इस ब्लॉग को “नयेकवि” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य नये कवियों की रचनाओं को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके। यह “नयेकवि” ब्लॉग उन सभी हिन्दी भाषा के नवोदित कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नये ब्लॉग “नयेकवि” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
Wednesday, January 22, 2020
सायली (होली)
क्षणिका (वृद्धाश्रम)
वृद्धाश्रम का
एक बूढ़ा पलास
जो पतझड़ में
ठूँठ बना
था बड़ा उदास!
तभी एक
वृद्ध लाठी टेकता
आया उसके पास
जो वर्षों से
रहा कर वहीं निवास,,,
उसे देता दिलासा, कहा
क्या मुझ से भी ज्यादा
तू है निराश??
अरे तेरा तो,,
आने वाला है मधुमास
पर मैं तो जी रहा
रख उस बसंत की आस....
जब इस स्वार्थी जग में
ले लूँगा आखिरी श्वास।
**
(2)
बद्रिकाश्रम में जा
प्रभु की माला जपना,
अमर नाथ
यात्रा का सपना
वृद्धाश्रम में
आ टूटा।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-03-19
कहमुकरी (दिवाली)
धूम धड़ाका कर वह जाये,
छा जाती उससे खुशयाली,
क्या सखि साजन? नहीं दिवाली।
चाव चढ़े जब घर में आता,
फट पड़ता तो गगन हिलाता,
उत्सव इस बिन किसने चाखा,
क्या सखि साजन? नहीं पटाखा।
ये बुझता होता अँधियारा,
खिलता ये छाता उजियारा,
इस बिन करता धक-धक जीया
क्या सखि साजन, ना सखि दीया।
गीत सुनाये जी बहलाये,
काम यही सुख दुख में आये,
उसके बिन हो जाऊँ घायल,
क्या सखि साजन? ना मोबायल।
जी करता चिपकूँ बस उससे,
बिन उसके बातें हो किससे,
उसकी हूँ मैं पूरी कायल,
क्या सखि साजन? ना मोबायल।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-10-18
Thursday, January 16, 2020
विविध मुक्तक -2
हमारी शख्शियत को खुद मिटाने हम लगे हैं,
लगें पर्दानशीं का हम उठाने जबसे पर्दा,
हमारा खुद का ही चेह्रा दिखाने हम लगे हैं।
(1222*3 122)
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छिपी हुई बहु मूल्य संपदा, इस शरीर के पर्दों में।
इस क्षमता के बल पर ही तुम, जान फूँक दो गर्दों में।
वो ताकत पहचान अगर लो, रोग मिटा दो दुनिया के।
ढूंढे भी फिर नहीं मिलेंगे, लोग रहें जो दर्दों में।
(लावणी छंद)
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जन्म नहीं है सब कुछ जग में, मान प्रतिष्ठा कर्म दिलाता,
जग में होता जन्म श्रेष्ठ तो, सूत-पुत्र क्यों कर्ण कहाता,
ऊँचे कुल का गर्व व्यर्थ है, किया नहीं कुछ यदि जीवन में,
बैन नहीं दिखलाते हैं गुण, गुण तो हरदम कर्म दिखाता।
(32 मात्रिक छंद)
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(अखबार)
ज्योंही सुबह होती हमें मिलती खबर अखबार से,
काले जो धंधे उनकी सब हिलती खबर अखबार से,
क्या हो रहा है देश में सब जानकारी दे ये झट,
नेताओं की तो पोल की खिलती खबर अखबार से।
(2212×4)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-10-18
मुक्तक (इश्क़, दिल)
पुछल्लेदार मुक्तक "उपवास"
कर उपवास बताऊँगा अब क्या मतलब न बुलाने का।
मौका हाथ लगा छिप कर के छोले खूब उड़ाने का।
अवसर आया गिरगिट जैसा मेरा रंग दिखाने का।।
उजले कपड़ों में सजधज आऊँ,
चेलों को साथ लाऊँ,
मैं फोटुवें खिंचाऊँ,
महिमा उपवास की है भारी,
बासुदेव कहे सुनो नर नारी।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
मुक्तक (संस्कृति, संस्कार, शिक्षा)
Saturday, January 11, 2020
सरसी छंद "खेत और खलिहान"
भारत की पहचान सदा से, खेत और खलिहान।।
गाँवों की जीवन-शैली के, खेत रहे सोपान।
अर्थ व्यवस्था के पोषक हैं, खेत और खलिहान।।
अन्न धान्य से पूर्ण रखें ये, हैं अपने अभिमान।
फिर भी सुविधाओं से वंचित, खेत और खलिहान।।
अंध तरक्की के पीछे हम, भुला रहे पहचान।
बर्बादी की ओर अग्रसर, खेत और खलिहान।।
कृषक आत्महत्या करते हैं, सरकारें अनजान।
चुका रहे कीमत इनकी अब, खेत और खलिहान।।
अगर बचाना हमें देश को, मन में हो ये भान।
आगे बढ़ते रहें सदा ही, खेत और खलिहान।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
08-03-18
सार छंद "आधुनिक ढोंगी साधु"
काम क्रोध मद लोभ बसा है, कपट 'पाक' में जैसे।
नाम बड़े हैं दर्शन छोटे, झूठा इनका चोंगा।
छापा तिलक जनेऊ रखते, पण्डित पूरे पोंगा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, झूठी सच्ची करते।
कागज की संस्थाओं से वे, झोली अपनी भरते।
लोग गाँठ के पूरे ढूंढे, और अकल के अंधे।
बिना उस्तरा के ही मूंडे, चंदे के सब धंधे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गये साधु बन ढोंगी।
रमणी जहाँ दिखी सुंदर सी, फेंके फंदे भोगी।
आसमान में पहले टाँगे, लल्लो चप्पो करते।
रोज शान में पढ़ें कसीदे, दूम चाटते फिरते।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, फिर वे देते दीक्षा।
हर सेवा अपनी करवाये, कहते इसको भिक्षा।
मुँह में राम बगल में छूरी, दाढ़ी में है तिनका।
सर पे जटा गले में कण्ठी, कर में माला मिनका।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, छिपे भेड़िये अंदर।
खाल भेड़ की औढ़ रखें ये, झपटे जैसे बन्दर।
गिरगिट से ये रंग बदलते, अजगर से ये घाती।
श्वान-पूंछ से हैं ये टेढ़े, गीदड़ सी है छाती।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बोले वचन सुहावा।
धुला चरण चरणामृत देते, आशीर्वाद दिखावा।
शिष्य बना के फेंके पासे, गुरु बन देते मंतर।
ऐसे गुरु से बच के रहना, झूठे जिनके तंतर।।
सोरठा "राम महिमा"
भव अधिताप निकंद, मोह निशा रवि सम दलन।।
हरें जगत-संताप, नमो भक्त-वत्सल प्रभो।
भव-वारिध के आप, मंदर सम नगराज हैं।।
शिला और पाषाण, राम नाम से तैरते।
जग से हो कल्याण, जपे नाम रघुनाथ का।।
जग में है अनमोल, विमल कीर्ति प्रभु राम की।
इसका कछु नहिं तोल, सुमिरन कर नर तुम सदा।।
हृदय बसाऊँ राम, चरण कमल सिर नाय के।
सभी बनाओ काम, तुम बिन दूजा कौन है।।
गले लगा वनबास, बनना चाहो राम तो।
मत हो कभी उदास, धीर वीर बन के रहो।।
रखो राम पे आस, हो अधीर मन जब कभी।
प्राणी तेरे पास, कष्ट कभी फटके नहीं।।
सदा रहे आनन्द, रामकृपा बरसे जहाँ।
मन में परमानन्द, माया का बन्धन कटे।।
राम करे उद्धार, दीन पतित जन का सदा।
भव से कर दे पार, प्रभु से बढ़ कर कौन जो।।
सुध लेवो रघुबीर, दर्शन के प्यासे नयन।
कबसे हृदय अधीर, अब तो प्यास मिटाइये।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-04-19
वर्ष छंद "एक बाल कविता"
चूहा भागा ले कर प्रान।।
आगे पाया साँप विशाल।
चूहे का जो काल कराल।।
नन्हा चूहा हिम्मत राख।
जल्दी कूदा ऊपर शाख।।
बेचारे का दारुण भाग।
शाखा पे बैठा इक काग।।
पत्तों का डाली पर झुण्ड।
जा बैठा ले भीतर मुण्ड।।
कौव्वा बोले काँव कठोर।
चूँ चूँ से दे उत्तर जोर।।
ये है गाथा केवल एक।
देती शिक्षा पावन नेक।।
बच्चों हारो हिम्मत नाय।
लाखों चाहे संकट आय।।
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लक्षण छंद:-
"माताजा" नौ वर्ण सजाय।
प्यारी छंदा 'वर्ष' लुभाय।।
"माताजा" = मगण तगण जगण
222 221 121 = 9 वर्ण
चार चरण दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-02-2017
Monday, January 6, 2020
ग़ज़ल (इश्क़ की मेरी इब्तिदा है वो)
ग़ज़ल (आपके पास हैं दोस्त ऐसे, कहें)
आपके पास हैं दोस्त ऐसे, कहें,
साथ जग छोड़ दे, संग वे ही रहें।
दोस्त ऐसे हों जो बाँट लें दर्द-ओ-ग़म,
दिल की पीड़ा को संग_आपके जो सहें।
धैर्य रख जो सुनें बात हैं मित्र वे,
और जो साथ में भावना में बहें।
बेरुखी की जहाँ की लगे आग जब,
मित्र के सीने में भी वे शोले दहें।
मित्र सच्चे 'नमन', मित्र का देख दुख,
हाथ खुद के बढ़ा, मित्र के कर गहें।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-06-19
ग़ज़ल (तुम्हें जब भी हमारी छेड़खानी)
नेताओं पर मुसलसल ग़ज़ल
Saturday, December 28, 2019
माहिया (विरही रात)
मौक्तिक चंदा भर,
भेंट मिली पाँखों की।
नव पंख लगा उड़ती
सपनों के नभ में,
प्रियतम से मैं जुड़ती।
तारक-चूनर ओढ़ी,
रजनी की मोहक,
चल दी साजन-ड्योढ़ी।
बादल नभ में छाये,
ढ़क लें चंदा को,
फिर झट मुँह दिखलाये।
आँख मिचौली करता,
चन्द्र लगे ज्यों पिय,
प्रेम-ठिठौली करता।
सूनी जीवन-बगिया,
तन के पंजर में
कैद पड़ी मन-चिड़िया।
रातें छत पर कटती,
और चकोरी ये,
व्याकुल पिउ पिउ रटती।
तकती नभ को रहती,
निर्मोही पिय की
विरह-व्यथा सहती।
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प्रथम और तृतीय पंक्ति तुकांत (222222)
द्वितीय पंक्ति अतुकांत (22222)
**************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-06-19
चोका (गुलाब बनो)
कहमुकरी (वाहन)
फिर नभ के गोते लगवाता,
मिटा दूरियाँ देता चैन,
क्या सखि साजन?ना सखि प्लैन।
सीटी बजा बढ़े ये आगे,
पहले धीरे फिर ये भागे,
इससे जीवन के सब खेल,
क्या सखि साजन? ना सखि रेल।
इसको ले बन ठन कर जाऊँ,
मन में फूली नहीं समाऊँ,
इस बिन मेरा सूना द्वार,
क्या सखि साजन? ना सखि कार।
वाहन ये जीवन का मेरा,
कहीं न लगता इस बिन फेरा,
सच्चा साथी रहता घुलमिल,
क्या सखि साजन? नहीं साइकिल।
रुक रुक मंजिल तय करता है,
पर हर दूरी को भरता है,
इस बिन हो न सकूँ मैं टस मस,
क्या सखि साजन? ना सखि ये बस।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-11-2018
Tuesday, December 24, 2019
गीत (रहे देश का नाम ऊँचा तभी)
भुजंगी छंद वाचिक
गरीबी रहे ना यहाँ पे कभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।
रखें भावना प्यार की सबसे हम,
दुखी जो हैं उनके करें दुख को कम,
दिलों में दया भाव धारें सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।
मिला हाथ आगे बढ़ें सब सदा,
न कोई रहे कर्ज़ से ही लदा,
दुखी दीन को दें सहारा सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।
हुये बेसहारा उन्हें साथ दें,
गिरें हैं जमीं पे उन्हें हाथ दें,
जवानों बढ़ो आज आगे सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।
वतन के लिए जान हँस हँस के दें,
तिरंगे को झुकने कभी हम न दें,
बढ़े देश आगे सुखी हों सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।
‘नमन’ देश को कर ये प्रण हम करें,
नहीं भूख से लोग आगे मरें,
जो खुशहाल होंगें यहाँ पर सभी।
रहे देश का नाम ऊँचा तभी।।
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भुजंगी छंद विधान –
भुजंगी छंद 11 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद है जिसका वर्ण विन्यास 122*3 + 12 है। इस चार चरणों के छंद में 2-2 अथवा चारों चरणों में समतुकांतता रखी जाती है।
यह छंद वाचिक स्वरूप में भी प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में गुरु वर्ण (2) को लघु+लघु (11) में तोड़ने की तथा उच्चारण के अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट रहती है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-11-2016
गीत (भारत तु जग से न्यारा)
(2212 122 अंतरा 22×4 // 22×3)
भारत तु जग से न्यारा, सब से तु है दुलारा,
मस्तक तुझे झुकाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।
सन सैंतालिस मास अगस्त था, तारिख पन्द्रह प्यारी,
आज़ादी जब हमें मिली थी, भोर अज़ब वो न्यारी।
चारों तरफ खुशी थी, छायी हुई हँसी थी,
ये पर्व हम मनाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।
आज़ादी के नभ का यारों, मंजर था सतरंगा,
उतर गया था जैक वो काला, लहराया था तिरंगा।
भारत की जय थी गूँजी, अनमोल थी ये पूँजी,
सपने नये सजाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।
बहुत दिये बलिदान मिली तब, आज़ादी ये हमको,
हर कीमत दे इसकी रक्षा, करनी है हम सबको।
दुश्मन जो सर उठाएँ, उनको सबक सिखाएँ,
मन में यही बसाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।
भारत तु जग से न्यारा, सब से तु है दुलारा,
मस्तक तुझे झुकाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-08-17