बह्र:- 122  122  122  12
चरागों के साये में बुझते रहे,
अँधेरे में पर हम दहकते रहे।
डगर गर न आसाँ तो परवाह क्या,
भरोसा रखे खुद पे चलते रहे।
जमाना हमें खींचता ही रहा,
मगर था हमें बढ़ना बढ़ते रहे।
जहाँ से थपेड़े ही खाये सदा,
मगर हम मुसीबत में ढलते रहे।
जवानों के जज़्बे का क्या हम कहें,
सदा हाथ दुश्मन ही मलते रहे।
महब्बत की मंजिल न ढूंढे मिली,
कदम दर कदम हम भटकते रहे।
गुलाबों सी फितरत मिली है 'नमन',
गले से लगा खार हँसते रहे।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-09-19
चरागों के साये में बुझते रहे,
अँधेरे में पर हम दहकते रहे।
डगर गर न आसाँ तो परवाह क्या,
भरोसा रखे खुद पे चलते रहे।
जमाना हमें खींचता ही रहा,
मगर था हमें बढ़ना बढ़ते रहे।
जहाँ से थपेड़े ही खाये सदा,
मगर हम मुसीबत में ढलते रहे।
जवानों के जज़्बे का क्या हम कहें,
सदा हाथ दुश्मन ही मलते रहे।
महब्बत की मंजिल न ढूंढे मिली,
कदम दर कदम हम भटकते रहे।
गुलाबों सी फितरत मिली है 'नमन',
गले से लगा खार हँसते रहे।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-09-19