बह्र:- 2122 2122 2122 212
आपने जो पौध रोपी वो शजर होने को है,
देश-हित के फैसलों का अब असर होने को है।
अब तलक तय जो सफ़र की ख़ार ही उसमें मिले,
आपके साये में अब आसाँ डगर होने को है।
अपना समझा था जिन्हें उनके दिये ही ज़ख्मों की,
दिल कँपाती दास्ताँ सुन आँख तर होने को है।
नफ़रतों के और दहशतगर्दी के इस दौर में,
देखिए इंसान कैसे जानवर होने को है।
देश को जो तोड़ने का ख्वाब देखें, जान लें,
औ' नहीं उनका यहाँ पर अब गुज़र होने को है।
जो पड़े हैं नींद में अब भी गुलामी की, सुनें,
जाग जाओ अब तो यारो दोपहर होने को है।
बेकरारी की अँधेरी रात में तड़पा 'नमन',
ज़िंदगी में अब मुहब्बत की सहर होने को है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-01-17