Thursday, June 6, 2019

ग़ज़ल (ख़ता मेरी अगर जो हो)

(लंबे से लंबे रदीफ़ की ग़ज़ल)

बह्र:- 1222*4
काफ़िया=आ
रदीफ़= मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर 

ख़ता मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर,
सजा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना,
वफ़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

नशा ये देश-भक्ति का, रखे चौड़ी सदा छाती,
अना मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

रहे चोटी खुली मेरी, वतन में भूख है जब तक,
शिखा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

गरीबों के सदा हक़ में, उठा आवाज़ जीता हूँ,
सदा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

रखूँ जिंदा शहीदों को, निभा किरदार मैं उनका,
अदा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

मेरी मर्जी़ तो ये केवल, बढ़े ये देश आगे ही,
रज़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

रहे रोशन सदा सब से, वतन का नाम हे भगवन,
दुआ मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

चढ़ातें शीश माटी को, 'नमन' वे सब अमर होते,
कज़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खा़तिर।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया।
10-10-2017

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