सिमटा ही जाये देश का देहात शह्र में।
लोगों के खोते जा रहे जज़्बात शह्र में।
सरपंच गाँव का था जो आ शह्र में बसा।
खो बैठा पर वो सारी ही औक़ात शह्र में।।
221 2121 1221 212
*********
खड़ी समस्या कर के कुछ तो, पैदा हुए रुलाने को,
इनको रो रो बाकी सारे, हैं कुहराम मचाने को,
यदि मिलजुल हम एक एक कर, इनको निपटाये होते,
सुरसा जैसे मुँह फैला ये, आज न आतीं खाने को।
(ताटंक छंद आधारित)
***********
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-19
लोगों के खोते जा रहे जज़्बात शह्र में।
सरपंच गाँव का था जो आ शह्र में बसा।
खो बैठा पर वो सारी ही औक़ात शह्र में।।
221 2121 1221 212
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खड़ी समस्या कर के कुछ तो, पैदा हुए रुलाने को,
इनको रो रो बाकी सारे, हैं कुहराम मचाने को,
यदि मिलजुल हम एक एक कर, इनको निपटाये होते,
सुरसा जैसे मुँह फैला ये, आज न आतीं खाने को।
(ताटंक छंद आधारित)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-19
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