भादलथुग, भादलथूली, भादलथूगी, भादलथूलू, भादलथूगू।
इसी प्रकार ये छहों छंदाएँ भादग, भदगी, भदली, भदगू तथा भदलू के साथ बनेंगी।
चार युग्म वर्ण संयोजन की बिना अंतिम वर्ण संयोजित किये भी छंदाएँ बनेंगी।
भदगीथू, भदलीथू, भदगूथू, भदलूथू
इस प्रकार इस मेल से 40 वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ बनेंगी।

इन छंदाओं में थू के स्थान पर थ के प्रयोग से त्रियति छंदाएँ बन सकती हैं। जैसे -
211*2 +2, 211*2 +2, 211 2112 22 = भदगथगी (इस छंदा में भादग की यति सहित तीन आवृत्ति के पश्चात गी स्वतंत्र रूप से जुड़ा हुआ है। ऐसा अंत का वर्ण संयोजन अंतिम यति का ही हिस्सा माना जाता है। यही यदि वर्ण के स्थान पर कोई गुच्छक होता तो उसकी स्वतंत्र यति होती। जैसे भादगथर में भादग की तीन यति के पश्चात अंत के रगण की स्वतंत्र यति है।)

इस प्रकार वर्ण-संयोजित सवैयों की श्रेणी में छहों गण की 56 - 56 छंदा संभव है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-12-19

Wednesday, November 15, 2023

मनमोहन छंद "राजनीति"

राजनीति की, उठक पटक।
नेताओं की, चमक दमक।।
निज निज दल में, सभी मगन।
मातृभूमि की, कुछ न लगन।।

परिवारों की, छाँव सघन।
वंश वाद को, करे गहन।।
चाटुकारिता, हुई प्रबल।
पत्रकारिता, नहीं सबल।।

लगे समस्या, बड़ी विकट।
समाधान है, नहीं निकट।।
कैसे ढाँचा, सकूँ बदल।
किस विध लाऊँ, भोर नवल।।

आँखें रहती, नित्य सजल।
प्रतिदिन पीता, यही गरल।।
देश भक्ति की, लगी लगन।
रहता इसमें, सदा मगन।।

मन में भारी, उथल पुथल।
असमंजस में, हृदय पटल।।
राजनीति की, गहूँ शरण।
या फिर कविता, करूँ वरण।।

हर दिन पहले, बिखर बिखर।
धीरे धीरे, गया निखर।।
समझा किसका, करूँ चयन।
'नमन' काव्य का, करे सृजन।।
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मनमोहन छंद विधान -

मनमोहन छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत नगण (111) से होना आवश्यक है। इसमें 8 और 6 मात्राओं पर यति अनिवार्य है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट अठकल, छक्कल है जिसका अंत 111 से जरूरी है। अठकल में 4 4 या 3 3 2 हो सकते हैं। छक्कल की यहाँ संभावनाएँ:-
3 + नगण (3 = 12, 21 या 111)
2 +1111 (2 = 2 या 11)
211 + 11 (2 = 2 या 11)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
02-06-22

Friday, November 10, 2023

छंदा सागर "कवित्त छंदाएँ विभेद"

                       पाठ - 21


छंदा सागर ग्रन्थ


"कवित्त छंदाएँ विभेद"


(1) मनहरण घनाक्षरी:- "छूचणछुबफग" 

कुल वर्ण संख्या = 31। यहाँ समशब्द आधारित सरलतम छंदा दी गयी है। पिछले पाठ में छू यानी 4 वर्ण के खण्ड के और भी दो रूप बताये गये हैं जिनके प्रयोग से अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है। पदान्त हमेशा गुरु ही रहता है।
छूचण = 4×4 (16 वर्ण और यति सूचक ण)
छुब = 4×3
फग = कोई भी दो वर्ण और अंत में दीर्घ।
यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछूफग" के रूप में रखी जा सकती है।

(2) जनहरण घनाक्षरी:- "नंचणनंबस"

नंचण का अर्थ- नगण के संकेतक में अनुस्वार से 1111 रूप बना। अतः नंचण का अर्थ हुआ 1111*4, 
नंबस- 1111*3 तथा अंत में सगण(112)।
जनहरण कुल 31 वर्ण की घनाक्षरी है जिसके प्रथम 30 वर्ण लघु तथा अंतिम वर्ण दीर्घ। यति 8-8 वर्ण पर 'नंदथनंसा' के रूप में भी रखी जा सकती है।
इसकी रचना में कल संयोजन बहुत महत्वपूर्ण है। 8 वर्ण की यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(3) रूप घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगू"

फगू का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। यह 32 वर्ण की घनाक्षरी है। यहाँ समवर्ण आधारित सरल छंदा दी गयी है। इस घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण ठीक मनहरण घनाक्षरी वाले हैं जो पूर्व पाठ में विस्तार से बताये गये हैं। उन्हीं के आधार पर छूचणछूबा के विभिन्न रूप लिये जा सकते हैं। यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछुफगू" के रूप में रखी जा सकती है।

(4) जलहरण घनाक्षरी:- "छूचणछूबफलू'

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में और रूप घनाक्षरी में केवल अंतिम दो वर्ण का अंतर है। रूप के अंत में उगाल वर्ण (21) है तथा जलहरण के अंत में ऊलल वर्ण (11) है। बाकी 30 वर्ण छूचणछूबफ के रूप में एक समान हैं। इसमें भी यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफलू" के रूप में रखी जा सकती है।

(5) मदन घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगी"

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में भी केवल अंतिम दो वर्ण का ही अंतर है। रूप के अंत में उगाल (21) है, जलहरण के अंत में ऊलल (11) तथा मदन में इगागा (22) है। बाकी सब समान हैं। यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफगी" के रूप में भी रखी जा सकती है।

(6) डमरू घनाक्षरी:- "ठींदध"

'ठीं' का अर्थ है मात्रा रहित 8 वर्ण। इन में संयुक्ताक्षर वर्जित हैं। 'ठी' संकेतक मात्रा रहित 8 वर्ण का है जिसमें संयुक्ताक्षर मान्य हैं। परंतु 'ठीं का अर्थ मात्रा रहित 8 वर्ण का समूह जिसमें संयुक्ताक्षर भी मान्य नहीं हैं। 'द' इस ठीं संकेतक को द्विगुणित कर रहा है तथा अंत में 'ध' इसे दोहराकर दो यति में विभक्त कर रहा है। 

यह घनाक्षरी चार यति में बहुत रोचक होती है जिसकी छंदा "ठींचौ" है। मात्रिक छंदाओं में हम दौ, तौ आदि संकेतक से परिचित हुए थे। इस प्रकार डमरू घनाक्षरी में 32 मात्रा रहित वर्ण होते हैं। यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(7) कृपाण घनाक्षरी:- "छूदथछुफगू सर्वानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।  पहले की 6 घनाक्षरियों की छंदाऐँ दो यति की दी गयी थी परन्तु इसकी 4 यति की दी गयी है जो कि अनिवार्य है। 'फगू' का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। साथ ही इसकी छंदा में सर्वानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है। इसके एक पद में 4 यति होती है और कृपाण घनाक्षरी में चारों समतुकांत होनी चाहिए। घनाक्षरी में कुल चार समतुकांत पद होते हैं और इस प्रकार कृपाण घनाक्षरी की 4*4 = 16 यति समतुकांत रहनी चाहिए।

(8) विजया घनाक्षरी:- "छूदथछुफली सानुप्रासी" तथा  "छूदथछूखन सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव इलगा वर्ण (12) अथवा नगण (111) आवश्यक। पदांत इलगा (12) की छंदा का नाम "छूदथछुफली" और अंत में यदि नगण है तो "छूदथछूखन" नाम है। इसकी छंदा में सानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ आंतरिक तीनों यतियाँ भी समतुकांत होनी चाहिए। आंतरिक यतियाँ भी पदान्त यति (12) या (111) के अनुरूप रखें तो उत्तम।

(9) हरिहरण घनाक्षरी:- "छूदथछुफलू सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32 । 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव ऊलल वर्ण (11) आवश्यक। पद की प्रथम तीन यति भी समतुकांत होनी चाहिए।

(10) देव घनाक्षरी:- "छूदथछूफन" - 
कुल वर्ण = 33। 8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
पदान्त में सदैव 3 लघु (111) आवश्यक। यह पदान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे 'चलत चलत' रहे तो उत्तम।

(11) सूर घनाक्षरी:- "छूदथछुफ" - यह 30 वर्ण की घनाक्षरी है। 8, 8, 8, 6 पर यति अनिवार्य।
पदान्त की कोई बाध्यता नहीं, कुछ भी रख सकते हैं।

जनहरण और डमरू को छोड़ हर घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण "छूदथछू" अथवा "छूचणछूबा" के रूप में समान हैं। इसके पिछले पाठ में इन 28 वर्ण की लगभग सभी संभावनाओं पर विचार किया गया है। उन विविध रूपों का इन घनाक्षरियों में भी प्रयोग कर रचना में अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
3-12-19

Sunday, November 5, 2023

सेदोका (आतंकवाद)

(5 7 7 5 7 7 वर्ण प्रति पंक्ति)

आतंकवाद
गोली या निर्लज्जता? 
फर्क नहीं पड़ता।
करे छलनी
ये एकबार तन
वो रह रह मन।
****

पर्यावरण
चाहे हर जगह
लगे वृक्ष ही वृक्ष।
विकास चाहे
कंक्रीट के जंगल
कट कट के वृक्ष।
****

अमोल नेत्र
जो मरने के बाद
यूँ ही जल जाएंगे।
कर दो दान
किसीको रोशनी दे
खुशियाँ सजाएंगे।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-16

Monday, October 30, 2023

चौपाई छंद "श्रावण-सोमवार"

सावन पावन भावन छाया।
सोमवार त्योहार सुहाया।।
शंकर किंकर-हृदय समाया।
वन्दन चन्दन देय सजाया।।

षटमुख गजमुख तात महानी।
तू शमशानी औघड़दानी।।
भंग भुजंग-सार का पानी।
आशुतोष तू दोष नसानी।।

चंदा गंगा सर पर साजे।
डमरू घुँघरू कर में बाजे।।
शैल बैल पर तू नित राजे।
शोभा आभा लख सब लाजे।।

गरिमा महिमा अति है न्यारी।
पापन-नाशी काशी प्यारी।।
वरदा गिरिजा प्रिया दुलारी।
पाप त्रि-ताप हरो त्रिपुरारी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-07-19

Monday, October 23, 2023

छंदा सागर "कवित्त छंदाएँ"

                      पाठ - 20


छंदा सागर ग्रन्थ


"कवित्त छंदाएँ"


सवैया की तरह हिंदी में कवित्त या घनाक्षरी भी बहुत प्रचलित छंद है। कवित्त सवैया की तरह पूर्णतया गणाश्रित तो नहीं है परंतु वर्णों की संख्या  इसमें भी सुनिश्चित है। संकेतक आधारित पाठ में 'ख', 'फ', 'झ', 'छ' संकेतक से हमारा परिचय हुआ था जिनका कवित्त-छंदाओं में प्रचुर प्रयोग है। ये चारों संकेतक वर्ण की संख्या दर्शाते हैं जो क्रमशः 1, 2, 3, 4 है। यहाँ पुनः प्रत्येक संकेतक को विस्तार से समझाया गया है।

ख या खा :- एक वर्ण का शब्द जो लघु या दीर्घ कुछ भी हो सकता है।

फ या फा :- किसी भी मात्रा क्रम का द्विवर्णी शब्द। इसकी चार संभावनाएं हैं। 11, 12, 21, 22

झु या झू :- घनाक्षरी में यह संकेतक केवल झू या झु के रूप में प्रयुक्त होता है। इसका अर्थ है, तीन वर्ण का शब्द जिसके मध्य में लघु वर्ण हो। इसकी चार संभावनाएँ हैं -  111, 211, 112, 212।

छु या छू :- इसका अर्थ है लघु या दीर्घ कोई भी चार वर्ण जो केवल समवर्ण आधारित शब्द में हों। ये चार वर्ण दो द्विवर्णी शब्द में हो सकते हैं या एक चतुष्वर्णी शब्द में।

कवित्त या घनाक्षरी में मनहरण घनाक्षरी सबसे प्रमुख है और इसी को आधार बना कर यहाँ पर कुछ छंदाएँ प्रस्तुत हैं। घनाक्षरी का संसार अत्यंत विस्तृत है पर इन छंदाओं के आधार पर कोई भी सफल घनाक्षरी का सृजन कर सकता है।

घनाक्षरी में सम तुकांतता के चार पद होते हैं। घनाक्षरी के एक पद में 30 से 33 वर्ण तक होते हैं। इनमें से प्रथम 28 वर्ण के 4 - 4 वर्ण के सात खण्ड रहते हैं जो प्रत्येक घनाक्षरी में आवश्यक हैं। प्रायः घनाक्षरियों में इन 28 वर्ण का एक ही विधान रहता है जिस पर हम चर्चा करने जा रहे हैं। अंतिम खण्ड में घनाक्षरी के विभेद के अनुसार 2 से लेकर 5 वर्ण तक हो सकते हैं। मनहरण के पद के अंतिम खण्ड में 3 वर्ण रहते हैं। इस प्रकार मनहरण के पद में (28+3) कुल 31 वर्ण होते हैं।किसी भी घनाक्षरी के प्रथम 16 वर्ण के पश्चात यति अनिवार्य है। इस प्रकार मनहरण के पद में 16 वर्ण पर प्रथम यति तथा बाकी बचे 15 वर्ण के पश्चात पदांत यति रहती है। यह देखा गया है कि 8 - 8 वर्ण पर यति रखने से रचना में लालित्य की वृद्धि होती है अतः पद में चार यति रख कर रचना करें तो और अच्छा है जो कि कई घनाक्षरियों में तो नियमों के अंतर्गत भी है। ये चार यति 8, 8, 8, तथा बाकी बचे वर्ण पर रहती हैं।

घनाक्षरी की लय सम शब्द पर टिकी हुई है। घनाक्षरी में सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला संकेतक 'छु' या 'छू' है, जिसका अर्थ ऊपर स्पष्ट किया गया है।

घनाक्षरी में विविधता लाने के लिए सम वर्ण शब्द के अतिरिक्त विषम वर्ण शब्द भी रखने आवश्यक हैं। ऐसे विषम वर्ण शब्दों का घनाक्षरी के पद में सफल संयोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः जहाँ भी विषम वर्ण शब्द आये उसके तुरंत बाद दूसरा विषम वर्ण शब्द लाकर समकल बनाना आवश्यक है। इसकी संभावना के रूप में 3+1, 1+3, 1+1 आदि हैं। इस नियम के अपवाद के रूप में ऐसे दो विषम वर्ण शब्द के मध्य ऊलग (12) वर्ण का शब्द या शब्द आ सकते हैं जैसे दया, चलो आदि। उदाहरणार्थ "जो दया सभी पे करे"।

घनाक्षरी के किसी भी पद की रचना मुख्यतया 4 - 4 वर्णों के सात खण्ड पर आश्रित रहती है। अतः इसका प्रारूप समझना अत्यंत आवश्यक है।

चार वर्ण के खंड के तीन रूप हैं।

(1) 'छू' (2) झुख और (3) गन।

छू की व्याख्या कर दी गयी है।
'झू' की 4 संभावनाऐँ हैं - 111, 112, 211, 212
तथा 'खा' की 1 या 2 के रूप में दो संभावनाऐँ हैं।
झुख को निम्न रूप में भी रखा जा सकता है।
2 121 या 2 122
2 12 1 या 2 12 2 (तीन शब्द)
यह ध्यान में रहना चाहिये कि चार वर्ण के खण्ड का प्रथम वर्ण यदि एक अक्षरी शब्द है तो वह सदैव दीर्घ होना चाहिये।
'गन' अर्थात गुरु वर्ण तथा नगण। जिसका केवल 2 111 एक रूप है।

एक यति खण्ड के 4+4 के दो खण्डों का अष्टवर्णी खण्ड भी बनाया जा सकता है जिसके निम्न दो रूप हैं।
(1) झूलीखफ 
झूलीखफ की अनेक संभावनाऐँ हैं।
'झू' की 4 संभावनाऐँ ऊपर बताई गयी हैं।
'लीख' में 'ली' का अर्थ इलगा वर्ण (12) है, अतः इसके 121 और 122 ये दो रूप बनते हैं।
'फ' के (11, 12, 21, 22) चार रूप हैं।
(2) झूनफ
'न' का अर्थ नगण (111)।

8 वर्ण के यति खण्ड की संभावनाएँ देखें।

(1) छूदा - द्विगुणित 'छू'
(2) झुखधू - 'धू' संकेतक झुख का बिना यति का द्विगुणित रूप दर्शाता है।
(3) गनधू 
(4,5) छूझुख, झुखछू
(6,7) छूगन, गनछू
(8,9) झुखगन, गनझुख
(10) झूलीखफ  
(11) झूनफ

आठ वर्ण की यति उपरोक्त संभावना में से किसी भी संभावना की रखी जा सकती है।

इस प्रकार हमारे पास 8 वर्ण के यति खंड की समस्त संभावनाएं हैं। इन्हीं के आधार पर हम कुछ घनाक्षरी की छंदाएँ बनायेंगे।

छूदथछुर = यह मनहरण घनाक्षरी की 8 वर्ण पर यति की छंदा है। यह छंदा सम वर्णों पर आधारित है तथा सरलतम है। 'छू' संकेतक का अर्थ ऊपर स्पष्ट है। छूद का अर्थ चार चार वर्णों के दो खंड। 8 वर्णों की यति में सम-शब्दों के वर्ण की निम्न संभावनाऐँ बन सकती हैं।
4+4, 4+2+2, 2+4+2, 2+2+4, 2+2+2+2
किसी भी 2 को दो एक वर्णी शब्दों में तोड़ा जा सकता है। पर यदि चार के वर्ण खंड के प्रथम 2 को तोड़ते हैं तो प्रथम शब्द लघु नहीं होगा।
छूदथ का अर्थ हुआ यति के साथ 8 - 8 वर्णों के ऐसे 3 खंड। इसके पश्चात 'छु' का अर्थ फिर चार वर्णों का एक खंड। अंत का 'र' इसमें रगण (212) जोड़ता है। घनाक्षरी वर्ण आधारित संरचना है अतः 212 के किसी भी 2 को ओलल वर्ण यानी 11 में नहीं ले सकते। इस प्रकार इस छंदा का अर्थ हुआ-
8, 8, 8, 4 + (212) कुल 31 वर्ण।
8 में ऊपर वर्णित 11 संभावनाओं में से कोई भी ली जा सकती है। मनहरण में अंत में रगण (212) की विशेष लय आती है। पर विधान के अनुसार अंत में केवल गुरु वर्ण रहना चाहिए। अतः रगण के स्थान पर सगण (112), मगण (222) तथा यगण (122) भी रख सकते हैं।

झूलीखफ-थगनर:- झूलीखफ का अर्थ ऊपर स्पष्ट किया गया है।  'झूलीखफ' की तीन यति और अंत में गनर। झूलीखफ को छूझुख, झुखधू आदि से बदल कर छंदाओं के अनेक रूप बनाए जा सकते हैं।

छूगनथा-झूखय; 
गनझू-खथछुम
आदि विविध रूप की कई छंदाऐँ बन सकती हैं।

अब पद में केवल दो यति की छंदा:-

छूझूलिखफाछुण-छूझूलिखफर:-

इसमें अनेक संभावनाएं हैं। उनमें से उदाहरणार्थ एक रूप यह भी बन सकता है।
गाल लगा - गालगा लगाल गाल - ललगागा,
लगा गाल - गालल लगागा गागा गालगा।

'छुण' का अर्थ सम-वर्ण शब्द आधारित कोई भी चार वर्ण और यति।

छूझूलिखफझुखण-गनझुनफर:-

ऊपर चार वर्णी खंड तथा 8 वर्णी यति के कई संभावित रूप बताये गये हैं। घानाक्षरी के विविध पद तथा यति खंडों में इन रूप को अदल बदल कर अनेक प्रकार की विविधता से युक्त मनहरण घनाक्षरी का सृजन संभव है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-11-19

Monday, October 16, 2023

मधुमालती छंद "पर्यावरण"

पर्यावरण, मैला हुआ।
वातावरण, बिगड़ा हुआ।।
कोई नहीं, संयोग ये।
मानव रचित, इक रोग ये।।

धुंआ बड़ा, विकराल है।
साक्षात ये, दुष्काल है।।
फैला हुआ, चहुँ ओर ये।
जग पर विपद, घनघोर ये।।

पादप कटें, देखो जहाँ।
निर्मल हवा, मिलती कहाँ।।
मृतप्राय है, वन-संपदा।
सिर पर खड़ी, बन आपदा।।

दूषित हुईं, सरिता सभी।
भारी कमी, जल की तभी।।
मिलके तुरत, उपचार हो।
देरी न अब, स्वीकार हो।।

हम नींद से, सारे जगें।
लतिका, विटप, पौधे लगें।।
होकर हरित, वसुधा खिले।
फल, पुष्प अरु, छाया मिले।।

कलरव मधुर, पक्षी करें।
संगीत से, भू को भरें।।
दूषित हवा, सब लुप्त हों।
रोगाणु भी, सब सुप्त हों।।

दूषण रहित, संयंत्र हों।
वसुधा-हिती, जनतंत्र हों।।
वातावरण, स्वच्छंद हो।
मन में न कुछ, दुख द्वंद हो।।

क्यों नागरिक, पीड़ा सहें।
बन जागरुक, सारे रहें।।
बेला न ये, आये कभी।
विपदा 'नमन', टालें सभी।।
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मधुमालती छंद विधान -

मधुमालती छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। इसमें 7 - 7 मात्राओं पर यति तथा पदांत रगण (S1S) से होना अनिवार्य है । यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 2212, 2S1S है। S का अर्थ गुरु वर्ण है। 2 को 11 करने की छूट है पर S को 11 नहीं कर सकते।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
05-06-22