Thursday, July 11, 2019

राधिका छंद "संकीर्ण मानसिकता"

अपने में ही बस मग्न, लोग क्यों सब हैं।
जीवन के सारे मूल्य, क्षीण क्यों अब हैं।।
हो दिशाहीन सब लोग, भटकते क्यों हैं।
दूजों का हर अधिकार, झटकते क्यों हैं।।

आडंबर का सब ओर, जोर है भारी।
दिखते तो स्थिर-मन किंतु, बहुत दुखियारी।।
ऊपर से चमके खूब, हृदय है काला।
ये कैसा भीषण रोग, सभी ने पाला।।

तन पर कपड़े रख स्वच्छ, शान झूठी में।
करना चाहें अब लोग, जगत मुट्ठी में।।
अब सिमट गये सब स्नेह, स्वार्थ अति छाया।
जीवन का बस उद्देश्य, लोभ, मद, माया।।

मानव खोया पहचान, यंत्रवत बन कर।
रिश्तों का भूला सार, स्वार्थ में सन कर।।
खो रहे योग्य-जन सकल, अपाहिज में मिल।
छिपती जाये लाचार, काग में कोकिल।।

नेता अभिनय में दक्ष, लोभ के मारे।
झूठे भाषण से देश, लूटते सारे।।
जनता भी केवल उन्हें, बिठाये सर पे।
जो ले लुभावने कौल, धमकता दर पे।।

झूठे वादों की बाढ़, चुनावों में अब।
बहुमत कैसे भी मिले, लखे नेता सब।।
हित आज देश के गौण, स्वार्थ सर्वोपर।
बिक पत्रकारिता गयी, लोभ में खो कर।।

है राजनीति सर्वत्र, खोखले नारे।
निज जाति, संगठन, धर्म, लगे बस प्यारे।।
ओछे विचार की बाढ़, भयंकर आयी।
कैसे जग-गुरु को आज, सोच ये भायी।।

मन से सारी संकीर्ण, सोच हम त्यागें।
रख कर नूतन उल्लास, सभी हम जागें।।
हम तुच्छ स्वार्थ से आज, तोड़ लें नाता।
धर उच्च भाव हम बनें, हृदय से दाता।।
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राधिका छंद *विधान*

इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्रा होती हैं, 13,9 पर यति होती है, यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है, कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l इसका मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है।

2 6 2 3 = 13 मात्रा, प्रथम यति। द्विकल के दोनों रूप (2, 1 1) और त्रिकल के तीनों रूप (2 1, 1 2, 1 1 1) मान्य हैं। छक्कल के नियम लगेंगे जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त नहीं होना तथा प्रथम चार मात्रा में पूरित जगण (विचार आदि) नहीं हो सकते।

3 2 2 2 = 9 मात्रा, द्वितीय यति। द्विकल त्रिकल के सभी रूप मान्य।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-12-2018


जब मन में हो हनुमान, राम तो अपने।
सब बन जाते हैं काम, पूर्ण हो सपने।।
मन में रख के विश्वास, करो सब पूजा।
जो हर ले सारे कष्ट, नहीं है दूजा।।
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बेजान साज पर थिरक, रहीं क्यों अंगुल।
ये रात मिलन की रही, बीत हो व्याकुल।
अब साज हृदय का मचल, रहा बजने को।
सब तरस रहें हैं अंग, सजन सजने को।।

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