ग़ज़ल (जाम चले)
बह्र:- 2112
काफ़िया - आम; रदीफ़ - चले
जाम चले
काम चले।
मौत लिये
आम चले।
खुद का कफ़न
थाम चले।
श्वास तो अष्ट
याम चले।
भोर हो या
शाम चले।
लोग अवध
धाम चले।
मन में बसा
राम चले।
पैसा हो तो
नाम चले।
जग में 'नमन'
दाम चले
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया।
25-09-17
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