Monday, October 18, 2021

गुर्वा (हवा)

गुर्वा विधा

"हवा"

पूरब में है लाली,
हवा चले मतवाली,
मौक्तिकमय हरियाली।
***

जल तरंग को हवा बजाये,
चिड़ियाँ गाएँ गीत,
प्रकृति दिखाये पग-पग प्रीत।
***

खिली हुई है अमराई,
सनन बहे पुरवाई,
स्वाद चखे नासा मीठा।
***
गुर्वा विधान जानने के लिए यहाँ क्लिक करें ---> गुर्वा विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-20

Thursday, October 14, 2021

मत्तगयंद सवैया विधान –

 मत्तगयंद सवैया छंद

मत्तगयंद सवैया छंद 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।

यह भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में दो गुरु वर्ण प्रति चरण में रहते हैं। इसकी संरचना 211× 7 + 22 है।

(211 211 211 211 211 211 211 22 )

सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं परंतु कोई चाहे तो लय की सुगमता के लिए इसके चरण में क्रमशः12 -11 वर्ण पर 2 यति खंड रख सकता है ।चूंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
13-10-21

Wednesday, October 13, 2021

विमलजला छंद "राम शरण"

 विमलजला छंद 
"राम शरण"

जग पेट भरण में।
रत पाप करण में।।
जग में यदि अटका।
फिर तो नर भटका।।

मन ये विचलित है।
प्रभु-भक्ति रहित है।।
अति दीन दुखित है।।
हरि-नाम विहित है।।

तन पावन कर के।
मन शोधन कर के।।
लग राम चरण में।
गति ईश शरण में।।

कर निर्मल मति को।
भज ले रघुपति को।।
नित राम सुमरना।
भवसागर तरना।।
=============

विमलजला छंद विधान -

"सनलाग" वरण ला।
रचलें 'विमलजला'।।

"सनलाग" = सगण नगण लघु गुरु

112  111  12 = 8 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
********************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-05-17

Friday, October 8, 2021

वरूथिनी छंद "प्रदीप हो"

 वरूथिनी छंद 

"प्रदीप हो"

प्रचंड रह, सदैव बह, कभी न तुम, अधीर हो।
महान बन, सदा वतन, सुरक्ष रख, सुवीर हो।।
प्रयत्न कर, बना अमर, अटूट रख, अखंडता।
कभी न डर, सदैव धर, रखो अतुल, प्रचंडता।।

निशा प्रबल, सभी विकल, मिटा तमस, प्रदीप हो।
दरिद्र जन , न वस्त्र तन, करो सुखद, समीप हो।।
सुकाज कर, गरीब पर, सदैव तुम, दया रखो।
मिटा विपद, उन्हें सुखद, बना सरस, सुधा चखो।।

हुँकार भर, दहाड़ कर, जवान तुम, बढ़े चलो।
त्यजो अलस, न हो विवस, मशाल बन, सदा जलो।।
अराति गर, उठाय सर, दबोच तुम, उसे वहीं।
धरो पकड़, रखो जकड़, उसे भगन, न दो कहीं।

प्रशस्त नभ, करो सुलभ, सभी डगर, बिना रुके।
रहो सघन, डिगा न मन, बढ़ो युवक, बिना झुके।।
हरेक थल, रहो अटल, विचार नित, नवीन हो।
बढ़ा वतन, छुवा गगन, सभी जगह, प्रवीन हो।।
=====================

वरूथिनी छंद विधान -

"जनाभसन,जगा" वरण, सुछंद रच, प्रमोदिनी।
विराम सर,-त्रयी सजत,  व चार पर, 'वरूथिनी'।।

"जनाभसन,जगा" = जगण+नगण+भगण+सगण+नगण+जगण+गुरु
121  11,1  211  1,12  111,  121  2
सर,-त्रयी सजत = सर यानि बाण जो पाँच की संख्या का भी द्योतक है। सर-त्रयी यानि 5,5,5।

(१९ वर्ण, ४ चरण, क्रमश: ५,५,५,४ वर्ण पर यति, दो-दो चरण समतुकान्त)
***************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
26-01-19

Monday, October 4, 2021

मुक्तक (कोरोना बीमारी - 2)

(1)

करें सामना कोरोना का, जरा न हमको रोना है,
बीमारी ये व्यापक भारी, चैन न मन का खोना है,
संयम तन मन का हम रख कर, दूर रहें अफवाहों से, 
दृढ़ संकल्प सभी का ये हो, रोग पूर्ण ये धोना है।

(ताटंक छंद आधारित)
*********

(2)

यही प्रश्न है अब तो आगे, भूख बड़ी या कोरोना,
करो पेट की चिंता पहले, छोड़ो सब रोना धोना,
संबंधो से धो हाथों को, शायद बच भी हम जाएँ,
मँहगाई बेरोजगार से, तय है सांसों का खोना।

(लावणी छंद आधारित)
********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-04-21

Saturday, October 2, 2021

ग़ज़ल (तूफाँ में चल सको तो)

बह्र:- 221  2121  1221  212

तूफाँ में चल सको तो मेरे साथ तुम चलो।
दुनिया उथल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सत्ता के नाग फन को उठाए रहे हैं फिर।
इनको कुचल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

बदहाली, भूख में भी सियासत का दौर है।
ढर्रा बदल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सब जी रहे हैं कल के सुनहरे से ख्वाब में।
गर ला वो कल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

ईमान सब का डिग रहा पैसे के वास्ते।
जो रह अटल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

नेतागिरी यहाँ चले भांडों से स्वांग में।
इससे निकल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

झूठे खिताब-ओ-नाम को पाने में सब लगे।
इन सब से टल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सेवा करें जो देश की गल गल के बर्फ में।
गर उन सा गल सको तो मेरे साथ तुम चलो।

लफ़्फ़ाजी का ही मंचों पे अब तो बड़ा चलन।
इससे उबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

निर्बल हैं वर्तमान के हालात में सभी।
यदि बन सबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

इक क्रांति की लपट की प्रतीक्षा में जग 'नमन'।
दे वो अनल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-01-19

Wednesday, September 29, 2021

नाग छंद विधान

 नाग छंद विधान

(स्वनिर्मित नव छंद)

नाग छंद कुल चार पद का छंद है जिसके प्रत्येक पद में 29 मात्रा होती है। तुकांतता दो दो पद में है। हर पद में दो दो चरण हैं। इस प्रकार छंद में कुल 8 चरण हैं। इस छंद में चार बहु प्रचलित छंदों का समावेश है। अब हर चरण का विधान ठीक से देखें।

1 और 3 चरण = श्रृंगार छंद (16 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8-3 (ताल)।

2 और 4 चरण = रोला छंद का सम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8।

5 और 7 चरण = दोहा छंद का विषम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 8-2-1-2।

6 और 8 चरण = चौपाई छंद (16 मात्रा); ठीक चौपाई छंद वाला विधान।

छंद जिस पंचकल (3-2) से प्रारंभ होता है उसी पंचकल पर समाप्त होना चाहिए। कुण्डली मार के बैठना नाग की विशेषता है और यह छंद भी कुण्डलाकृति में है जो छंद के नाम की सार्थकता दिखाता है। छंद के चौथे चरण के अठकल की पांचवे चरण में आवृत्ति होती है। लय तथा गायन में यह बहुत ही मधुर छंद है।

स्वरचित उदाहरण-

नाग छंद "सार तत्व"

सुखों का है बस ये ही सार, प्रीत सब से रख नर ले।
जगत में रहना है दिन चार, राम-रस अनुभव कर ले।
अनुभव कर ले प्रीत यदि, प्राणी कर ले नाश दुखों का।
भव-सागर के बंध में, भर लेता भंडार सुखों का।।

द्रष्टव्य: छंद जिस पंचकल (सुखों का) से प्रारंभ हो रहा है उसी पर समाप्त हो रहा है। चौथे चरण के रोला के अठकल (अनुभव कर ले) की पुनरावृत्ति पंचम चरण के दोहा में हो रही है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-05-21

Monday, September 27, 2021

पंचिक "विविध-3"

 पंचिक

"विविध-3"

फलों की दुकान खोली नयी नयी सबरजीत,
गाने लगे लोग जल्द मधुर फलों के गीत।
पूछा मैंने, क्यों रे भाई,
फल तेरे ज्यों मिठाई,
झट बोला, 'सबर का फल मिले सदा स्वीट'।।
*****

दुखपुर में थी एक बाला खुशी नाम वाली,
आँसुओं से भरती थी जब कभी नेत्र-प्याली।
घरवाले घेर लेते,
उसको दिलासा देते,
'खुशी के हैं आँसू' बोल बोल बजा कर ताली।।
*****

मास भर पहले ही जो थे बने हुये दूल्हा,
फूंक मार मार बुझा रहे गैस का वे चूल्हा।
'अब तक तूने क्या भैंसे ही चराई',
सर पे सवार घरवाली गुर्राई,
उनके थे तब पाँव इनका सूजा कूल्हा।।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2020

Thursday, September 23, 2021

मंजुभाषिणी छंद "शहीद दिवस"

मंजुभाषिणी छंद 

"शहीद दिवस"

इस देश की भगत सिंह शान है।
सुखदेव राजगुरु आन बान है।।
हम आह आज बलिदान पे भरें।
उन वीर की चरण वन्दना करें।।

अति घोर कष्ट कटु जेल के सहे।
चढ़ फांस-तख्त पर भी हँसे रहे।।
निज प्राण देश-हित में जिन्हें दिये।
उनको लगा कर सदा रखें हिये।।

तिथि मार्च तेइस शहीद की मने।
उनके समान जन देश के बने।।
प्रण आज ये हृदय धार लें सभी।
नहिं देश का हनन गर्व हो कभी।।

हम पुष्प अर्पित समाधि पे करें।
इस देश की सब विपत्तियाँ हरें।।
यह भाव-अंजलि सही तभी हुये।
जब विश्व भी चरण देश के छुये।।

(23 मार्च शहीद दिवस पर श्रद्धान्जलि।)
================

मंजुभाषिणी छंद विधान -

"सजसाजगा" रचत 'मंजुभाषिणी'।
यह छंद है अमिय-धार वर्षिणी।।

"सजसाजगा" = सगण जगण सगण जगण गुरु।

112 121 112 121+गुरु = कुल 13 वर्ण की वर्णिक छंद।
चार चरण, दो दो समतुकांत।
*********************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
23-03-17

Wednesday, September 22, 2021

मुक्तक "हालात"

हालात से अभी मैं हिला तक ज़रा नहीं,
पर जख्म इस जहाँ का दिया भी भरा नहीं,
अहले जहाँ ये जान ले लड़ता रहूँगा मैं,
सुन लो जमाने वालों अभी मैं मरा नहीं।

(221  2121 1221  212)
***********

सदियों से चली आई रफ़्तार न बदलेंगे,
सुख दुख से भरा जो भी संसार न बदलेंगे,
ज़ालिम ओ जमाना सुन, चाहे तो बदल जा तू,
हालात हों कैसे भी दस्तार न बदलेंगे।

(221  1222)*2
***********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-8-18

Monday, September 20, 2021

पावन छंद "सावन छटा"

 पावन छंद

"सावन छटा"

सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।
वारिद बरसत है, उफने सरित है।।
चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।
मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।

घोर सकल तन में, घबराहट रचा।
है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।
देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।
तारक अब लगते, मुझको दहकते।।

बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।
अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।
बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।
आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।

क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल करो।
आ झटपट बरसो, विरहा सब हरो।।
हे प्रियतम लख लो, तन का लरजना।
आ कर तुम सुध लो, बन मेघ सजना।।
===================
पावन छंद विधान:-

"भानजुजस" वरणी, यति आठ सपते।
'पावन' यह मधुरा, सब छंद जपते।।

"भानजुजस" = भगण नगण जगण जगण सगण
यति आठ सपते = यति आठ और सात वर्ण पे।

211 111 121 121 112 = 15 वर्ण,यति 8,7
चार चरण दो दो समतुकांत।
************************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-09-17

Saturday, September 18, 2021

दोहा छंद "सद्गुण"

(दोहा छंद)

सद्गुण सरस सुगन्ध से, महकायें जग आप।
जो आयें संपर्क में, उनके हर लें ताप।।

अंकुश रहे विवेक का, यह सद्गुण सिरमौर।
मन-मतंग वश में रहे, क्या बाकी फिर और।।

विनय धार हरदम रखें, यह सद्गुण की खान।
कायम कुल की यह रखे, आन, बान अरु शान।।

सद्गुण कुछ पाला नहीं, पर भीषण आकार।
थोथा खाली ढोल ज्यों, बजे बिना कुछ सार।।

धारण कर अवतार प्रभु, करें पाप का अंत।
सद्गुण स्थापित वे करें, करते नष्ट असंत।।

जो नर भागें कर्म से, सद्गुण से हों दूर।
असफलता पर वे कहें, खट्टे हैं अंगूर।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
16-06-19

Friday, September 17, 2021

मोदीजी जन्म दिवस

मुक्तक (32 मात्रिक छंद)

अहो भाग्य भारत का यह है, मोदी जी सा नेता पाया,
देव विश्व कर्मा की तिथि पर, जन्म दिवस उनका शुभ आया,
इकहत्तरवें जन्म दिवस की, भावों भरी बधाई उनको,
भारत की क्षमता का लोहा, जग भर से जिनने मनवाया।

(हमारे प्रिय प्रधानमंत्री मोदीजी को जन्मदिन की अशेष बधाई और अनंत शुभकामनाएँ।)
 👋🏵️🌷🏵️👋

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया (असम)
17-9-21

Wednesday, September 8, 2021

ताँका (राजनीति)

ताँका विधा - (जापानी विधा)
(5-7-5-7-7)

नेता वंदन
लोकतंत्र छेदन
राष्ट्र क्रंदन,
स्वार्थ का हो नर्तन
चापलूसी वर्तन।
**

तुष्टिकरण
स्वार्थ परिपोषक
छद्मावरण,
भावना का मरण
कपट का भरण।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-19

Sunday, September 5, 2021

शार्दूलविक्रीडित छंद "हिन्दी यशोगान"

 शार्दूलविक्रीडित छंद 

"हिन्दी यशोगान"

हिन्दी भारत देश के गगन में, राकेश सी राजती।
भाषा संस्कृत दिव्य हस्त इस पे, राखे सदा साजती।।
सारे प्रांत रखे कई विविधता, देती उन्हे एकता।
हिन्दी से पहचान है जगत में, देवें इसे भव्यता।।

ये उच्चारण खूब ही सुगम दे, जैसा लिखो वो पढ़ो।
जो भी संभव जीभ से कथन है, वैसा इसी में गढ़ो।।
ये चौवालिस वर्ण और स्वर की, भाषा बड़ी सोहनी।
हिन्दी को हम मान दें हृदय से, ये विश्व की मोहनी।।

छंदों को गतिशीलता मधुर दे, ये भाव संचार से।
भावों को रस, गंध, रूप यह दे, नाना अलंकार से।।
शब्दों का सुविशाल कोष रखती, ये छंद की खान है।
गीता, वेद, पुरान, शास्त्र- रस के, संगीत की गान है।।

मीरा ने इसमें रचे भजन हैं, ये सूर की तान है।
हिन्दी पंत, प्रसाद और तुलसी, के काव्य का पान है।।
मीठी ये गुड़ के समान लगती, सुस्वाद सारे चखें।
हिन्दी का हम शीश विश्व भर में, ऊँचा सभी से रखें।। 
===========

शार्दूलविक्रीडित छंद विधान -

"मैं साजूँ सतताग" वर्ण दश नौ, बारा व सप्ता यतिम्।
राचूँ छंद रसाल चार पद की, 'शार्दूलविक्रीडितम्'।।

"मैं साजूँ सतताग" = मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण और गुरु।
222  112  121 112// 221  221  2

आदौ राम, या कुन्देन्दु, कस्तूरी तिलकं जैसे मनोहारी श्लोकों की जननी छंद।इस चार पदों की वर्णिक छंद के प्रत्येक पद में कुल 19 वर्ण होते हैं और यति 12 और 7 वर्ण पर है।
दो दो या चारों पद सम तुकांत।
*************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
11-08-2016

Friday, September 3, 2021

ग़ज़ल (भारत पर अभिमान रखूँ)

22  22  22  2

भारत पर अभिमान रखूँ,
अपना सीना तान रखूँ।

देश ही मेरा सब कुछ है,
मन में बस ये शान रखूँ।

भाषा और धर्म के अपने,
गौरव का मैं मान रखूँ।

दुश्मन की हर हलचल पर,
खुल्ली आँखें, कान रखूँ।

हाँ, इस युग में ढ़ल न सका,
पर-पीड़ा का भान रखूँ।

दीन दुखी की सेवा का,
तन-मन-धन से ध्यान रखूँ।

देश 'नमन' शत बार तुझे,
तुझ से ही पहचान रखूँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-12-2018

Tuesday, August 24, 2021

हाइकु (जीवन)

जलते रहे
जीवन के आले में
स्मृति दीपक।
**

जीवन चाहे
हर हाल में ढ़ल
बने रहना।
**

जो ढ़ल गया
सतत-जीवन सा
वो ही जी गया।
**

जीवन-गति
कोष बद्ध स्पन्दित
शाश्वत शक्ति
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-05-19

Friday, August 20, 2021

गीत "नरक चतुर्दशी"

"नरक चतुर्दशी"

नरकासुर मार श्याम जब आये।
घर घर मंगल दीप जले तब, नरकचतुर्दश ये कहलाये।।

भूप प्रागज्योतिषपुर का वह, चुरा अदिति के कुण्डल लाया,
सौलह दश-शत नार रूपमति, कारागृह में लाय बिठाया,
साथ सत्यभामा को ले हरि, दुष्ट असुर के वध को धाये।
नरकासुर मार श्याम जब आये।।

पक्षी राज गरुड़ वाहन था, बनी सारथी वह प्रिय रानी,
घोर युद्ध में उसका वध कर, उसकी मेटी सब मनमानी,
नार मुक्त की कारागृह से, तब से जग ये पर्व मनाये।
नरकासुर मार श्याम जब आये।।

स्नान करें प्रातः बेला में , अर्घ्य सूर्य को करें समर्पित,
दीप-दान सन्ध्या को देवें, मृत्यु देव यम को कर पूजित,
नरक-पाश का भय विलुप्त कर, प्राणी सुख की वेणु बजाये।
नरकासुर मार श्याम जब आये।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-11-2018

Sunday, August 15, 2021

तुलसी जयंती

तुलसीदास जी की जयंती पर मुक्तक पुष्प


लय:- इंसाफ की डगर पे

तुलसी की है जयंती सावन की शुक्ल सप्तम,
मानस सा ग्रन्थ जिसने जग को दिया है अनुपम,
चरणों में कर के वन्दन करता 'नमन' में तुमको,
भारत के गर्व तुम हो हिन्दी की तुमसे सरगम।।

(221 2122)*2
*********

मनहरण घनाक्षरी "विदेशी पिट्ठुओं पर व्यंग"

देश से जो पाएं मान, जान और पहचान,
यहाँ के ही खान-पान, से वो पेट भरते।

देश का वे अपमान, करें भूल स्वाभिमान,
जो विदेशी गुणगान, लाज छोड़ करते।

यहाँ तोड़ वहाँ जोड़, अपनों से मुख मोड़।
देश का जो साथ छोड़, दूसरों पे मरते।

देश बीच आँख मीच, रहते जो ऐसे नीच,
खींच उन्हें राह बीच, प्राण क्यों न हरते।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-12-16

Saturday, August 14, 2021

क्षणिकाएँ (विडम्बना)

(1)

झबुआ की झोंपड़ी पर
बुलडोजर चल रहे हैं
सेठ जी की
नई कोठी जो
बन रही है।
**

(2)

बयान, नारे, वादे
देने को तो
सारे तैयार
पर दुखियों की सेवा,
देश के लिये जान
से सबको है इनकार।
**

(3)

पुराना मित्र
पहली बार स्टेशन आ
गाडी में बैठा गया
दूसरी बार
स्टेशन के लिये
ऑटो में बैठा दिया
तीसरी बार
चौखट से टा टा किया।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-05-19

Thursday, August 12, 2021

मुक्तक (कलम, कविता -3)

मिट्टी का परिचय मिट्टी है, जो मिट्टी में मिल जानी है,
अपनी महिमा अपने मुख से, कवि को कभी नहीं गानी है,
कवि का परिचय उसकी कविता, जो सच्ची पहचान उसे दे, 
ढूँढें कवि उसकी कविता में, बाकी सब कुछ बेमानी है।

(32 मात्रिक छंद)
*********

दिल के मेरे भावों का इज़हार है हिन्दी ग़ज़ल,
शायरी से बेतहाशा प्यार है हिन्दी ग़ज़ल
छंद में हो भाव भी हो साथ में हो गायकी,
आज इन बातों का ही विस्तार है हिन्दी ग़ज़ल।

(2122*3 212)
*********

लिख सकूँगा या नहीं ये था वहम,
पर कलम ज्यों ली मिटा सारा भरम,
भाव मन में ज्यों ही उमड़े यूँ लगा,
बात मुझ से कर रही है ये कलम।

(2122  2122  212)
**********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-08-2016

Tuesday, August 10, 2021

दोहा छंद "वर्षा ऋतु"

दोहा छंद

ग्रीष्म विदा हो जा रही, पावस का शृंगार।
दादुर मोर चकोर का, मन वांछित उपहार।।

आया सावन झूम के, मोर मचाये शोर।
झनक झनक पायल बजी, झूलों की झकझोर।।

मेघा तुम आकाश में, छाये हो घनघोर।
विरहणियों की वेदना, क्यों भड़काते जोर।।

पिया बसे परदेश में, रातें कटती जाग।
ऐसे में क्यों छा गये, मेघ लगाने आग।।

उमड़ घुमड़ के छा गये, अगन लगाई घोर।
शीतल करो फुहार से, रे मेघा चितचोर।।

पावस ऋतु में भर गये, सरिता कूप तड़ाग।
कृषक सभी हर्षित भये, मिटा हृदय का राग।।

दानी कोउ न मेघ सा, कृषकों की वह आस।
सींच धरा को रात दिन, शांत करे वो प्यास।।

मेघ स्वाति का देख के, चातक हुआ विभोर।
उमड़ घुमड़ तरसा न अब, बरस मेघ घनघोर।।
*** *** ***
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
17-07-2016

Monday, August 9, 2021

32 मात्रिक छंद "आँसू"

 32 मात्रिक छंद

"आँसू"

अंतस के गहरे घावों को, कर जो याद निरंतर रोती।
उसी हृदय की माला से ये, टूट टूट कर बिखरे मोती।।
मानस-सागर की लहरों से, फेन समान अश्रु ये बहते।
छिपी हुई अंतर की पीड़ा, जग समक्ष ये आँसू कहते।।

दुखियारी उस माँ के आँसू, निराकार जिसका भीषण दुख।
ले कर के साकार रूप ये, प्रकट हुये हैं जग के सम्मुख।।
भाग्यवती गृहणी वह सुंदर, बसी हुई थी जिसकी दुनिया।
प्राप्य उसे सब जग के वैभव, खिली हुई थी जीवन बगिया।।

एक सहारा सम्पन्ना का, सभी भाँति अनुरूप उसी के।
जीवन में उनके हरियाली, बीत रहे पल बहुत खुशी के।।
दोनों की जीवन रजनी में, सुंदर एक इंदु मुकुलित था।
मधुर चंद्रिका में उस शशि की, जीवन उनका उद्भासित था।।

बिता रही थी उनका जीवन, नव शिशु की मधुरिम  कल क्रीडा़।
हो कर वाम विधाता उनसे, पर ला दी यह भीषण पीड़ा।।
छीन लिया उस रमणी से हा! उसके जीवन का धन सारा।
वह सुहाग सिन्दूर गया धुल, जीवन में छाया अँधियारा।।

उस सुहाग को लुटे हुये पर, एक वर्ष का लगा न फेरा।
दुख की सेना लिये हुये अब, दूजी बड़ विपदा ने घेरा।।
नव मयंक से छिटक रहा था, जो कुछ भी थोड़ा उजियाला।
वाम विधाता भेज राहु को, ग्रसित उसे भी करवा डाला।।

कष्टों का तूफान गया छा, उस दुखिया के जीवन में अब,
जग उसका वीरान गया हो, छूट गये रिश्ते नाते सब।
भटक भटक हर गली द्वार वह, स्मरण करे इस पीड़ा के क्षण।
उस जीवन की यादों में अब, ढुलका देती दो आँसू कण।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
23-05-2016

Wednesday, August 4, 2021

ग़ज़ल (देश की ख़ातिर सभी को)

बह्र :- 2122 2122 2122 212

देश की ख़ातिर सभी को जाँ लुटाने की कहो,
दुश्मनों को खून के आँसू रुलाने की कहो।

देश की चोड़ी हो छाती और ऊँचा शीश हो,
भाव ऐसे नौजवानों में जगाने की कहो।

ज्ञान की जिस रोशनी में हम नहा जग गुरु बने,
फिर उसी गौरव को भारत भू पे लाने की कहो।

बेसुरे अलगाव के जो गीत गायें अब उन्हें,
देश की आवाज में सुर को मिलाने की कहो।

जो हमारी भूमि पे आँखें गड़ायें बैठे हैं,
जड़ से ही अस्तित्व उन सब का मिटाने की कहो।

देश बाँटो राज भोगो का रखें सिद्धांत जो,
ऐसे घर के दुश्मनों से पार पाने की कहो।

शान्ति का संदेश जग को दो 'नमन' करके इसे,
शस्त्र भी इसके लिये पर तुम उठाने की कहो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
07-07-20