Thursday, November 14, 2019

डमरू घनाक्षरी

8 8 8 8  --32 मात्रा (बिना मात्रा के)

मन यह नटखट, छण छण छटपट,
मनहर नटवर, कर रख सर पर।

कल न पड़त पल, तन-मन हलचल,
लगत सकल जग, अब बस जर-जर।

चरणन रस चख, दरश-तड़प रख,
तकत डगर हर, नयनन जल भर।

मन अब तरसत, अवयव मचलत,
नटवर रख पत, जनम सफल कर।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1-03-18

1 comment:

  1. जय गोविंद शर्माMonday, October 09, 2023 8:26:00 AM

    अखिल भुवन वस,
    निखिलभुवनपति
    तिन चरणन रज
    नमन, नयन भर।
    क्या ही कहने!!!!

    शब्दसमुहों के साथ जितने आप सहज हैं,, या शुष्क वैयाकरणी भाषा मे कहूँ तो,, गणों के साथ,, विशेषकर,, नगण, जगण व रगण जिन्हें अतिक्लिष्ठ व कहीँ कहीँ तो अशुभ गणों की संज्ञा भी दे दी गई है,, उनके साथ आप जितना सहज व्यवहार कर लेते हैं,, अभिनंदनीय व अभ्यसूय है मामाजी,, काव्यकौशल इसे ही कहते हैं,, कथ्य पाठक के मानस में उतरता जाये,, व गणवृत्त अपने वाचिक सौन्दर्य की छाप भी छोड़ते जायें,, दोनो एक दूसरे के साथ मणिकाञ्चनवत् संयुक्त हो,,

    क्या ही कहने,, हृदय से अभिनंदन,, नमन मामाजी (08.10.2023)

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