Thursday, July 11, 2019

मत्त सवैया मुक्तकमाला (2019 चुनाव)

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

हर दल जो टुकड़ा टुकड़ा था, इस बार चुनावों ने छाँटा;
बाहर निकाल उसको फेंका, ज्यों चुभा हुआ हो वो काँटा;
जो अपनी अपनी डफली पर, बस राग स्वार्थ का गाते थे;
उस भ्रष्ट तंत्र के गालों पर, जनता ने मारा कस चाँटा।

इस बार विरोधी हर दल ने, ऐसा भारी झेला घाटा;
चित चारों खाने सभी हुए, हर ओर गया छा सन्नाटा।
जन-तंत्र-यज्ञ की वेदी में, उन सबकी आहुति आज लगी;
वे राजनीति को हाथ हिला, जल्दी करने वाले टा टा।

भारत में नव-उत्साह जगा, रिपु के घर में क्रंदन होगा;
बन विश्व-शक्ति उभरेंगे हम, जग भर में अब वंदन होगा;
हे मोदी! तुम कर्मठ नरवर, गांधी की पुण्य धरा के हो;
अब ओजपूर्ण नेतृत्व तले, भारत का अभिनंदन होगा।

तुम राष्ट्र-प्रेरणा के नायक, तुम एक सूत्र के दायक हो;
जो सकल विश्व को बेध सके, वैसे अमोघ तुम सायक हो;
भारत भू पर अवतरित हुये, ये भाग्य हमारा आज प्रबल;
तुम धीर वीर तुम शक्ति-पुंज, तुम जन जन के अधिनायक हो।

लिंक ---> राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-19

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया 'विधान'

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

राधेश्यामी छंद मत्त सवैया के नाम से भी प्रसिद्ध है। पंडित राधेश्याम ने राधेश्यामी रामायण 32 मात्रिक पद में रची। छंद में कुल चार पद होते हैं तथा क्रमागत दो-दो पद तुकान्त होते हैं। प्रति पद पदपादाकुलक छंद का दो गुना होता है l तब से यह छंद राधेश्यामी छंद के नाम से प्रसिद्धि पा गया।

पदपादाकुलक छंद के एक चरण में 16 मात्रा होती हैं , आदि में द्विकल (2 या 11) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिकल (21 या 12 या 111) वर्जित होता है।

राधेश्यामी छंद का मात्रा बाँट इस प्रकार तय होता है:
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (पद का प्रथम चरण)
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (पद का द्वितीय चरण)
द्विकल के दोनों रूप (2 या 1 1) मान्य है। तथा 12 मात्रा में तीन चौकल, अठकल और चौकल या चौकल और अठकल हो सकते हैं। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।

चौकल:- (1) प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है। 'करो न' सही है जबकि 'न करो' गलत है।
(2) चौकल में पूरित जगण जैसे सरोज, महीप, विचार जैसे शब्द वर्जित हैं।

अठकल:- (1) प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द समाप्त होना वर्जित है। 'राम कृपा हो' सही है जबकि 'हो राम कृपा' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है। यह ज्ञातव्य हो कि 'हो राम कृपा' में विषम के बाद विषम शब्द पड़ रहा है फिर भी लय बाधित है।
(2) 1-4 और 5-8 मात्रा पर पूरित जगण शब्द नहीं आ सकता।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

राधिका छंद "संकीर्ण मानसिकता"

अपने में ही बस मग्न, लोग क्यों सब हैं।
जीवन के सारे मूल्य, क्षीण क्यों अब हैं।।
हो दिशाहीन सब लोग, भटकते क्यों हैं।
दूजों का हर अधिकार, झटकते क्यों हैं।।

आडंबर का सब ओर, जोर है भारी।
दिखते तो स्थिर-मन किंतु, बहुत दुखियारी।।
ऊपर से चमके खूब, हृदय है काला।
ये कैसा भीषण रोग, सभी ने पाला।।

तन पर कपड़े रख स्वच्छ, शान झूठी में।
करना चाहें अब लोग, जगत मुट्ठी में।।
अब सिमट गये सब स्नेह, स्वार्थ अति छाया।
जीवन का बस उद्देश्य, लोभ, मद, माया।।

मानव खोया पहचान, यंत्रवत बन कर।
रिश्तों का भूला सार, स्वार्थ में सन कर।।
खो रहे योग्य-जन सकल, अपाहिज में मिल।
छिपती जाये लाचार, काग में कोकिल।।

नेता अभिनय में दक्ष, लोभ के मारे।
झूठे भाषण से देश, लूटते सारे।।
जनता भी केवल उन्हें, बिठाये सर पे।
जो ले लुभावने कौल, धमकता दर पे।।

झूठे वादों की बाढ़, चुनावों में अब।
बहुमत कैसे भी मिले, लखे नेता सब।।
हित आज देश के गौण, स्वार्थ सर्वोपर।
बिक पत्रकारिता गयी, लोभ में खो कर।।

है राजनीति सर्वत्र, खोखले नारे।
निज जाति, संगठन, धर्म, लगे बस प्यारे।।
ओछे विचार की बाढ़, भयंकर आयी।
कैसे जग-गुरु को आज, सोच ये भायी।।

मन से सारी संकीर्ण, सोच हम त्यागें।
रख कर नूतन उल्लास, सभी हम जागें।।
हम तुच्छ स्वार्थ से आज, तोड़ लें नाता।
धर उच्च भाव हम बनें, हृदय से दाता।।
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राधिका छंद *विधान*

इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्रा होती हैं, 13,9 पर यति होती है, यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है, कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l इसका मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है।

2 6 2 3 = 13 मात्रा, प्रथम यति। द्विकल के दोनों रूप (2, 1 1) और त्रिकल के तीनों रूप (2 1, 1 2, 1 1 1) मान्य हैं। छक्कल के नियम लगेंगे जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त नहीं होना तथा प्रथम चार मात्रा में पूरित जगण (विचार आदि) नहीं हो सकते।

3 2 2 2 = 9 मात्रा, द्वितीय यति। द्विकल त्रिकल के सभी रूप मान्य।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-12-2018


जब मन में हो हनुमान, राम तो अपने।
सब बन जाते हैं काम, पूर्ण हो सपने।।
मन में रख के विश्वास, करो सब पूजा।
जो हर ले सारे कष्ट, नहीं है दूजा।।
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बेजान साज पर थिरक, रहीं क्यों अंगुल।
ये रात मिलन की रही, बीत हो व्याकुल।
अब साज हृदय का मचल, रहा बजने को।
सब तरस रहें हैं अंग, सजन सजने को।।

मुक्तामणि छंद "गणेश वंदना"

मात पिता शिव पार्वती, कार्तिकेय गुरु भ्राता।
पुत्र रत्न शुभ लाभ हैं, वैभव सकल प्रदाता।।
रिद्धि सिद्धि के नाथ ये, गज-कर से मुख सोहे।
काया बड़ी विशाल जो, भक्त जनों को मोहे।।

भाद्र शुक्ल की चौथ को, गणपति पूजे जाते।
आशु बुद्धि संपन्न ये, मोदक प्रिय कहलाते।।
अधिपति हैं जल-तत्त्व के, पीत वस्त्र के धारी।
रक्त-पुष्प से सोहते, भव-भय सकल विदारी।।

सतयुग वाहन सिंह का, अरु मयूर है त्रेता।
द्वापर मूषक अश्व कलि, हो सवार गण-नेता।।
रुचिकर मोदक लड्डुअन, शमी-पत्र अरु दूर्वा।
हस्त पाश अंकुश धरे, शोभा बड़ी अपूर्वा।।

विद्यारंभ विवाह हो, गृह-प्रवेश उद्घाटन।
नवल कार्य आरंभ हो, या फिर हो तीर्थाटन।।
पूजा प्रथम गणेश की, संकट सारे टारे।
काज सुमिर इनको करो, विघ्न न आए द्वारे।।

भालचन्द्र लम्बोदरा, धूम्रकेतु गजकर्णक।
एकदंत गज-मुख कपिल, गणपति विकट विनायक।।
विघ्न-नाश अरु सुमुख ये, जपे नाम जो द्वादश।
रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ से, पाये नर मंगल यश।।

ग्रन्थ महाभारत लिखे, व्यास सहायक बन कर।
वरद हस्त ही नित रहे, अपने प्रिय भक्तन पर।।
मात पिता की भक्ति में, सर्वश्रेष्ठ गण-राजा।
'बासुदेव' विनती करे, सफल करो सब काजा।।
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विधान:-

दोहे का लघु अंत जब, सजता गुरु हो कर के।
'मुक्तामणि' प्रगटे तभी, भावों माँहि उभर के।।

मुक्तामणि चार चरणों का 25 मात्रा प्रति चरण का सम पद मात्रिक छंद है जो 13 और 12 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। 13 मात्रिक खण्ड ठीक दोहे वाले विधान का होता है। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। मात्रा बाँट:
विषम पद- 8+3 (ताल)+2 कुल 13 मात्रा।
सम पद- 8+2+2 कुल 12 मात्रा।
अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं।द्विकल के दोनों रूप (1 1 या 2) मान्य हैं।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-09-2016

मरहठा छंद "कृष्ण लीलामृत"

धरती जब व्याकुल, हरि भी आकुल, हो कर लें अवतार।
कर कृपा भक्त पर, दुख जग के हर, दूर करेंं भू भार।।
द्वापर युग में जब, घोर असुर सब, देन लगे संताप।
हरि भक्त सेवकी, मात देवकी, सुत बन प्रगटे आप।।

यमुना जल तारन, कालिय कारन, जो विष से भरपूर।
कालिय शत फन पर, नाचे जम कर, किया नाग-मद चूर।।
दावानल भारी, गौ मझधारी, फँस कर व्याकुल घोर।
कर पान हुताशन, विपदा नाशन, कीन्हा माखनचोर।।

विधि माया कीन्हे, सब हर लीन्हे, गौ अरु ग्वालन-बाल।
बन गौ अरु बालक, खुद जग-पालक, मेटा ब्रज-जंजाल।।
ब्रह्मा इत देखे, उत भी पेखे, दोनों एक समान।
तुम प्रभु अवतारी, भव भय हारी, ब्रह्म गये सब जान।।

ब्रज विपदा हारण, सुरपति कारण, आये जब यदुराज।
गोवर्धन धारा, सुरपति हारा, ब्रज का साधा काज।
मथुरा जब आये, कुब्जा भाये, मुष्टिक चाणुर मार।
नृप कंस दुष्ट अति, मामा दुर्मति, वध कर, दी भू तार।।

शिशुपाल हने जब, अग्र-पूज्य तब, राजसूय था यज्ञ।
भक्तन के तारक, दुष्ट विदारक, राजनीति मर्मज्ञ।।
पाण्डव के रक्षक, कौरव भक्षक, छिड़ा युद्ध जब घोर।
बन पार्थ शोक हर, गीता दे कर, लाये तुम नव भोर।।

ब्रज के तुम नायक, अति सुख दायक, सबका देकर साथ।
जब भीड़ पड़ी है, विपद हरी है, आगे आ तुम नाथ।।
हे कृष्ण मुरारी! जनता सारी, विपदा में है आज।
कर जोड़ सुमरते, विनती करते, रखियो हमरी लाज।
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मरहठा छंद विधान:-

यह प्रति चरण कुल 29 मात्रा का छंद है। इसमें यति विभाजन 10, 8,11 मात्रा का है।
मात्रा बाँट:-
प्रथम यति 2+8 =10 मात्रा
द्वितीय यति 8,
तृतीय यति 8+3 (ताल यानि 21) = 11 मात्रा
अठकल की जगह दो चौकल लिये जा सकते हैं। अठकल चौकल के सब नियम लगेंगे।
4 चरण सम तुकांत या दो दो चरण समतुकांत। अंत्यानुप्रास हो तो और अच्छा।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-10-2016

बरवै छंद "शिव स्तुति"

सदा सजे शीतल शशि, इनके माथ।
सुरसरिता सर सोहे, ऐसो नाथ।।

सुचिता से सेवत सब, है संसार।
हे शिव शंकर संकट, सब संहार।

आक धतूरा चढ़ते, घुटती भंग।
भूत गणों को हरदम, रखते संग।।

गले रखे लिपटा के, सदा भुजंग।
डमरू धारी बाबा, रहे मलंग।।

औघड़ दानी तुम हो, हर लो कष्ट।
दुख जीवन के सारे, कर दो नष्ट।।

करूँ समर्पित तुमको, सारे भाव।
दूर करो हे भोले, भव का दाव।।
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बरवै छंद विधान:-

यह बरवै दोहा भी कहलाता है। बरवै अर्ध-सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती हैं। विषम चरण के अंत में गुरु या दो लघु होने चाहिए। सम चरणों के अन्त में ताल यानि 2 1 होना आवश्यक है। मात्रा बाँट विषम चरण का 8+4 और सम चरण का 4+3 है। अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं। अठकल और चौकल के सभी नियम लगेंगे।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-08-2016

Saturday, July 6, 2019

212*4 बह्र के गीत

1) छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
    ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
2) कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियों
3) बेखुदी में सनम उठ गए जो कदम
4) जिस गली में तेरा घर न हो बालमा
5) मेरे महबूब में क्या नहीं क्या नहीं   
6) दिल ने मज़बूर इतना ज़ियादा किया
7) ऐ वतन ऐ वतन तेरे सर की कसम
8) खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी
9) हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

गज़ल (याद आती हैं जब)

बह्र:- 212  212  212  212

याद आती हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होती तन्हाइयाँ।

आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।

डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।

गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रहीं कुछ हों मज़बूरियाँ।

मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
शब सी काली ये आतीं न दुश्वारियाँ।

हुस्नवालों से दामन बचाना ए दिल,
मात दानिश को दें उनकी नादानियाँ।

आग मज़हब की जो भी लगाते 'नमन',
इसमें अपनी ही वे सेंकते रोटियाँ।

दानिश=अक्ल, बुद्धि

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
3-4-18

ग़ज़ल (गीत खुशियों के गाते)

बह्र:- 212*3 + 2

गीत खुशियों के गाते चलेंगे,
जख्म दिल के मिटाते चलेंगे।

रंग अपना जमाते चलेंगे,
रोतों को हम हँसाते चलेंगे।

जो मुहब्बत से महरूम तन्हा,
दिल में उनको बसाते चलेंगे।

झेले जेर-ओ-जबर अब तलक सब,
जग में सर अब उठाते चलेंगे।

सुनले अहल-ए-जहाँ कम नहीं हम,
सबसे आगे ही आते चलेंगे।

काम ऐसे करेंगे सभी मिल,
सबको दुनिया में भाते चलेंगे।

दोस्ती को 'नमन' करते हरदम,
नफ़रतों को भुलाते चलेंगे।

जेर-ओ-जबर=जबरदस्ती नीचे लाना, अस्त व्यस्तता
अहल-ए-जहाँ=दुनियाँ वालों

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-17

गीतिका (राम सुमिरन बिना गत नहीं)

(मापनी:- 212  212  212)

राम सुमिरन बिना गत नहीं,
और चंचल ये मन रत नहीं।

व्यर्थ सब कुछ है संसार में,
नाम-जप की अगर लत नहीं।

हैं दिखावे ही जप-तप सभी,
भाव यदि हैं समुन्नत नहीं।

प्राप्त नर-तन का होना वृथा,
भक्ति प्रभु की जो अक्षत नहीं।

लाभ उसकी न चर्चा से कुछ,
बात जो शास्त्र-सम्मत नहीं।

नर वे पशुवत हैं, पर-पीड़ लख
भाव जिनके हों आहत नहीं।

नैन प्यासे 'नमन' मन विकल,
प्रभु-शरण बिन कहीं पत नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-04-18

ग़ज़ल (दरिया है बहुत गहरा)

बह्र:- (221  1222)*2

दरिया है बहुत गहरा, कश्ती भी पुरानी है,
हिम्मत की मगर दिल में, कम भी न रवानी है।

ज़ज़्बा हो जो बढ़ने का, कुछ भी न लगे मुश्किल,
कुछ करने की जीवन में, ये ही तो निशानी है।

दिल उनसे मिला जब से, बदली है फ़ज़ा तब से,
मदहोश नज़ारे हैं, हर शय ही सुहानी है।

बचपन के सुहाने दिन, रह रह के वे याद-आएं,
आँखों में हैं मंज़र सब, हर बात ज़ुबानी है।

औक़ात नहीं कुछ भी, पर आँख दिखाए वो
टकरायेगा हम से तो, मुँह की उसे खानी है।

सिरमौर बने जग का, भारत ये वतन प्यारा,
ये आस हमें पूरी, अब कर के दिखानी है।

जिस ओर 'नमन' देखे, मुफ़लिस ही भरें आहें,
अब सब को गरीबी ये, जड़ से ही मिटानी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-06-19

Saturday, June 22, 2019

हाइकु (राजनीति)

सत्ता का यज्ञ
यजमान हैं विज्ञ
पुरोधा अज्ञ।
**

सत्ता-मिलिंद
पी स्वार्थी मकरंद
हुआ स्वच्छंद।
**

नेता हैं चोर
जनता करे शोर
तंत्र का जोर।
**

जनता ताके
बैठी बगलें झाँके
कुर्सी दे फाके
**

लोक सेवक
जनता का शोषक
स्वयं पोषक।
**

अंगुल पांच
सियासत का हाथ
सब समान।
**

गायों की रोटी
बन्दरों हाथ पड़ी
कुत्तों में बँटी।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-19

सेदोका (किसान)

जापानी विधा (5-7-7-5-7-7)

किसान भाई
मौसम हरजाई
सरकार पराई।
अन्न उगाया
फसल की जगह
हाय रे! मौत उगी।
****

मिट्टी से लड़े
कृषक के फावड़े
तब फ़सल झड़े,
पर हाय रे
तभी मौसम अड़ा
भारी संकट पड़ा।
****

उगानेवाले
ग़म खा के जी रहे
खुद को मिटा रहे।
बेचनेवाले
बादाम पिस्ता खाते
हर  खुशी  मनाते।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
3-09-16

सायली (चमकी बुखार)

चमकी
ऐसी भड़की
काल बन धमकी
मासूमों की
सिसकी।
*****

बिहार
बच्चे बीमार
सोयी पड़ी सरकार
करे हुँकार
बुखार।
*****

मुजफ्फरपुर
बुखार  निष्ठुर
आया बन महिषासुर
केवल चिंतातुर!
सत्तापुर।
*****

महाकाल
बुखार विकराल
बच्चों  पर  भूचाल
सरकारी अस्पताल
बदहाल।

*****
1-2-3-2-1 शब्द
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-06-19

माहिया (कुड़िये)

कुड़िये कर कुड़माई,
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।

धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले।।

गोरी चल लुधियाना,
मौज मनाएँगे,
होटल में खा खाना।

नखरे भारी मेरे,
रे बिक जाएँगे,
कपड़े लत्ते तेरे।।

ले जाऊँ अमृतसर,
सैर कराऊँगा,
बग्गी में बैठा कर।

तुम तो छेड़ो कुड़ियाँ,
पंछी बिणजारा,
चलता बन अब मुँडियाँ।।

नखरे हँस सह लूँगा,
हाथ पकड़ देखो,
मैं आँख बिछा दूँगा।

दिलवाले तो लगते,
चल हट लाज नहीं,
पहले घर में कहते।।

**************
प्रथम और तृतीय पंक्ति तुकांत (222222)
द्वितीय पंक्ति अतुकांत (22222)
**************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-12-16

रुद्र पिरामिड

आरोही अवरोही पिरामिड
(1-11 और 11-1)

हे
शिव
शंकर
जग के हो
तु रखवाले।
डमरू पे नाचे
हो कर मतवाले।
सर्प गले में लिपटे
प्यारा चन्दा जटा छिपाले।
भूत गणों के नाथ अनोखे
विष पी देवों की विपदा टाले।

तन  पर   बाघम्बर   भभूत
भोले की प्राणी महिमा गाले।
दूध  बेल पत्रों को  चढ़ा
पूजो आक  धतूरा ले।
ऐसे दानी बाबा को
पूजा से रिझाले।
'नमन' करो
चरणों में
माथे को
नवा
ले।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-4-18

ताँका (ईश्वर)

जापानी विधा (5-7-5-7-7)

जिसने दिये
कर दो समर्पण
उसे ही पाप,
बन जाओ उज्ज्वल
हो कर के निष्पाप।
**

पाप रहित
नर बन जाता है
ईश स्वरूप,
वह सब प्राणी में
देखे अपना रूप।
**

ईश्वर बैठा
अपने ही अंदर
पर मानव,
ढूंढे उसे बाहर
लाखों प्रयत्न कर।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-06-19

चोका विधान

(चोका कविता)

चोका उच्च स्वर से गायी जाने वाली मूलतः जापानी विधा की लंबी कविता है। हाइकु, ताँका, सेदोका की तरह इस विधा का भी हिन्दी में प्रचलन बढ़ा है। हिन्दी में प्रचलित अन्य जापानी विधा की कविताओं की तरह चोका भी प्रति पंक्ति निश्चित वर्ण संख्या पर आधारित कविता है।

चोका में पहली पंक्ति में पाँच वर्ण रहते हैं। वर्ण में लघु या दीर्घ कोई भी मात्रा हो सकती है। संयुक्त अक्षर युक्त वर्ण एक ही वर्ण में गिना जाता है। जैसे - 'स्वास्थ्य' में वर्ण की संख्या दो है। दूसरी पंक्ति में सात वर्ण होते हैं। इसके बाद 5-7 वर्ण प्रति पंक्ति का यही क्रम आगे बढता जाता है। विषम संख्या की पंक्ति जैसे 1,3,5,7 में पाँच वर्ण रहते हैं और सम संख्या की पंक्ति जैसे 2,4,6,8 में सात वर्ण रहते हैं। एक पूर्ण चोका में सदैव विषम संख्या की पंक्तियां ही होती हैं जो 9,11,13, 21,37 कुछ भी हो सकती हैं। यह सदैव ध्यान में रहे कि अंत की पंक्ति में 7 वर्ण रहे। यही चोका की एक मात्र विषम संख्या क्रमांक पंक्ति होती है जिसमें 7 वर्ण रहते हैं, जो चोका कविता की पटाक्षेप पंक्ति होती है। इस प्रकार किसी भी चोका कविता की संरचना 5-7-5-7-5-7......7 वर्ण की ही रहती है।

हाइकु, ताँका, सेदोका की तरह ही चोका में भी पंक्तियों की स्वतंत्रता निभाना अत्यंत आवश्यक है। हर पंक्ति अपने आप में स्वतंत्र हो परंतु कविता को एक ही भाव में समेटे अग्रसर भी करती रहे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-04-18

क्षणिका (आधुनिकता)

(1)

आधुनिकता का
है बोलबाला
सब कुछ होता जा रहा
छोटा और छोटा
केश और वेशभूषा
घर का अँगना
और मन का कोना।
**
क्षणिका (नई पीढ़ी)
(2)

निर्विकार शांत मुद्रा में
चक्की चला आटा पीसती
मेरी दादी जी का
तेल-चित्र
जो दादा जी ने
शायद अपनी जवानी में
बड़े शौक से
बनवाया था----
वो आज भी
घर की धरोहरों मेंं
संजोया पड़ा है
नवीन पीढ़ी को
म्यूजियम में
खींचता हुआ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-05-17

Sunday, June 16, 2019

कामदा छंद "भारत पाक क्रिकेट मैच"

(2019 वर्ल्ड कप में भारत पाक के मैच पर)

हार पाक की हो मनाइये।
जीत के सभी गीत गाइये।।
खेल आप ऐसा दिखाइये।
धूल पाक को तो चटाइये।।

मार मार छक्के दिखाइये।
पाक के युँ छक्के छुड़ाइये।।
काव्य प्रेमियों को रिझाइये।
मंच को खुशी में डुबाइये।।

इंगलैंड से जीत आइये।
देश में महा मान पाइये।।
शान भारती की बढ़ाइये।
ये क्रिकेट ट्रॉफी दिलाइये।।
*****

कामदा छंद / पंक्तिका छंद विधान -

कामदा छंद जो कि पंक्तिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, १० वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद है।

"रायजाग" ये वर्ण राखते।
छंद 'कामदा' धीर चाखते।।

"रायजाग" = रगण यगण जगण गुरु।

(212  122  121  2) = 10 वर्ण प्रति चरण, 4 चरण, दो दो सम तुकान्त।

*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-06-19