डगर कहे चीख, जरा ठहर पथिक सुनो।
कठिन सभी मार्ग, सदैव कर मनन चुनो।
जगत भरा कंट, परन्तु तुम सँभल चलो।
तमस भरी रात, प्रदीप बन स्वयम जलो।।
दुखमय संसार, अभाव अधिकतर सहे।
सुखमय तो मात्र, कुछेक सबल जन रहे।।
रह उनके साथ, विनष्ट यह जग जिनका।
कुछ करके काज, बसा घर नवल उनका।।
तुम कर के पान, समस्त दुख विपद बढ़ो।
गिरि सम ये राह, बना सरल सुगम चढ़ो।।
तुम रख सौहार्द्र, सुकार्य अबल-हित करो।
इस जग में धीर, सुवीर बन कर उभरो।।
विकृत हुआ देश, हवा बहत अब पछुआ।
सब चकनाचूर, यहाँ ऋषि-अभिमत हुआ।।
तुम बन आदर्श, कदाचरण सकल हरो।
यह फिर से देश, समृद्ध पथिक तुम करो।।
================
लक्षण छंद:-
"नयसननालाग", रखें सत अरु दश यतिं।
मधु 'रसना' छंद, रचें ललित मृदुल गतिं।
"नयसननालाग" = नगण यगण सगण नगण नगण लघु गुरु।
( 111 122 1,12 111 111 12 )
17वर्ण, यति{7-10} वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।
*********************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-01-19
कठिन सभी मार्ग, सदैव कर मनन चुनो।
जगत भरा कंट, परन्तु तुम सँभल चलो।
तमस भरी रात, प्रदीप बन स्वयम जलो।।
दुखमय संसार, अभाव अधिकतर सहे।
सुखमय तो मात्र, कुछेक सबल जन रहे।।
रह उनके साथ, विनष्ट यह जग जिनका।
कुछ करके काज, बसा घर नवल उनका।।
तुम कर के पान, समस्त दुख विपद बढ़ो।
गिरि सम ये राह, बना सरल सुगम चढ़ो।।
तुम रख सौहार्द्र, सुकार्य अबल-हित करो।
इस जग में धीर, सुवीर बन कर उभरो।।
विकृत हुआ देश, हवा बहत अब पछुआ।
सब चकनाचूर, यहाँ ऋषि-अभिमत हुआ।।
तुम बन आदर्श, कदाचरण सकल हरो।
यह फिर से देश, समृद्ध पथिक तुम करो।।
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लक्षण छंद:-
"नयसननालाग", रखें सत अरु दश यतिं।
मधु 'रसना' छंद, रचें ललित मृदुल गतिं।
"नयसननालाग" = नगण यगण सगण नगण नगण लघु गुरु।
( 111 122 1,12 111 111 12 )
17वर्ण, यति{7-10} वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-01-19
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