नन्दन कानन में स्मृतियों के, खोया खोया मैं रहता हूँ,
अवचेतन के राग सुनाने, भावों में हर पल बहता हूँ,
रहता सदा प्रतीक्षा रत मैं, कैसे नई प्रेरणा जागे,
प्रेरित उससे हो भावों को, काव्य रूप में तब कहता हूँ।
बहे काव्य धारा मन में नित, गोते जिसमें खूब लगाऊँ,
दिव्य प्रेरणा का अभिनन्दन, भावों में बह करता जाऊँ,
केवट सा बन कर खेऊँ मैं, भावों की बहती जल धारा,
भाव गीत बन के तब उभरे, केवट का मैं गान सुनाऊँ।
(32 मात्रिक छंद)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया।
14-04-18
अवचेतन के राग सुनाने, भावों में हर पल बहता हूँ,
रहता सदा प्रतीक्षा रत मैं, कैसे नई प्रेरणा जागे,
प्रेरित उससे हो भावों को, काव्य रूप में तब कहता हूँ।
बहे काव्य धारा मन में नित, गोते जिसमें खूब लगाऊँ,
दिव्य प्रेरणा का अभिनन्दन, भावों में बह करता जाऊँ,
केवट सा बन कर खेऊँ मैं, भावों की बहती जल धारा,
भाव गीत बन के तब उभरे, केवट का मैं गान सुनाऊँ।
(32 मात्रिक छंद)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया।
14-04-18
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