भर सनेह रोली।
बहुत आँख रो ली।।
सजन आज होली।
व्यथित खूब हो ली।।
मधुर फाग आया।
पर न अल्प भाया।।
कछु न रंग खेलूँ।
विरह पीड़ झेलूँ।।
यह बसंत न्यारी।
हरित आभ प्यारी।।
प्रकृति भी सुहायी।
नव उमंग छायी।।
पर मुझे न चैना।
कटत ये न रैना।।
सजन याद आये।
न कुछ और भाये।।
विकट ये बिमारी।
मन अधीर भारी।।
सुख समस्त छीना।
अति कठोर जीना।।
अब तुरंत आ के।
हृदय से लगा के।।
सुध पिया तु लेवो।
न दुख और देवो।।
=============
लक्षण छंद:-
"नरगु" वर्ण सप्ता।
रचत है 'मनोज्ञा'।।
"नरगु" = नगण रगण गुरु
111 212 + गुरु = 7-वर्ण
चार चरण, दो दो समतुकांत।
*****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-03-17
बहुत आँख रो ली।।
सजन आज होली।
व्यथित खूब हो ली।।
मधुर फाग आया।
पर न अल्प भाया।।
कछु न रंग खेलूँ।
विरह पीड़ झेलूँ।।
यह बसंत न्यारी।
हरित आभ प्यारी।।
प्रकृति भी सुहायी।
नव उमंग छायी।।
पर मुझे न चैना।
कटत ये न रैना।।
सजन याद आये।
न कुछ और भाये।।
विकट ये बिमारी।
मन अधीर भारी।।
सुख समस्त छीना।
अति कठोर जीना।।
अब तुरंत आ के।
हृदय से लगा के।।
सुध पिया तु लेवो।
न दुख और देवो।।
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लक्षण छंद:-
"नरगु" वर्ण सप्ता।
रचत है 'मनोज्ञा'।।
"नरगु" = नगण रगण गुरु
111 212 + गुरु = 7-वर्ण
चार चरण, दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-03-17
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