जापानी विधा (5-7-5-7-7)
संदल तन
चंचल चितवन
धीरे मुस्काना,
फिर आँख झुकाना
कर देता दीवाना।
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उजड़े बाग
धूमिल है पराग
कागजी फूल,
घरों में सज रहे
पर्यावरण दहे।
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अच्छा सोचना
लिखना व बोलना
अलग बात,
उस पर चलना
सब की न औकात।
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शीत कठोर!
स्मृति-सलाकाओं पे
बुनूँ स्वेटर,
माँ के खोये नेह का
कुछ तो गर्मी वो दे।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-2019
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