Wednesday, June 12, 2019

जनक छंद "विधान"

जनक छंद रच के मधुर,
कविगण कहते कथ्य को,
वक्र-उक्तिमय तथ्य को।
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तेरह मात्रिक हर चरण,
ज्यों दोहे के पद विषम,
तीन चरण का बस 'जनक'।
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पहला अरु दूजा चरण,
समतुकांतता कर वरण,
'पूर्व जनक' का रूप ले।
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दूजा अरु तीजा चरण,
ले तुकांतमय रूप जब,
'उत्तर जनक' कहाय तब।
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प्रथम और तीजा चरण,
समतुकांत जब भी रहे,
'शुद्ध जनक' का हो भरण।
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तुक बन्धन से मुक्त हों,
इसके जब तीनों चरण,
'सरल जनक' तब रूप ले।
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सारे चरण तुकांत जब,
'घन' नामक हो छंद तब,
'नमन' विवेचन शेष अब।
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जनक छंद एक परिचय:-
जनक छंद कुल तीन चरणों का छंद है जिसके प्रत्येक चरण में13 मात्राएं होती हैं। ये 13 मात्राएँ ठीक दोहे के विषम चरण वाली होती हैं। विधान और मात्रा बाँट भी ठीक दोहे के विषम चरण की है। यह छंद व्यंग, कटाक्ष और वक्रोक्तिमय कथ्य के लिए काफी उपयुक्त है। यह छंद जो केवल तीन पंक्तियों में समाप्त हो जाता है, दोहे और ग़ज़ल के शेर की तरह अपने आप में स्वतंत्र है। कवि चाहे तो एक ही विषय पर कई छंद भी रच सकता है।

तुकों के आधार पर जनक छंद के पाँच भेद माने गए हैं। यह पाँच भेद हैं:—

1- पूर्व जनक छंद; (प्रथम दो चरण समतुकांत)
2- उत्तर जनक छंद; (अंतिम दो चरण समतुकांत)
3- शुद्ध जनक छंद; (पहला और तीसरा चरण समतुकांत)
4- सरल जनक छंद; (सारे चरण अतुकांत)
5- घन जनक छंद। (सारे चरण समतुकांत)

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-05-19

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