5-7-7-5-7-7 वर्ण
(1)
स्वच्छ निर्झर
पर्वत से गिरता,
नदी बन बहता।
स्वार्थी मानव!
डाले कूड़ा कर्कट,
समस्या है विकट।
**
(2)
निर्झर देता
जीवन रूपी जल,
चीर पर्वत-तल।
सदा बहना
शीत ताप सहना,
है इसका गहना।
**
(3)
यह झरना
जो पर्वत से छूटा,
सीधा भू पर फूटा।
धवल वेणी,
नभ से धरा तक
सर्प सी लहराए।
**
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-06-19
(1)
स्वच्छ निर्झर
पर्वत से गिरता,
नदी बन बहता।
स्वार्थी मानव!
डाले कूड़ा कर्कट,
समस्या है विकट।
**
(2)
निर्झर देता
जीवन रूपी जल,
चीर पर्वत-तल।
सदा बहना
शीत ताप सहना,
है इसका गहना।
**
(3)
यह झरना
जो पर्वत से छूटा,
सीधा भू पर फूटा।
धवल वेणी,
नभ से धरा तक
सर्प सी लहराए।
**
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-06-19
No comments:
Post a Comment