8,8,8,6
मिलते विषम दोय, सम-कल तब होय,
सम ही कवित्त को तो, देत बहाव है।
आदि न जगन रखें, लय लगातार लखें,
अंत्य अनुप्रास से ही, या का लुभाव है।
शब्द रखें भाव भरे, लय ऐसी मन हरे,
भरें अलंकार जा का, खूब प्रभाव है।
गाके देखें बार बार, अटकें न मझधार,
रचिए कवित्त जा से, भाव रिसाव है।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-4-17
मिलते विषम दोय, सम-कल तब होय,
सम ही कवित्त को तो, देत बहाव है।
आदि न जगन रखें, लय लगातार लखें,
अंत्य अनुप्रास से ही, या का लुभाव है।
शब्द रखें भाव भरे, लय ऐसी मन हरे,
भरें अलंकार जा का, खूब प्रभाव है।
गाके देखें बार बार, अटकें न मझधार,
रचिए कवित्त जा से, भाव रिसाव है।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-4-17
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