Monday, July 26, 2021

पंचिक - (विविध-2)

ढोकलास गाँव का है ढोकला ये हलवाई,
जैसा नाम वैसा रूप लगे ढोलकी सा भाई।
सिर के सफेद केश मोहते,
नारियल की चटणी ज्यों सोहते,
चलै तन ज्यों हो ये ही गाँव का जंवाई।।
*****

बाकी सब गढणियाँ गढ तो चित्तौडगढ़,
उपजे थे वीर यहाँ एक से ही एक बढ।
कुंभा की हो ललकार,
साँगा की या तलवार,
देशवासी वैसे बणो गाथा वाँ की पढ पढ।।
*****

लक्ष्मी बाई जी की न्यारी नगरी है झाँसी,
नाम से ही गद्दारों को दिख जाती फाँसी।
राणी जी की ऐसी धाक,
अंग्रेजों की नीची नाक,
सुन के फिरंगियों की चल जाती खाँसी।।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-10-2020

Thursday, July 22, 2021

मुक्तक (कलम, कविता -2)

कवियों के मन-भाव कलम से, बाहर में जब आते हैं,
तब पहचान जगत में सच्ची, कविगण सारे पाते हैं,
चमड़ी के चहरों का क्या है, पल पल में बदलें ये तो,
पर कलमों के चहरे मन में, हरदम थिर रह जाते हैं।

(ताटंक छंद)
*********

कलम शक्ति को कम ना आँकें, बड़ों बड़ों को नृत्य करा दे,
मानव मन के उद्गारों को, हर मानस तक ये पहुँचा दे,
मचा जगत में उथल पुथल दे, बड़े बड़े कर ये परिवर्तन,
सत्ताऐँ तक इससे पलटें, राजतन्त्र को भी थर्रा दे।

लल्लो चप्पो करने वाले आज कुकुरमुत्तों से छाए,
राजनीति को क्यों कोसें ये भर साहित्य जगत में आए,
बेपेंदी के इन लोटों से रहें दूर कलमों के साधक, 
थोथी वाहों की क्या कीमत जो बस मुँह लख तिलक लगाए।

(32 मात्रिक छंद)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-08-2016

विविध मुक्तक -9

क्षणिक सुखों में खो कर पहले, नेह बन्धनों को त्यज भागो,
माथ झुका फिर स्वांग रचाओ, नीत दोहरी से तुम जागो,
जीम्मेदारी घर की केवल, नारी पर नहिँ निर्भर रहती,
पुरुष प्रकृति ने तुम्हें बनाया, ये अभिमान हृदय से त्यागो।

(समान सवैया)
************

अपनी मक्कारियों पे जो भी उतर जाएगा,
दुश्मनी पाल के जो हद से गुज़र जाएगा,
याद वो रख ले कि चट्टान बने हम हैं खड़े,
जो भी टकराएगा हम से वो बिखर जाएगा।

2122 1122 1122 22
**********

नफ़रतें दूर कर के, मुझको अपना बना ले;
लौ मेरे प्यार की तू, मन में अपने जगा ले।
जह्र के घूँट कितने, और बाकी पिलाना;
जाम-ए-उल्फ़त पिला के, दिल में अब तो बसा ले।

(2122  122)*2
***************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-01-18

Friday, July 16, 2021

चोखो भारत

म्हारो भारत घणो है चोखो,
सगळै जग सै यो है अनोखो।
ई री शोभा ताराँ सै झिलमिल,
जस गावाँ आपाँ सब हिलमिल।

नभ मँ भाँत भाँत रा तारा,
नया नया रंग रा है सारा।
शोभा री चूनड़ मँ  चमकै,
वा चूनड़ अंबर मँ दमकै।

कीरत रो तारो ध्रुवतारो है,
मीठो अनूठो शक्करपारो है।
अंबर मँ अटल बिराजै है,
सगळां सै अलग ही छाजै है।

सप्तॠषि है आन बान रा,
नखत्र है प्राचीन मान रा।
है बल बुद्धि रा राशि बारा,
ज्ञान धर्म रा ग्रह है सारा।

कीरत कै फेरी सगळा काडै,
अम्बर मँ शोभा थारी मांडै।
जग रो जोशी तू पैल्यां थो,
सगळो जग थारै गैल्याँ थो।

थारो इतिहास अमर है,
थारा जोधा वीर जबर है।
धाक सै वाँ री वैरी थर्रावै,
धजा आज भी वाँ री फर्रावै।

थो दिल्ली रो पीथो रण बंको,
दक्खण मँ शिवा रो बाज्यो डंको।
रच्छक राणा मेवाड़ी आन रा,
छत्रशाल बुन्देली शान रा।

रणबांकुड़ी झांसी री राणी,
नहीं आज तक जा री साणी।
नेताजी पूरब सै ठाकर,
पच्छम सै भगत सींघ धाकड़।

जोधाँ री बाताँ जिसी जबर,
भगतां री कोनी कमतर।,
जस भगतां रो नाभो गायो,
मस्त कबीरो अलख जगायो।

धन धन विष पी मीरा बाई,
खुवा खीचड़ो करमा बाई।
चन्दन टीको लगार तुलसी,
भात मोकळो भरार नरसी।

थारो ठीयो अलग अनोखो,
दुनिया सै न्यारो बोळो चोखो।
चोड़ी छाती और माथो ऊँचो,
कशमीरी केशरियो पेचो।

मार पलाथी उत्तर मँ बैठ्या,
शिवजी रा सुसरोजी लूँठा।
रखवाली भारत की राखै,
नदियाँ मँ मीठो पाणी नाखै।

दक्खण मँ सागरियो खारो,
कोनी दै चालण कोई रो सारो।
धाड़ाँ मारै गरज गरज कै,
बैर्याँ नै राखै परै बरज कै।

गंगु यमनु जिसि भैणां दो दो,
पाप्याँ नै तारै पापाँ नै धो धो।
खेतां नै सींचै मीठै पाणी सै,
जसड़ो गावै कलकल वाणी सै।

छ बेट्यां दो दो म्हीनां मँ आवै,
नई नई बे चीजां नै ल्यावै।
रूप सींगार सगळां रो न्यारो,
हर मौसम रो प्यारो प्यारो।

भाँत भाँत रो धर्म रैवणो,
बोली खाणो और पैरणो।
सगळां का है अलग बारणा,
पर एक भाइपो एक धारणा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-05-2016

राजस्थानी डाँखला -3

(1)

शेरां कै घरां मैं देखो जामण लाग्या गादड़ा,
राज तो करै है ना चरावण जाणै बाछड़ा।
अबलाओं दीन पर,
चढावै बुलडोजर।
देशद्रोही उन्मादी मिल नाचै भांगड़ा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-2-21

Friday, July 9, 2021

क्षणिकाएँ (जीवन)

क्षणिका (1)

जिंदगी एक
सुलगा हुआ अलाव
जिसमें इंसान
उम्र की आग
कुरेद कुरेद
तपता जाता है,
और अलाव
ठंडा पड़ता पड़ता
बुझ जाता है।
**

क्षणिका (2)

जीवन
एक अनबूझ पहेली
जिसका उत्तर
ढूंढते ढूंढते,
इंसान बूढ़ा हो
मर जाता है
पर यह पहेली
वहीं की वहीं।
**

क्षणिका (3)

जीवन
एक नन्ही गेंद!
कोई फेंके,
कोई हवा में उड़ाये,
कई लपकने को तैयार।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-06-19

बाल गीत (हम सारे ही एक हैं)

 बाल गीत

बालक मन के नेक हैं,
हम सारे ही एक हैं।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
सारे ही हैं भाई भाई।
अलग सभी का खान-पान है,
पहनावे की अलग शान है।
दिखते सभी अनेक हैं,
पर सारे ही एक हैं।

अभी पढ़ाई में कुछ कच्चे,
धुन के पक्के, मन के सच्चे।
इक दूजे से लड़ भी लेते,
आँखें दिखा पटखनी देते।
ऊँची रखते टेक हैं,
किंतु इरादे नेक हैं।

मिलजुल के त्योहार मनाते,
झूम झूम कर हँसते गाते।
जन्म दिवस यारों का पड़ता,
जोश हमारा नभ पर चढ़ता।
उपहारों के पेक हैं,
मिल के खाते केक हैं।

स्वप्न अनेकों मन में पलते,
हाथ मिला हम सब से चलते।
मुसीबतों में भी हम हँसते,
बहकावों में कभी न फँसते।
रखते पूर्ण विवेक हैं,
भारत के अभिषेक हैं।

बालक मन के नेक हैं,
हम सारे ही एक हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-10-19

मनहरण घनाक्षरी "राम महिमा"

मनहरण घनाक्षरी

शिशु रोये बिन क्षीर, राँझा रोये बिन हीर,
दुआ दे फ़कीर नहीं, पीर कैसे मिटेगी?

नीड़ बिन हीन कीर, वीर बिन शमशीर,
कोई भी तुणीर कैसे, तीर बिन सोहेगी?

शेर बिन सूना गीर, हीन मीन बिन नीर,
जब है जमीर खाली, धीर कैसे आयेगी?

बिन कोई तदवीर, जगे नहीं तकदीर,
राम नहीं सीर कैसे, भव-भीर छूटेगी?

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-11-18

Sunday, July 4, 2021

ग़ज़ल (जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो)

बह्र:- 221  2121  1221  212

जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो,
और बिन बुलाई सारी बलाएँ मुझे न दो।

मर्ज़ी तुम्हारी दो या वफ़ाएँ मुझे न दो,
पर बद-गुमानी कर ये सज़ाएँ मुझे न दो।

सुलगा हुआ हूँ पहले से भड़काओ और क्यों,
नफ़रत की कम से कम तो हवाएँ मुझे न दो।

वाइज़ रहो भी चुप ज़रा, बीमार-ए-इश्क़ हूँ,
कड़वी नसीहतों की दवाएँ मुझे न दो।

तुम ही बता दो झेलने हैं और कितने ग़म,
ये रोज़ रोज़ इतनी जफ़ाएँ मुझे न दो।

तुम दूर मुझ से जाओ भले ही ख़ुशी ख़ुशी,
पर दुख भरी ये काली निशाएँ मुझे न दो।

सुन ओ 'नमन' तुम्हारा सनम क्या है कह रहा,
वापस न आ सकूँ वो सदाएँ मुझे न दो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-01-2019

ग़ज़ल (देख तुम्हारी भोली सूरत)

बहरे मीर:- 22  22  22  22

देख तुम्हारी भोली सूरत,
भूल गये हम सबकी सूरत।

आँखों में तुम ही तुम छायी,
और नहीं अब भाती सूरत।

दिल पर करम करो, मिलने की,
तुम्हीं निकालो कोई सूरत।

देख आइना मत इतराओ,
सबको प्यारी अपनी सूरत।

अगर देखना है विकास तो,
जाकर देखें नगरी सूरत।

जब चुनाव नेड़े आते हैं,
नेताओं की दिखती सूरत।

'नमन' कहे मतलब की खातिर,
आज देश की बिगड़ी सूरत।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
04-12-2017

Saturday, June 26, 2021

पंचिक (बतरस)

पंचिक (बतरस)

विधाओं की वर्जनाओं से परे,, विशुद्ध बतरस का आनंद लीजिए 😃😃🙏

(1)

पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी
इनसे कोई भी, विषय कहाँ रहा बाकी
बाजार से घर की खाटी समीक्षा
भेद बताने की, कितनी तितीक्षा
काट करे    कोई, फिर बनती है झाँकी
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी)

(2)

उसकी बहु, कहना मत, बात है क्या की
सुना है मैने, कि वो  रसिकन है पाकी
अरे,  डिस्को में जाती है वो
सुना, रेस्त्रां  में खाती  है वो
हाय राम, ये ही क्या, देखना था बाकी
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)

(3)

ये शर्माईन, इसकी तो बात ही न्यारी है
चालीसी मे आ गई, सजने की मारी है
शर्मा को देखो उड़ गये बाल
बेचारा    घूमे, लगता बेहाल
अपने को क्या मतलब, पर कहती हूँ, क्या की। 
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)

(4)

वो वर्मा की छोरी, इक दिन कर देगी नाम
सारे  दिन स्कूटी पे, हांडने भर  का काम
बित्ती   है पर देखो तो  कपड़े 
रोज नये पटयाले, कंगन, कड़े
वैसे अपने को क्या, न माँ ने परवा की
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)

(5)

देर   हो गई   री मुझे, दूध लेने  जाना
हाँ, गुप्ता के छोरे को थोड़ा समझाना
दढियल क्यों बन बैठा
रहता  भी  है      ऐंठा
अपने को क्या है पर, मरजी गुप्ता की
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)

(6)

कुछ भी हो, सुख दुख मे काम तो आती
इसके घर की सब्जी, उसके घर जाती
पल भर की नाराजी
अगले पल हो राजी
कहती, तूने भी सुन ली न   कमला की
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी
इनसे कोई भी, विषय कहाँ रहा बाकी)
😃😃😃😃

          सुप्रभात सा
       जैगोबिंद बिरामण
           लोसल

Monday, June 21, 2021

हनुमत पिरामिड

आरोही अवरोही पिरामिड
(1-11 और 11-1)

को 
नहीं
जानत
जग में तु
दूत राम को।
महिमा दी तूने
सालासर ग्राम को।
राम लखन को लाए
पावन किष्किंधा धाम को।
सागर लांघा  लंकिनी  मारी
लंका में छेड़ दिया संग्राम को।

सौंप मुद्रिका, उजाड़ी  वाटिका
जारे तब लंका ललाम को।
स्वीकार   करो  बजरंगी
तुम मेरे प्रणाम को।
हे बाबा  रक्षा  कर
आठहुँ याम को।
'नमन' करूँ
पूर्ण करो
सारे ही
काम
को।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-18

गोवर्धन धारण

गोवर्धन धारण


ब्रज विपदा हारण, सुरपति कारण, आये जब यदुराज।
गोवर्धन धारा, सुरपति हारा, ब्रज का साधा काज।
हे कृष्ण मुरारी! जनता सारी, विपदा में है आज।
कर जोड़ सुमरते, विनती करते, रखियो हमरी लाज।

बासुदेव अग्रवाल
तिनसुकिया

Tuesday, June 15, 2021

मुक्तक (नारी)

पहचान ले नारी तू ताकत जो छिपी तुझ में,
कारीगरी उसकी जो सब ही तो सजी तुझ में,
मंजिल न कोई ऐसी तू पा न सके जिसको,
भगवान दिखे उसमें ममता जो बसी तुझ में।

(221  1222)*2
***********

बदी के बदले भलाई सदा न पाओगे,
सितम ढहाओगे, तुम भी वफ़ा न पाओगे,
सदा ही जुल्म किया औरतों पे मर्दों ने,
डरो ख़ुदा से नहीं तो पता न पाओगे।

(1212  1122  1212  22)
*********

जीवन में जो दाखिल हुई सौगात बनकर दिलरुबा,
जब हुस्न था तब तक रही नगमात बनकर दिलरुबा,
तू औरतों की हक़ परस्ती की करे बातें बड़ी,
तो क्यों रहे तेरे लिये खैरात बनकर दिलरुबा।

(2212×4)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-04-2017

मुक्तक (राजनीति-2)

जो भी सत्ता पा जाता है, दिखता मद में चूर है,
संवेदन से जनता लेकिन, भारत की भरपूर है,
लोकतंत्र को कम मत आँको, हरदम इसका भान हो,
काम करो तो सत्ता भोगो, वरना दिल्ली दूर है।

(16+13 मात्रा)
***********

प्रथम विरोधी को शह दे कर, दिल के घाव दुखाते हैं,
फिर उन रिसते घावों पर वे, मलहम खूब लगाते हैं,
'फूट डालके राज करो' का, है सिद्धांत पुराना ये,
बचके रहना ऐसों से जो, अपना बन दिखलाते हैं।

(ताटंक छंद आधारित)
**********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-11-18